पुस्तक - मेरा गांव, मेरे खेत

अपने विचार, भावों और ख्यालों को पेश करने के लिए कविता का सहारा अनंत युगों से लिया जाता रहा है। प्राचीन काल में कविता छंद, लयबद्धता और अलंकार से युक्त होती थी लेकिन अब यह छंदमुक्त हो एक नई विधा में सामने आई है।

इसी क्रम में, कवि श्री "अजित झा" जी की काव्य पुस्तक "मेरा गांव, मेरे खेत" पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। दरभंगा, बिहार से संबंध रखने वाले झा साहब आईटी सेक्टर से जुड़े हैं और इस वक़्त आबुधाबी में रहते हैं। यह उनकी पहली प्रकाशित पुस्तक है, जिसे उन्होंने अपनी स्वर्गीय माँ को समर्पित किया है।

जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि कविता गांव, खेत और किसानों से संबंधित है। कविताएं साधारण, सरल और सरस तरीके से लिखी गईं हैं जो कोई भी पाठक आसानी से समझ लेगा। वास्तव में, कवि विदेश में हैं और कविताएं पढ़ने के बाद पता चलता है कि वह मातृभूमि से बिछोह की पीड़ा में हैं। कवि के मन में तीक्ष्ण दर्द उठता है और एक व्यग्रता के साथ वह काव्य सृजन कर रहा है। उनके दिल में बसे जज़्बात, विचार और संवेदनायें कविता के रूप में हम सबके सामने प्रकट हो रहे हैं।

लगभग हर कविता में यह दर्द उभर कर सामने आ रहा है। कवि झा अपने गांव और माँ को याद कर के भावुक हो रहे हैं। "कब लौट के तू आये" कविता माँ के प्रति भावपूर्ण रचना है।

माँ से दूरी के इलावा, इन कविताओं का मुख्य मुद्दा गांव और किसानों की समस्याओं का है। "मैंने खेत है गंवाई", "किसान" और पुस्तक के शीर्षक वाली कविता "मेरा गांव, मेरे खेत" किसानों और उनकी मुसीबतों को समर्पित कविताएं हैं।

उनकी कविता की एक पंक्ति "देश यहां बसता है, पर हालत यहां खस्ता है" उनकी मनोदशा को उकेरित करने के लिए पर्याप्त है।

"उसका मुस्कुराना" और "प्यार कितना है" कविताएं हृदय के कोमल भावों को इंगित करती श्रेष्ठ रचनाएं हैं।

"ज़िंदा शहीद" और "आगे बढ़ो" कविताएं देश के सैनिकों के प्रति समर्पित हैं।

मुझे विशेष रूप से उनकी कविता "श्वेत वस्त्र की दासी" बहुत उत्कृष्ट लगी, हर बार पढ़ने पर नए अर्थ सामने आ रहे थे।

"नयी पीढ़ी" कविता में पिता-पुत्र के संवाद के माध्यम से पिता की संस्कारों के प्रति परेशानी को अच्छे से व्यक्त किया है।

बादल, पैगाम व प्रेम कविताएं पाठकों को पसंद आएंगी।

पुस्तक की अंतिम कविता "विकास की कहानी" में कवि मुखर हो कर कह रहे हैं कि "काग़ज़ के चंद टुकड़ों में, विकास की कहानी है, गांव की दशा तो, वही सदियों पुरानी है"

सृजनात्मकता और गहन अनुभूति का समन्वय अगर देखना हो तो इससे अच्छी पुस्तक और कोई नहीं हो सकती। कम शब्दों में प्रवाहपूर्ण और सारगर्भित विचार इन रचनाओं में देखने को मिले। शब्दों के आवरण के पीछे कवि के हृदय में उमड़ते भावों तक जाने का अवसर मिला।

पुस्तक मुद्रण और साज सज्जा की दृष्टि से बहुत आकर्षक है। काव्य प्रेमियों के लिए अच्छा संग्रह साबित होती, उत्कृष्ट पुस्तक।


                     अनुजीत इकबाल



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