(पुस्तक परिचय): कलम उठाने दो
राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत 'कलम उठाने दो' मोहन सिंह कुशवाहा की उन प्रारंभिक रचना एक है जो उन्होंने राजभाषा-हिन्दी के प्रचार-प्रसार के विभिन्न आयुध निर्मा कानपुर के प्रतिभा-खोज' अभियान के अन्तर्गत अपने प्रथम प्रयास के का में प्रस्तुत की थी। श्री मोहन, आज ओज और प्रेरक गीतों के एक स्थापित सूयश प्राप्त कवि हैं तथापि उनके प्रथम प्रयास में भी उनकी कलम समाज में व्याप्त विकृतियों पर करारा प्रहार करने के लिए मचल उठी थी। यह सुविचारित।

तथ्य है कि राष्ट्रीय भावानाओं से ओत-प्रोत मोहन जैसे कवि की सशक्त कलम जब अपनी रचनाओं में हल्दीघाटी की शौर्य-गाथा, कृष्ण की गीता उपदेश.हनुमान का लंका दहन तथा चंद्रबरदाई द्वारा नेत्र-विहीन पृथ्वीराज को भी अचूक निशाना गाने की ओजस्वी प्रेरणा देने में सक्षम हो पाती है, तभी समाज व राष्ट्र के निर्माण और सुरक्षा के लिए संकल्पित एवं समर्पित समाजसेवी व सेनानी मिल पाते हैं।


                  श्री मोहन सिंह कुशवाहा



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