त्रैमासिक "सृजन कुंज" का बाल साहित्य विशेषंक : महत्वपूर्ण उपलब्धि
           श्रीगंगा नगर ,राजस्थान से प्रकाशित  प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "सृजन कुंज"  का नवम्बर 2019 का अंक यों तो अब फरवरी 2020 में आ पाया है पर एक बात दावे से कहना चाहूंगा कि आज तक प्रकाशित विभिन्न पत्रिकाओं के "बाल साहित्य विशेषांक" को पीछे छोड़ दिया है। इसके सम्पादक  डॉ कृष्ण कुमार आशु एवम अंक सम्पादक डॉ. नवज्योत भनोत  बधाई के पात्र है। डॉ आशु ने अपने सम्पादकीय में लिखा है, "बच्चों के हित की बात अमूमन सरकारें नहीं सोचती। चूंकि बच्चे के पास वोट देने का अधिकार नहीं होता..... विचारधाराओं के युद्ध भी अब बच्चों पर थोपने का काम शुरू हो गया है..." कुल मिलाकर बच्चों, उनकी आवश्यकताओं, उनके मनोविज्ञान को लेकर सार्थक बात कही गई है। अन्यथा आज अधिकांश पत्रिकाएं "बाल विशेषंक" के नाम पर  केवल बच्चों की रचना छाप कर  इतिश्री कर लेती है ऐसे में यह विशेषांक आशा की किरण बनकर सामने आया है।हमारे देश का बाल साहित्य अब बहुत उम्मीद जगाने लगा है, उसको नई चमक मिलने लगी है। बाल साहित्य की प्रतिष्ठा में "सृजन कुंज" का यह "बाल साहित्य विशेषांक" बहुत बड़ी उपलब्धि कही जा सकती है।

    अभिभावकों, शिक्षकों, बालसाहित्य लेखकों, सम्पादकों, प्रकाशकों एवम बाल कल्याण संस्थाओं के लिए यह विशेषांक एक ऐसा अवसर प्रदान कर रहा है जिसमें नन्हें मस्तिष्कों के भीतर झांक कर  वर्तमान परिवेश में उनकी चेतना के बारे में नवीन अन्तर्दृष्टि   प्राप्त की जा सकती है। यह अपने आप में एक मौलिक प्रयोग और अद्भुत अनुभव है जिसमें श्री गोविंद शर्मा, डॉ बबिता काजल, डॉ शशि गोयल, डॉ उमेशचन्द्र, डॉ मधु वर्मा, डॉ अनिता प्रजापत,  डॉ प्रति प्रवीण खरे,डॉ धर्मपाल, श्री कृष्ण कुमार यादव, श्री सागर चौधरी, कंचन लता  एवम आपके इस मित्र राजकुमार जैन राजन के बाल साहित्य के समग्र चिंतन पर  अपने- अपने शोध आलेखों के माध्यम से उत्कृष्ट दिशा, विमर्श प्रदान करने का प्रयास किया है। साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त लब्धप्रतिष्ठित बाल साहित्यकार डॉ दिविक रमेश जी से डॉ प्रति प्रवीण खरे द्वारा लिया गया साक्षात्कार उनकी रचनाधर्मिता सहित बाल साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर सार्थक प्रकाश भी डालता है । डॉ नागेश पांडेय संजय, श्रीअनिल जायसवाल, विमला भंडारी, श्रो शिखरचंद जैन,डॉ प्रीति प्रवीण खरे, श्री गिरिराज शरण अग्रवाल, डॉ मंजरी शुक्ला, डॉ शील कौशिक, डॉ सन्देश त्यागी, अंजीव अंजुम, पवन पहाड़िया, नरेश मेहन, गोविंद भारद्वाज, कीर्ति शर्मा, सपना मांगलिक , ललित शौर्य , कुसुम अग्रवाल,, प्रमोद सोनवानी, अब्दुल समद राही, आकांक्षा यादव, उषा किरण सोनी जैसे प्रतिष्टित रचनाकारों की परिमार्जित व  परिनिष्ठित रचनाये बाल साहित्य की  प्रतिनिधि रचनाएँ कही जा सकती है जिनका चयन सम्पादकीय कौशल का परिचायक है। इस अंक में डॉ. शील कौशिक  व  कीर्ति शर्मा के बाल कहानी संग्रह "धूप का जादू" एवम "दोस्त का जादू" बाल कहानी संग्रह की क्रमशः डॉ दिनेश पाठक शशि।तथा दुर्गश द्वारा की गई सटीक समीक्षा के साथ ही  ख्यातनाम कवि डॉ सन्देश त्यागी के बाल कविता संग्रह की  स्तरीय समीक्षा भी अंक को बहुआयामी बनाने में सहयोगी बनी है। बाल साहित्य का लेखन व बाल साहित्य के संदर्भ में लेखन, सम्पादन, प्रस्तुतिकरण केवल कला ही नहीं समय, श्रम व अर्थ साध्य चुनौती भी है।सम्पादक का यह कथन कि, " जिस तरह "बाल साहित्य" के नाम पर "कुछ भी" लिख देना आपकी मजबूरी है ,ठीक वैसे ही "कुछ भी" न छापने की हमारी भी जिद है।"   महज़ खानापूर्ति के लिए नहीं ,बहुत ही संवेदनशील होकर , पूरी निष्ठा से इस अंक का सम्पादन किया गया है ,जो इस "बाल साहित्य विशेषांक "  को औरों से विशिष्ठ बनाता है। 

   बाल साहित्य की दुनिया में  इस वैचारिक समय में "सृजन कुंज" का यह विशेषांक एक ऐसे सेतु का काम करेगा जो बाल साहित्य को उसके वास्तविक हकदार "बालकों" तक पहुंचाने की प्रेरणा देगा, इसके महत्व को प्रतिष्टित करेगा।इस विशेषांक में कुछ ऐसे चिंतन के मुद्दे भी प्रस्तुत किये गए है जो आज के संदर्भ में सामयिक है, महत्वपूर्ण है और आवश्यक भी। बाल साहित्य को एक नई वैज्ञानिक चेतना से युक्त करने की भी आवश्यकता है।  और यह अंक इस दिशा में एक महनीय कदम कहा जा सकता है।

      यह अंक बाल साहित्य  से सरोकार रखने वाले पाठकों, लेखकों, शिक्षकों, अभिभावकों के लिए तो महत्वपूर्ण है  ही ,वहीं इस क्षेत्र में कार्य कर रहे शोधार्थियों के लिए भी आवश्यक है।  इस विशेषांक में हिंदी बाल साहित्य के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया गया है। यदि इस  विशेषांक में उठाई गई बातों पर अमल किया जाता है तो हम अपनी भावी पीढ़ी का भविष्य भी सुनिश्चित करने की दिशा में कुछ सार्थक कर पाएंगे।इस अनुपम अंक के लिए सम्पादक मण्डल बधाई का पात्र है।आप सबसे अनुरोध है कि इस उत्कृष्ठ पत्रिका को नियमित रूप से पढ़ें। इसकी निरन्तरता बनाएं रखने के लिए इसके सदस्य बनकर, यथायोग्य आर्थिक सहयोग देकर  सहयात्री के रूप में  "सृजन कुंज परिवार" का हिस्सा बनें ताकि सही अर्थों में पत्रिका के "शोध, संस्कृति एवम साहित्य" यज्ञ को पूर्ण किया जा सके और पत्रिका सृजन और संवाद का माध्यम बन सके।



        समीक्षा- राजकुमार जैन राजन



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