'अँधेरे भी उजाले भी' (गीत-संग्रह)

गीतकार हरीलाल 'मिलन' की रचनाधर्मिता से मैं
लगभग बीस वर्षों से परिचित हूँ जब इनका प्रथम
खण्ड-काव्य ‘परित्यक्ता' प्रकाशित हुआ। मैने इसकी
समीक्षा भी की है। खण्ड काव्य से ही सिद्ध हो गया कि
मिलन जी के छन्द अनुशासनबद्ध हैं। गीत की संरचना
में छंद का विशेष महत्व होता है जबकि हर समय वह
एक-सा नहीं रहता। अन्तर्वस्तु के परिवर्तन पर छंद की
संरचना में परिवर्तन आ सकता है किन्तु असंयमित
होने पर यदि कहीं भी लयात्मकता बाधित हुई या
सजनात्मक सौन्दर्य-बोध कमजोर पड़ा तो गीत का
प्राणतत्व आहें भरने लगता है। गीत अपने घटकों के
साथ मर्यादा में रहकर ही पाठकों को गीतकार के
निर्धारित लक्ष्य या उसके शिखर-बिन्दु पर ले जाते हैं।
किसी भी गीत की सार्थकता और सफलता भी इसी में
है कि वह पाठक या श्रोता के हृदय में सीधे उतर जाये
और आँखें मोती लुटाने पर मजबूर हो जायँ। 'अँधेरे
भी उजाले भी' गीत-संग्रह के गीतों का सृजन सहज
रूप से हुआ है। जीवन के दो पहलू हैं-- दुःख और
सुख। अँधेरे और उजाले इन्ही दोनों के प्रतीक है। गीतों
के रसास्वादन से कहीं आँखे भीगती है तो कहीं अधर
हँसते हैं। हर गीत का अपना अलग लक्ष्य है, अलग
स्वाद है और अलग खुशबू है। संग्रह में एक ओर प्यार
का समुन्दर हिलोरें ले रहा है तो दूसरी ओर सामाजिक
विषमताओं पर पैनी नज़र रखते हुए गीतकार समाज
को सजग प्रहरी की भाँति जगाने का प्रयास भी कर रहा
है। इन गीतों में न तो कहीं अपरिहार्य-पारम्परिक-
सौन्दर्य नष्ट हुए हैं और न ही समसामयिक विषयों का
तिरस्कार हुआ है। अँधेरे में चमकते जुगनुओं की भाँति
संग्रह के पृष्ठों पर यत्र-तत्र प्रकाशित मुक्तक भी
सहृदयों को कम आनन्द नहीं देते। सचमुच मिलन की
यह कृति भी उनकी अन्य कृतियों की भाँति हिन्दी
साहित्य की अनूठी धरोहर साबित होने के संकेत दे रही


 प्रो. (डॉ.) वी.जी. गोस्वामी




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