जो तुमको हो पसंद
फिर से वही गीत गुनगुनाओ ना  जो तुम हमेशा गाया करती थी मेरे लिए

    ***** जो तुम को हो पसन्द वही बात कहेंगे, तुम दिन को अगर रात कहो ,रात कहेंगे ****      

  माना कि रूप की धूप नहीं  रही चेहरे पे , मग़र शाम की लाली तो अभी भी है रूख़सारों  पे ।  पीना चाहता हूँ फिर से तेरे नैनों की मदिरा , जाम पर जाम भर के पिला दो , फिर से वही  रफ़ीकों  ( तेरे मेरे नयन ) की महफ़िल सजा दो । 

ज़रा नज़रों से नज़रें  मिला कर फिर से मुझे मदहोश कर दो , हुस्न के जलवे दिखा कर फिर से मुझे बहका दो ।  बीमारे - ग़म हूँ आज भी पहले सा तुम्हारा,  ना समझो  राहे -शौक़  (इश्क का मार्ग )  भूल चुका ।  

तहूर सा हुस्न तुम्हारा जलाता है आज भी मुझे आतिशे-ग़म में , इक बार फिर से वो पहला सा प्यार बरसा दो । 

 माना कि कुछ फर्ज़  निभाते-निभाते  तेज़ रफ़तार हो गई हमारी,   माना कि कुछ टूटे रिश्तों  को  जोड़ने  में  ,कुछ  रूठों को मनाने में,  रह गई हसरतें  अधूरी कुछ ।

 कहीं  थम ना जांऐ साँसे हमारी , रह जाए ना प्यार का कर्ज़ कोई , चलो हसरतों को फिर से जगा दे , इस ढलती शाम को इक बार फिर से सजा दें ।

आओ एक बार फिर से वही गीत गुनगुना दें ** जो तुमको हो पसन्द वही बात कहेंगे *********

 


                  प्रेम बजाज



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