मौसम बदलना चाहिए
मेरी वर्षों की साहित्यिक साधना आज आपके समक्ष एक नए काव्य- संकलन के रूप में प्रस्तुत है। इसे सौंपते हुए अपार हर्ष की अनुभूति हो रही है।

     इस संग्रह की रचनाओं में विभिन्न मानवीय रिश्तों की सूक्ष्मतम संवेदनाओं की जानी-पहचानी सी महक महसूस की जा सकेगी। साधारण तौर पर देखें तो हमारे रिश्तों की बुनियाद में सबसे पहले हमारा अपना खुद का परिवार आता है।

ये पारिवारिक संवेदनाएँ जब थोड़ी और अधिक परिपक्व हो जाती हैं तो ये दायरा बढ़ जाता है, फलस्वरूप सामाजिकता का उद्भव होता है। संवेदनाओं की खुशबू जब स्थानीय सामाजिक सीमाओं को लाँघ जाती है तो फिर यही व्यापकता एक अर्थ में राष्ट्रवाद कहलाती है। इस संग्रह की रचनाएँ इन तमाम तरह की संवेदनाओं का एक लघु-जुटान है, ऐसा मैं महसूस करता हूँ।

आलोचना के स्वर रचनात्मक होने चाहिए, जिनका ध्येय घृणा का वहन न हो कर सजन का संदेश हो। इस संकलन के माध्यम से मैंने भी ऐसा ही प्रयास किया है। मेरा उद्देश्य किसी की भावना को आहत करना नहीं बल्कि, उनकी सोच को एक विस्तृत वैचारिक आयाम प्रदान करना है। उम्मीद करता हूँ कि जिस भावना के साथ मैंने यह संग्रह तैयार किया है उसकी खुशबू को आप लोग भी

महसूस कर सकेंगे। इस संग्रह को तैयार करने में जिन लोगों का प्रत्यक्ष या परोक्ष सहयोग मिला उन सबका हृदय से आभारी हूँ। पुस्तक के आवरण का श्रेय मेरे मित्र श्री प्रभाकर कुमार को जाता है। पुस्तक के प्रकाशन में समुचित सहयोग के लिए अंजुमन प्रकाशन को हृदय से धन्यवाद।

 


                                        नीरज



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