कुछ.... अठारह वर्ष का रहा होगा वो , जब उसने मदिरापान की शुरुवात कर दी ,
अपनी स्वर्ण सी ज़िन्दगी , कैसे उसने खुद के हाथो राख कर दी ,
घरवालो का लाडला और सबका प्यारा था वो ,
अपने माँ बाबा की आँखों का तारा था वो |
एक दिन....दोस्तों की संगत में पड़कर , उसने शराब का स्वाद चख लिया ,
फिर ये रोज नशा करना तो उसने , अपने नित्य कर्मो में रख लिया ,
नशे में डूबते पड़ते लडखडाते ,चार दोस्त उसे हर रात घर छोड़ जाते ,
माँ उसे देख अश्रु बहाती , पिता ये लत छोड़ने की हर रोज समझाते |
फिर सबने सोचा ....विवाह कर दो इसका , ये कुछ सुधर जायेगा ,
घर परिवार में पड़ने पर , शायद ये नशे से मुकर जायेगा ,
पर वास्तव में , उसने एक मासूम लड़की की जिंदगी बर्बाद कर दी ,
सपनो से भरी टोकरी उसकी , रख अलमारी में बंद वो ताख कर दी |
समय बीता....उसका हर अपना उससें रूठा ,
परन्तु उसका नशे से ताउम्र साथ ना छूटा ,
रोज नशे में आना बीवी बच्चो पर हाथ उठाना ,
घर के सारे पैसे जेवर बस मदिरापान में उड़ाना |
बस...यही तक सीमित उसका जीवन हो गया था ,
वो पूरी तरह से नशे में खो गया था ,
न खुद का होश रहता था , ना बच्चो की फिकर ,
मदिरा ही खोजता बस , वो जाता जिधर |
फिर....बत्तीस वर्ष की अवस्था में उसे कई रोगों ने पकड़ लिया ,
मृत्यु ने आकर उसे अपने आगोश में जकड़ लिया ,
कितनी आसानी से ज़िन्दगी ने उसका साथ छोड़ दिया ,
खुशहाल सा परिवार ....बस नशे की लत ने तोड़ दिया |
शव उठा ....वृद्ध माता पिता चीखते और बिलखते रह गए ,
पत्नी सदमे में थी और बच्चे सिसकते रह गए ,
हँसता खेलता परिवार देखो कैसे बिखर गया ,
नशा फिर एक बार अपनी विजय कर गया ,
नशा फिर एक बार अपनी विजय कर गया ||
आंशिकी त्रिपाठी "अंशी "
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