प्रकृति से सीखो जीवन
प्रकृति की धानी चुनर को, ओढ़ धरा यूं खिली हुई है

सूरज की किरणों के संग में, लालिमा ज्यों मिली हुई है ।

 

इस रंगत में रचा बसा है, प्रकृति का प्रेम भरा पल

जीवन को यूं जीते जाओ तुम, ज्यों झरना बहता है कलकल ।

 

पंछी की कलरव को सुनो तुम, मीठे से गीत सुनाते हैं 

नदियों की धारा में बहो तुम, जीवन संगीत बनाते हैं ।

 

ये पर्वतों की ऊंची चोटियां, जीवन लक्ष्य निर्माण करें 

सागर के तल में जाओ तुम, ये रत्नों से गोद भरें ।

 

पेड़ों की छाया को देखो, सुख के दिन आभास कराए

सूरज की गर्मी भी देखो, दुख के दिन कटते ही जाए ।

 

चन्द्र- कलाएं ये बतलाती, वैभव घटता बढ़ता है 

चींटी की मेहनत से सीखो, परिश्रम ही आगे बढ़ता है ।

 

धरती की ये गहरी घाटियां, दिल के राज बताती है 

एक बार आवाज दो तुम, ये पुनरावृत्ति दोहराती हैं ।

 

मानव जीवन का पूरा सांचा, प्रकृति के हर रंग में बसा है

प्रकृति से सीख चलो तुम, फिर जीवन का अपना ही मजा है ।

 


               देवकरण गंडास "देव"



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