विश्व ऑटिज्म यानि आत्म केंद्रित जागरूकता दिवस
विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस हर साल 2 अप्रैल को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त दिन है, जो संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों को दुनिया भर में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार से पीड़ित लोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के उपाय करने के लिए प्रोत्साहित करता है। सम्पूर्ण विश्व में 2 अप्रैल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस मनाया जाता है। ऑटिज्म (Autism) एक आजीवन न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो लिंग, जाति या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बावजूद बचपन में हो जाती है। आइये इस लेख के माध्यम से अध्ययन करते है कि विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस क्यों मनाया जाता है, ऑटिज्म कैसी बिमारी है, इसके क्या लक्षण है, कैसे होती है आदि।

हर साल मनाया जाता है यह दिवस :- 

प्रत्येक वर्ष 2 अप्रॅल को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस (World Autism Awareness Day) पूरी दुनिया में मनाया जाता है. 2 अप्रैल 2007 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस दिन को विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस घोषित किया था। पूरे विश्व में आत्मकेंद्रित बच्चों और बड़ों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए संयुक्त राष्ट्र के सदस्य राज्यों को प्रोत्साहित करता है और पीड़ित लोगों को सार्थक जीवन बिताने में सहायता देता है। क्या आप जानते हैं कि नीले रंग को ऑटिज्म का प्रतीक माना गया है। इस बीमारी की चपेट में आने के बालिकाओं के मुकाबले बालकों की ज्याहदा संभावना है। इस बीमारी को पहचानने का कोई निश्चित तरीका अभी तक ज्ञात नहीं हुआ है। दुनिया भर में इस बीमारी से ग्रस्त लोग हैं जिनका असर परिवार, समुदाय और समाज पर पड़ता है। 

 विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस - 2020

 (world autism awareness day 2020)

ऑटिज्म बच्चों में होने वाला एक मानसिक विकार है। इस रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से ही संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 2007 में 2 अप्रैल के दिन को ‘विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस’ घोषित किया था। पूरी दुनिया में बच्चों में होने वाली इस मानसिक विकार को रोकने, जागरूक करने, उनके जीवन में सुधार लाने के लिए कई तरह के महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते हैं। ‘वर्ल्ड ऑटिज्म अवेयरनेस डे’ का उद्देश्य उन बाधाओं पर एक स्पॉटलाइट डालना है, जो ऑटिज्म से पीड़ित लोगों के रास्ते में आती है। 

जानें, ‘विश्व ऑटिज्म जागरूकता दिवस 2020’ (world autism awareness day 2020 in hindi)

आखिर ऑटिज्म क्या है :- 

ऑटिज्म (Autism) एक आजीवन न्यूरोलॉजिकल स्थिति है जो लिंग, जाति या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के बावजूद बचपन में हो जाती है। यानी यह एक प्रकार का मानसिक रोग है जो विकास से सम्बंधित विकार है, जिसके लक्षण जन्म से या बाल्यावस्था यानी प्रथम तीन वर्षों में ही नज़र आने लगते है।  ये बिमारी पीड़ित व्यक्ति की सामाजिक कुशलता और संप्रेषण क्षमता पर विपरीत प्रभाव डालता है। इस रोग से पीड़ित बच्चों का विकास अन्य बच्चों की अपेक्षा असामान्य होता है. ऐसे बच्चें एक ही काम को बार-बार दोहराते है आदि। इन सब समस्याओं का प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार में भी दिखाई देता है, जैसे कि व्यक्तियों, वस्तुओं और घटनाओं से असामान्य तरीके से जुड़ना। 

 




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