ये संध्या की बेला का सूनापन उस पर एक तुम्हारी यादों की कसक,
तुम्हें जाना था तुम चले गए पर मैं तुम्हें भूल ही नहीं पा रही.!
मूक आह ओर वेदनाओं के प्याले, साँसे रूँधती अश्कों की जंजीरे हृदय आकाश के उजाले पर अंजन सी प्रसरते रह रहकर रुलाती है.! वो उस पूनम की रात का सफ़र तुम्हारी आगोश में फ़डफ़डाते नाजुक तन की सिहराई कम्पन, प्यासे चुंबन होंठों की हंसती पीर में मोती से अश्रु की पात भर जाते है.!
सप्तर्षि की चाल से पुछूँ या मंद बहती बयार से मुँह मोड़ कर जाने वाले मैं किससे पुछूँ पता तेरा
याद में तेरी पल पल रोते मुर्झाए से लोचन फ़रियाद किए जाते है.!
कण-कण समेटे जाऊँ डूबते आदित का उजाला फिर भी
शाम के झीने उजियारे में बिखरा मेरे मानस का अंधेरा,ना कोई खबर ना संदेशा तेरा ,
अब तो उम्मीदों के मोती अलसाकर आँखों से गिरते जाते है,
कहीं से आ जाओ कुछ तो बता जाओ
मैं तुम्हें भूल ही नहीं पा रही हूँ।
भावना ठाकर
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