वृद्धआश्रम में पांच साल से रह रही 70 वर्षीय वीना ने कहा कि इन पांच सालों में उन्हें कभी महसूस नहीं हुआ कि यह उनका घर नहीं है। बुजुर्ग आदर सम्मान का ही भूखा होता है, जो हमें यहां भरपूर मिल रहा है। आश्रम के संस्थापक उन्हें अपनी माता के समान समझते हैं।
65 वर्षीय शमा ने बताया कि उन्होंने शादी नहीं की। वे तीन बहनें थीं, कोई भाई नहीं था। शादी के बाद बहनें अपने-अपने ससुराल चली गईं और वह अकेली रह गईं। उसके बाद आश्रम में आ गई। यहां का माहौल परिवार वाला है। सब एक दूसरे की परिवार के सदस्य की तरह देखभाल करते हैं।
69 वर्षीय शकुंतला ने बताया कि वह पिछले 4 साल से इस आश्रम में हैं। उसके बेटे की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी, जिसके बाद उसका कोई सहारा नहीं रहा। अब यहीं उनका घर है और यही परिवार। यहां उन्हें बेटा व बेटी सहित सारे रिश्ते मिल गए। सब बहुत प्यार करते हैं। आज तक उसे अकेलेपन का अहसास नहीं होने दिया।
75 वर्षीय रमन ने बताया कि वो 6साल से वृद्धाश्रम में हैं,चैन और सुकून है । बेटों की गृहस्थी के सभी तरह के काम करने के बदले अति आवश्यक खाद्य पदार्थ के सहारे जीवन काटते थक चुके थे और किसी मित्र की सहायता से आश्रम में आगया ।
76वर्षीय योगेश अपनी 71वर्षीय पत्नी के साथ, बेटे बहू द्वारा अपने ही घर से निष्कासित किए जाने के बाद आश्रम में सुकून से हैं और सम्मानित महसूस करते हैं ।
ऐसे बहुत सारे सच्ची व्यथाएं और अनुभव हमारे आस पास दिखती हैं ।
बुजुर्गों के लिए सेवा, सुरक्षा और सम्मान यह तीन चीजें सबसे ज्यादा महत्व रखती हैं। प्राय: सभी आश्रमो में सबसे ज्यादा ध्यान इन्हीं तीन बातों पर दिया जाता है। ये तो हम सब जानते हैं कि हमें अपने घरों से बुजुर्गों का सम्मान करना चाहिए। उनके आशीर्वाद से बड़े से बड़ा कष्ट भी हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। बुजुर्गों को समय दो, पास बैठकर उनका हाल-चाल जानो। ऐसा करोगे तो वे तुमसे अपने दिल की बात करेंगे। किसी बुजुर्ग का दिल जीत लेना बहुत बड़ी बात होती है। कई बार बुजुर्ग माता-पिता को बच्चा समझकर इनकी देखभाल करनी होती है । जो औलाद बुजुर्ग माता-पिता को अपने पास रखेगी उसे जिंदगी में कभी किसी चीज की कमी नहीं आएगी।
----ये सब बातें आदर्श वाक्य जैसी हो कर रह गई हैं और वास्तविकता इससे परे है ।
बहुत सारे बेटे बहू के लिए आटा, दाल,चावल,नमक,हल्दी के खर्चे उठाना ही अपने माता पिता की देखभाल करना होता है। और यदि उनको इसके अतिरिक्त कुछ और चाहिए, चाहे दवाईयां ही ,तो अपने पैसे से खरीदें ।
समाज का ये बहुत ही पीड़ादायक और संवेदन हीन स्वरूप है ।
विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस हर साल 15 जून को वरिष्ठ नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार के बारे में शिक्षित करने के लिए मनाया जाता है। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के मुद्दे को उजागर करने के लिए समर्पित है ।
यह दिन दिसंबर 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा संकल्प 66/127 में आधिकारिक रूप से स्वीकार किए जाने के बाद स्थापित किया गया था। यह प्रस्ताव तब सामने आया जब इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर प्रिवेंशन ऑफ एल्डर एब्यूज जून 2006 में इस दिन को मनाने का अनुरोध किया था।
वृद्ध लोगों के साथ दुर्व्यवहार और उपेक्षा , यह एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा है जो न केवल वृद्ध लोगों के स्वास्थ्य को प्रभावित करता है बल्कि उनके अधिकारों को भी कम करता है।
और संभावता इसीलिए विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस हर साल 15 जून को वरिष्ठ नागरिकों के साथ दुर्व्यवहार के बारे में शिक्षित करने के लिए मनाया जाता है। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार के मुद्दे को उजागर करने के लिए समर्पित है। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस के लिए 2021 वर्ष की थीम 'न्याय तक पहुंच' है। ये दिन जून 2006 में अस्तित्व में आया, जब 15 जून को बुजुर्गों के लिए विशेष दिन घोषित करने का अनुरोध संयुक्त राष्ट्र से किया गया था। संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) द्वारा विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस को आधिकारिक रूप से मान्यता साल 2011 में दी गई थी। इस वर्ष का विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस कोरोना वायरस के प्रकोप के बीच और भी ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है। विशेषज्ञों ने बुजुर्गों (60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों) को कोरोना वायरस से बचाव के लिए अधिक सावधान रहने की सलाह दी है क्योंकि वे इसके प्रति ज्यादा संवेदनशील हैं।बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार शारीरिक, यौन, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक और वित्तीय हो सकता है और इसमें उपेक्षा भी शामिल हो सकता है। बड़े पैमाने पर बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार का डेटा कम है...क्योंकि आमतौर पर इसके मामले कम रिपोर्ट की जाती है।
करोनावायरस महामारी के प्रकोप और उसके बाद लगे लॉकडाउन ने बुजुर्गों चुनौतियां केवल बढ़ाई हैं। कोरोना के कारण वृद्ध लोगों को मृत्यु दर और गंभीर बीमारी का अधिक खतरा होता है। कोरोना काल में वरिष्ठ नागरिकों के जीवन को और अधिक खतरा है।
हाल ही मे एक रिसर्च से पता चला है कि भारत में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच लॉकडाउन के दौरान लगभग 73 प्रतिशत बुजुर्गों को दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा। विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस 2021 से पहले ये सर्वेक्षण जारी की गई है। इस सर्वेक्षण में 5,000 से अधिक बुजुर्गों को शामिल किया गया था। 5,000 बुजुर्गों में से 82 फीसदी बुजुर्ग ने कहा है कि मौजूदा कोरोना महामारी की स्थिति ने उनके जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
इसके अलावा, हमारे समाज में तेजी से हो रहे बदलावों के कारण बुजुर्गों को अकेलापन और दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ रहा है। डिजिटल क्रांति, औद्योगीकरण, शहरीकरण और वैश्वीकरण हमारे सांस्कृतिक और पारंपरिक मूल्यों को बदल रहे हैं। मौजूदा फैमिली सिस्टम और दिन-प्रतिदिन हर गतिविधियों का डिजिटल होना वृद्ध वयस्कों को हाशिए पर डाल रहा है। इसलिए उनकी सुरक्षा करना अब पहले से कहीं अधिक ज्यादा जरूरी हो गया है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका दुरुपयोग और शोषण न हो। उनकी देखभाल करना हमारा सभ्यतागत कर्तव्य है।
इसका निदान लोग अपने अपने अनुसार ढूंढ रहे हैं और आजकल वृद्धाश्रमों का भी बोलबाला है कुछ वृद्ध इसको मजबूरी बताते हैं तो कुछ हेय दृष्टि से भी देखते हैं। मेरी व्यक्तिगत सोच कभी भी इस तरह के आश्रमों के पक्ष में नहीं रही। मैं तो यही चाहती हूँ की घर में बुजुर्गों का साथ हमेशा बना रहे। उनका साथ एक आशीर्वाद होता है ।
एक दृष्टिकोण यह भी है कि हमारे पूर्वजों ने जीवन के अंत समय में जब व्यक्ति के दायित्वों की पूर्ती हो जाती थी "वानप्रस्थ" की व्यवस्था दी थी शायद ये वृद्धाश्रम वानप्रस्थ का आधुनिक रूप हों।
लेकिन वास्तव में मेरे विचार में हमारे बुजुर्ग हमारी प्रेरणा होते है ।जीवन के प्रत्येक पड़ाव पर भी वो अनुकरणीय उदाहरण देते हैं और हम सदा से अपने बुजुर्गों से ही सीखते आये हैं वो अपने जीवन भर के अनुभव की पूँजी से समाज को सार्थक दिशा देते हैं ।
हमारे युवाओं को भी समय प्रबंधन थोड़ा ठीक करना होगा और अपने बुजुर्गों को स्नेह और सम्मान देना होगा ,उनके स्वास्थ्य के अनुसार उनको अपने जीवन की जिम्मेवारियों में शामिल करके उनके अनुभव का लाभ उठा सकते हैं और उनका एकाकीपन भी दूर कर सकते हैं । आखिर वो आज जो कुछ भी हैं अपने बुजुर्गों के कारण ही हैं।
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