मौसम बारिश का हुआ,भींगे सारे लोग।
सर्दी खांसी बढ़ रही,बढ़ते जाते रोग।।
मौसम बदले रंग तो,होश सभी उड़ जाय।
खेतों में फसलें खड़ी, सारी ही गल जाय।।
मौसम का रुख देख कर, घबराते हैं लोग।
बारिश जो होती रहे,बढ़ते जाते रोग।।
आया है ऋतुराज तो,दिल मे बजते साज।
धरती भी सजने लगी,खूब लुभाती आज।।
सावन की ऋतु आ गई, ,रिमझिम बरसे मेह।
तन मन सारे भींगते, करते सब ही
नेह।
वन उपवन में झूमते, कांटों में भी फूल।।
सावन की ऋतु आ गई, उड़े नहीं अब धूल।।
तन मन सिकुड़ा जा रहा,शीतल मंद फुहार।।
मौसम तो बतला रहा, देखो रंग हजार।।
मौसम देख सुहावना,बंधी मन मे डोर।
अंधा होता प्रेम तो,दिखे नहीं है छोर।।
गिरगिट भी हैरान है,लोग बदलते रंग।
सच से जब परदा उठे,हो जाओगे दंग।।
पतझड़ की ऋतु आ गई,चली पवन झकझोर।
पीत पान झड़ते गए, खूब मचाए शोर।।
- राजेश कुमार शर्मा पुरोहित
भवानीमंडी
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