महत्वाकांक्षा

मनीषा आज बहुत खुश थी...। आज उसे एक बड़ी प्रतिष्ठित कंपनी से ऑफर आया था..। मनीषा अपने पति प्रतीक के आने का इंतजार कर रही थी ..। वह जानती थी कि प्रतीक  इसके लिए जरूर कुछ बोलेगा..। मनीषा की अभी शादी को एक साल ही हुआ था । उसके कोई बच्चा नहीं था....। मनीषा और प्रतीक एक मामूली सी कंपनी में जॉब करते थे। प्रतीक एक मामूली सा लड़का था। उसके नैन नक्श बहुत तीखे  और आकर्षक थे । मनीषा उसी पर तो मोहित हो गई। उसने अपने मां बाप से लड़कर हीं  तो ये शादी की  थीं । मनीषा को एक ग्लैमरस जिंदगी चाहिए थीं। वह हमेशा प्रतीक को भी कहती थी । प्रतीक तुम भी किसी बडी कंपनी में अप्लाई करो  । प्रतीक हमेशा एक साधारण से जिंदगी जीना चाहते था । प्रतीक एक गरीब परिवार से था। उसको  नहीं चाहिए  था पैसा रूपया गाड़ी बंगला.। इतने में ही खुश था। पर मनीषा तो यही सपने के लिए आगे बढ़ गई थी। वह चाहती थी उसके घर में नौकर चाकर हो और उसका अपना आलीशान बंगला हो।

           प्रतीक के आफिस से आने का समय हो गया वह प्रतीक के लिए जल्दी जल्दी चाय नाश्ते का इंतजाम करने लगी । आज वह प्रतीक का मूड  खुश रखना चाहती थीं  क्यूंकि आज उसे प्रतीक को अपने ऑफर के बारे में भी बताना था ।अभी वह चाय नाश्ते. का इंतजाम करके तैयार हो  ही रही थी, कि तभी दरवाजे पर कॉल बजी, मनीषा दौड़ती हुई गई जा के दरवाजे को खोला....। दरवाजे पर प्रतीक था।  प्रतीक ने उसे देख कर पूछा क्या तुम कहीं जाने वाली हो या कोई आ रहा है   ?  मनीषा ने मुस्कुराकर जवाब दिया ,अरे नहीं..... तुम जल्दी से हाथ मुंह धो लो और मैं चाय नाश्ता लगाती हूँ। प्रतीक को बहुत तेज भूख लगी थी उसने मनीषा से बोला मैं अभी तुरंत आता  हूँ  हाथ मुंह धो कर..। मनीषा मन ही मन अपने आप को तैयार कर रही  थी, प्रतीक से बात करने के लिए..। प्रतीक ने मनीषा को छेड़ते हुए कहा  - क्या बात है आज तो तुम बहुत प्यारी लग रही हो..। मनीषा के गालों पर लालिमा छा जाती है और शरमा के कहती हैं.....। आप भी ना..। प्रतिक धीरे से मुस्कुरा देता है पता नहीं   क्यों आज मनीषा के चेहरे पर उसे कुछ अलग ही सौंदर्य नजर आ रहा था .। एक टक मनीषा को देखे जा रहा था.। मनीषा भी उसे  तिरछी निगाहों से बार-बार देख रही थी.। मनीषा भी तो यही चाहती थी कि आज प्रतीक उस पर मोहित हो जाए और वह अपनी बात को सरलता से कह सकें। मनीषा चाय नाश्ता निकलने में व्यस्त रहती है। मनीषा प्रतीक की तरफ नाश्ते की प्लेट बढ़ाती  हैं। अभी वह चाय नाश्ता करने हीं वाले थे  । कि तब तक  मनीषा के मम्मी पापा आ गए..। अरे  मम्मी पापा आप आइए बैठिए..। आप लोग भी चाय नाश्ता कीजिये  ।  मां ने पूछा....पहले ये बता मनीषा तू कहीं जा रही है ,  शायद हम गलत टाइम पर आ गए..। अरे नहीं मां ...  आप भी कैसी बातें करती हैं..। मैं प्रतीक को आज एक गुड न्यूज़ देने वाले थेी..। मां आश्चर्य से देखने लगती है....। मनीषा थोड़ी शरमा जाती है मां मेरी बात तो सुन लो..... तुम लोग भी ना, मनीषा ने सबको चाय दी और उसके बाद उसने कहा --अब आप लोग मेरी बात को.... ध्यान से सुनिए ,और अपनी राय दीजिए..। सब मनीषा की तरफ देखने लगे, मनीषा ने बताया  आज मुझे एक बड़ी प्रतिष्ठित कंपनी से ऑफर  आया है..। उसका पैकेज भी  बहुत अच्छा है मुझे कंपनी की तरफ से कार भी आने जाने को  मिलेगी ,मनीषा की बात को सुनकर प्रतीक तो एक टक उसको देखता रहा..। वह कुछ बोलता कि उससे पहले  मनीषा के पापा उपाध्याय जी बोल पड़े  मैं बहुत खुश हूँ। मनीषा के इस ऑफर से.... माँ भी मनीषा की कामयाबी से खुश थीं .। प्रतीक कुछ सोचते हुए बोला पर तुम एक बार सोच लो । तब तक उपाध्याय जी बोले इसमें सोचने का क्या है ।अच्छी कंपनी हैअच्छे पैसे   भी है...। पर पापा वह ऑफिस  हमारे घर से बहुत दूर है....। अभी भी तो हम अच्छे से रही रहे हैं ना, अभी हमारी नई नई शादी हुई है, हम लोगों को एक दूसरे को वक्त देना चाहिए, पैसे अच्छे हैं तो काम भी ज्यादा होगा ना, उपाध्याय जी ने आगे कुछ ना बोले, जैसा तुम लोग को ठीक लगे...। हंसी ख़ुशी के बीच कब समय बीत गया है पता ही नहीं चला ..। पापा मम्मी  भी चले गए..। प्रतिक भी अपने ऑफिस के काम में जुट गया..। मनीषा रात के खाने का इंतजाम करने लगती है..। खाने की टेबल पर भी हल्की-फुल्की बात होती है...। प्रतिक सोने चला जाता है...। आज दोनों के बीच को शांति सी थी, मनीषा को भी ऑफिस का काम निपटाना था ..। क्योंकि उसे कल पुराने ऑफिस का चार्ज देना था,,और नए ऑफिस का चार्ज लेना था। वह भी अपना काम  जल्दी-जल्दी निपटाने लगती है। क्योंकि मम्मी पापा के आ जाने की वजह से वह अपना काम नहीं कर पाई थीं..। जब वह बेडरूम में जाती है। तबतक प्रतीक सो चुका था । मनीषा ---सो गए क्या  ?
 प्रतीक -- हम्म्म !
 मनीषा -प्रतिक तुमने बताया नहीं ..।
 प्रतीक- सो जाओ क़ल बात करेंगे।
           मनीषा - प्यार से जिद करने लगती है  क़ल नहीं अभी,कल लास्ट डेट है। प्रतीक ना चाहते हुए भी उठ जाता है और बोलता है,मैंने तुम्हे कब मना किया हैं। मैं तो तुमको समझा रहा था,कि तुम्हारा ऑफिस घर से बहुत दूर है आते आते तुमको बहुत लेट हो जाया करेगा।रास्ते में बहुत ट्रैफिक  रहेगा, इन सब चीजों  से तुमको अवगत करा रहा हुँ,  आने वाली बहुत सी परेशानियों का सामना करना पड़ेगा । तुम्हारे पास टाइम नहीं रहेगा  । अभी कम से कम हम दोनों साथ  तो जाते हैं। साथ आते हैं  एक दूसरे को वक़्त तो देते हैं ।  मनीषा बोली -प्रतीक कुछ पाने के लिए कुछ खोना पडता है.। तुम मानोगी तो हो नहीं,    जिसमें तुम खुश उसने मैं खुश , अब सो जाओ ।   अब मनीषा को संतोषजनक उत्तर  मिल गया था। वह  निश्चिंत  होकर सो गई  ।
           दूसरे दिन उसने ऑफिस
ज्वाइन कर लिया। अब वहअपनी नई नौकरी से बहुत खुश थी। और उसकी सैलरी बढ़ गई है .।   अब प्रतीक सुबह मॉर्निंग में देर से जाता ।और मनीषा पहले निकल जाती।क्यूंकि उसका आफिस दूर था.।
                    अब तो मनीषा के पास टाइम ही नहीं रहता था.। कि वह प्रतीक से बात करें। जब तक मनीषा ऑफिस से आती तब तक प्रतीक सो चुका होता । वो रास्ते से कुछ पैक करा लेता खुद भी खा लेता ,और मनीषा के लिए भी रख देता । प्रतिक को भी अब घर में अकेला  अच्छा नहीं लगता था.। उसने भी एक ऑफिस में अप्लाई किया ..।  उसे भी एक अच्छी नौकरी मिल गई..। अब दोनों अपनी नौकरी में खुश थे। लेकिन दोनों के पास एक दूसरे के लिए अब टाइम ना था । अब दोनों को बातें किए महीनों बीत जाते थे। अक्सर फोन पर ही बातें हो जाया करती थी,दोनों के बीच । उन दोनों का प्यार न जाने कहां खो गया था । अब मनीषा और प्रतीक के पास पैसा गाड़ी,बंगला सब था.। पर अब एक दूसरे के लिए समय नहीं था।
                        मनीषा  अब अपनी  भागदौड़ की जिंदगी से थक चुकी थी।  एक दिन मनीषा सोचने लगी। वह दिन कहां चले गए। जब प्रतीक उसको छेड़ा करता था ।उसे घूमा ने ले जाया करता था । उसकी तारीफ किया करता था.। उसके सौंदर्य को एकटक निहारता  रहता था। उसको वह सब कितना अच्छा लगता था। वह सब वह मिस कर रही थी। उस दिन मनीषा ने अपने ऑफिस से छुट्टी ली थीं ।प्रतीक को भी छुट्टी लेने को बोला । प्रतीक ने बोला मेरी नई कंपनी है मैं छुट्टी नहीं ले सकता सॉरी डार्लिंग । आज मेरी मीटिंग है, मुझे रात को लेट हो जाएगा.। तुम खाना खा लेना  । मनीषा थोड़ा प्यार भरे गुस्से में  बोली --क्या तुम मेरे लिए एक दिन छुट्टी भी नहीं ले सकते । प्रतिक बोला - ऐसी बात नहीं है । तुम्हारे लिए तो मेरी जान हाजिर है। तुम्हारे लिए तो मैं यह सब कर रहा हूं., पर आज नहीं। सारे पेपर्स मेरे पास है मेरा जाना बहुत जरूरी है । और वह बोलता हुआ बाहर निकल गया । मनीषा की आंखों में आंसू आ गये।  और वह कुर्सी पर  निढाल सी बैठ गईं। उसकी आंखों के आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। अचानक फोन की घंटी बजने लगी । मनीष अपनी सोच से बाहर आई।और उसने फोन उठाया । फोन की दूसरी तरफ से उसकी फ्रेंड नैना बोल रही थी । हैलो -मनीषा कैसी हो   मनीषा ने भी बोला हैलो - मैं ठीक हूं। तुम बताओ आज इतने दिनों बाद कैसे फोन किया ।  नैना बोली  अरे याद तो मैं हमेशा करती हूं पर तुम्हारे पास ही टाइम नहीं रहता.। आज मेरे बेटे का बर्थडे है तुम दोनों जरूर आना। मनीषा ने ना चाहते हुए भी उसको हां बोला। कुछ औपचारिक बातें करने के बाद मनीषा फोन को रखती है। मनीषा फिर अपने अतीत में खो हो गई। उससे पहले के दिन याद आने लगे जब उसके पास कुछ नहीं था  ।पर वक्त था। पहले कैसे वह अपने मम्मी पापा के घर डिनर पर जाया करती थी।या वही आ जाते। अब तो मम्मी पापा से मिले भी महीनों बीत जाते हैं। आज उसे अपना वह दिन याद आने लगा । जब  कंपनी से ऑफर आया था । वह कितनी खुश थी.।ज़ब उसके लिए  पैसा  और स्टेटस ही सब कुछ था । प्रतीक के मना करने के बावजूद भी, उसने  प्रतीक को कैसे जवाब दिया था ... कि कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। आज उसकी आंखों से आंसू बह जा रहे थे। जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। उसके अंदर  के समुंदर  में जैसे आज कोई तूफान आया था।उसने कुछ नहीं खाया और वह कुर्सी पर ही बैठे-बैठे सो गई  । अचानक से उसकी नींद खुली तो उसने देखा कि शाम हो चुकी है.।आज उसे नैना के यहां उसके बेटे के बर्थडे में जाना था ।वह अपनी गाड़ी से अकेले ही चली गई.। नैना मनीषा को देखकर बहुत खुश हुई। वह खुशी-खुशी सबसे मिलवाने लगी ..।  सिंपल सी पार्टी थी ।वहाँ कुछ विशेष नहीं लग रहा था मनीषा ने बच्चे को गिफ्ट दिया । और नैना से बात करने लगी। नैना अपनी जिंदगी में बहुत खुश थीं। नैना की खुशी देख मनीषा सोचने लगी, हम आज तक स्टेटस के पीछे भागते रहे, मिला क्या खाली पन,  मनीषा आज अपने आप को लूटा हुआ महसूस कर रही थी। उसकी सारी जिंदगी सिर्फ भागदौड़ में बीत गई.। उसकी महत्वाकांक्षा आज उसे इस मोड़ पर ले आई। वह वापस तो घर आ गई .। पर उसके अंदर का तूफान  अभी भी थमने का नाम नहीं ले रहा था। रास्ते भर उसकी आंखों से आंसू बहते रहे थे। जिस मनीषा को अच्छी नौकरी अच्छा बंगला चाहिए था आज उसे अपना छोटा सा परिवार चाहिए । यह कैसी विडंबना थी सब कुछ होते हुए भी उसके अंदर का खालीपन उसे खाए जा रहा था।.......
                       
.... साधना सिंह  स्वपनिल.....

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