हर बार टॉप फाइव में अंग्रेजी माध्यम ही आखिर क्यों? हिंदी क्यों नही ? डॉ. विक्रम चौरसिया ( क्रांतिकारी)

आज ये अंग्रेज़ी माध्यम का प्रभाव सामाजिक कुरीतियो से लेकर आयोग तक का सफर है, बचपन से बच्चा अंग्रेज़ी में तेज है तो उसे टैलेंट का दर्जा दिया जाता है और अब यह आयोग भी ,मेरे सभी सफल साथियों को शुभकामनाएं परंतु मैं टॉप फाइव में  हिन्दी माध्यम के स्टूडेंट्स को भी देखना चाहता हूं , भेदभाव से काम नहीं चलेगा, हर बार टॉप फाइव में अंग्रेज ही आखिर क्यों? जब रिजल्ट इंग्लिश में 90% रखना है और हिंदी में 4% तो माननीय प्रधानमंत्री जी राष्ट्रीय भाषा का दर्जा हिंदी से हटाकर अंग्रेजी ही कर दीजिए । साथियों मुझे बेहद दुःख है , की हिंदी माध्यम वाले छात्रों के साथ 2013 से ही  अन्याय हो रहा है। 2013 से अभी तक हिंदी माध्यम के सफल अभ्यर्थियों की संख्या ना के बराबर हो गई है,761 सफल छात्रों में से देखे तो मुश्किल से 25-30 अभ्यार्थी हिंदी माध्यम से है ।  याद रखना ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में 21वीं सदी के आधुनिक भारत में पढ़ाया जाएगा कि कभी हिंदी माध्यम के लोग भी यूपीएससी परीक्षा में अच्छे रैंक से सफल हुआ करते थे । कैसे लोग तैयारी करते थे किस प्रकार से दिल्ली और इलाहाबाद जैसे जगहों पर एजुकेशन माफिया कोचिंग के लुटेरे जिनको सम्मान पूर्वक कोचिंग संस्थान भी  

कहा जाता थे  ,कैसे बच्चों के भविष्य के साथ फुटबॉल खेला करते थे कैसे यह लोग रंगीन सपने दिखाकर  जिंदगी  को अंधेरी गुमनामी में ढकेल दिया करते थे ,कैसे लोग अपना घर द्वार छोड़कर खेत ,घर  को बेच कर के दिल्ली , पटना व प्रयागराज  आईएएस अधिकारी बनने  के लिए जाया  करते थे। हिंदी माध्यम  के  अभागे कैसे जीवन निर्वाह करते थे ,कैसे देखते-देखते युवावस्था से वृद्धावस्था की तरफ चले जाते थे और समय का पता ही नहीं चलता था। आने वाले समय में हमारे बच्चों को दादा-दादी  ऐसी ही  कहानियां सुनाया करेंगे और यदि हम लोग जिंदा होंगे तो अपने आने वाले पीढ़ियों को ऐसी ही दर्दनाक कहानियां सुनाते रहेंगे। हम देखे रहे हैं की  पिछले कुछ वर्षों से यूपीएससी  में हिंदी माध्यम के चयन  में भारीगिरावट आ रही है , ये गिरावट कही ना कही भारत जैसे लोकतांत्रिक देश जिसने हिंदी को मातृभाषा घोषित किया हैं इस वाक्य पर सवालिया निशान खड़ा तो कर ही रहा है, यह समस्या हिंदी माध्यम के अभ्यर्थियों के लिए उसी प्रकार हुआ जैसे डॉलर(अंग्रेजी माध्यम) के मुकाबले रुपये (हिंदी माध्यम) का गिरना। यहॉ ये भी  प्रश्न उठना स्वाभाविक हैं कि क्या हिंदी माध्यम का अभ्यर्थी अंग्रेजी माध्यम के अभ्यर्थी से कम मेहनत करता हैं, क्या हिंदी माध्यम का विद्यार्थी आयोग द्वारा पूछे गए प्रश्नों को समझ नही पा रहा हैं? क्या आयोग माध्यम को लेकर बच्चो में भेदभाव कर रहा हैं?  या फिर हिंदी माध्यम के अधिकांश बच्चे ग्रामीण इलाको से ताल्लुक रखते हैं इसलिए उनके  चयन प्रक्रिया में समस्या हैं? अब हमे भी अपने सामर्थ्य अनुसार गरीब तबके के अभ्यार्थियों के लिए भी तैयारी से संबंधित संसाधन को मुहैया कराने की जरूरत है साथ ही  हमें इन सभी कमियों के साथ ही बच्चों के व्यक्तित्व विकास पर ज्यादा ध्यान दे  ताकि आने वाले वर्षो में फिर से यूपीएससी में हिंदी का परचम लहराया जा सके जो की अभी सुप्तावस्था में चला गया हैं।



 











 डॉ. विक्रम चौरसिया

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