काम बिगड़ा मगर बनाते तो।
शर्त तूफान से लगाते तो।
हक़ से महरूम फिर नहीं होते,
हक़ ज़रा सा अगर जताते तो।
किरकिरी इस कदर नहीं होती,
कर के वादे न भूल जाते तो।
फिरइलेक्शन न हारतेहरगिज़,
बढ़ती मँहगाई रोक पाते तो।
सर न रहता हमीद फिर धड़पर,
बात सच जो ज़बां पे लाते तो।
हमीद कानपुरी
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