पूर्ण स्वास्थ्य प्रत्येक व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता तथा मौलिक अधिकार है । जब व्यक्ति शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होता है तब उसे
एक निदानात्मक-शोध की रिपोर्ट मे इस तथ्य को उजागर किया गया है कि व्यक्तित्व-विकारों के प्रति अर्न्तदृष्टि की कमी लोगों को तेजी से मनोरोगी बना रही है।
पिछले एक वर्ष के दौरान किये गये इस शोध में 30 हजार मानसिक रोगियों में पहले से मौजूद व्यक्तित्व-विकार तथा वर्तमान में उसके मानसिक रोगी होने के बीच 95 प्रतिशत विश्वसनीयता स्तर पर प्रबल धनात्मक सह-सम्बन्ध पाया गया। साथ ही अन्य 1.3 लाख उन लोगों पर, जो अभी मानसिक रोग की चपेट में नहीं आये हुए थे, पर हुए अग्रगामी-अध्ययन में पाया गया कि उनमें कुछ न कुछ व्यक्तित्व विकार कम या ज्यादा रूप में मौजूद है और वे अपने व्यक्तित्व विकार के बारे में पूरी तरह अनभिज्ञ हैं। इस शोध में हर उम्र, लिंग व सामाजिक स्तर के लोग शामिल हैं।
जैसे-जैसे भौतिकता और आधुनिकता बढ रही है वैसे-वैसे लोगों में तनाव व चिंता भी तेजी से बढ रही है । इस चिंता व तनाव के कारण व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य भी खराब हो रहा है ।जबसे कोरोना वायरस का प्रकोप बढा दिया तब से तो और भी खतरनाक स्थिति उत्पन्न हुई है । जो लोग इस महामारी के कारण बीमार हुए उनके मानसिक स्वास्थ्य में और भी गिरावट आई है ।जिन परिवारों ने अपने अनन्य लोगों को इस दौर में खो दिया उनकी मानसिक स्थिति और भी खराब हुई है ।जिन लोगों का नौकरी या रोजगार छिन गया ।जो मध्यम वर्ग या फिर सामान्य वर्ग के लोग हैं जो बढ़ती बेतहाशा मँहगाई से परेशान हैं ।ऐसे लोगों में भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं देखने को मिल रही हैं ।
मानसिक स्वास्थ्य से आशय यह है कि व्यक्ति में किसी भी तरह की मानसिक विकृति न हो । वह किसी भी परिस्थिति में स्वस्थ समायोजन कर सके।
मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति के व्यक्तित्व में बहुत सारे गुण निहित होते हैं,जैसे कि -- सहजता,सृजनात्मकता,नवीन दृष्टिकोण,स्वस्थ हास परिहास ,स्वस्थ प्रतिक्रियाएं,समस्यायों को समझने की योग्यता,,निर्णय लेने की योग्यता,समाधानपरक दृष्टिकोण ,बेहतर जीवन की गुणवत्ता,सांवेगिक परिपक्वता,संवेदनशीलता,दूसरों के दृष्टिकोण को भी महसूस कर पाना,संवेगों पर प्रभावशाली नियन्त्रण,दूसरों के साथ शांतिपूर्ण संबंध,वातावरण में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए रचनात्मक और सृजनात्मक योगदान।
जो लोग मानसिक रूप से अस्वस्थ या बीमार होते हैं उनके नैसर्गिक संवेग और स्वाभाविक क्रियांये बाधित होजाती हैं ,जैसे कि-- भूख,प्यास,नींद कम या अत्याधिक लगना,अकारण हंसना ,बिना किसी कारण के अत्यधिक रोते रहना,हर समय बात-बात पर चिढना या चिड़चिड़ाना,जरूरत से ज्यादा बोलना,अकारण चुप हो जाना,निरर्थक संवाद , भूल जाना, हर समय विचार विमर्श में लगे रहना,अत्यधिक थकान महसूस करना, इत्यादि।
इनमें से यदि कोई भी लक्षण किसी भी व्यक्ति में बहुत दिन तक दिखाई दे तो उन्हें मानसिक परामर्शदाता के पास ले जाकर दिखा देना चाहिए ।
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