मक्खन वाली चाय


   आज शर्माजी ऊपर के कमरे में महीनों से उपेक्षित पड़ी माँ का हालचाल पूछने चाय का कप लेकर गए थे।
वापस उतर कर आए,तो जवान होती बेटी के सामने ही पत्नी ने टोक दिया-"क्या बात है ! आज तो बड़ा माताजी का समाचार लिया जा रहा है। क्या श्रवण कुमार बनने का इरादा जाग रहा है मन में"
"अरे कुछ नहीं, वो पीछे वाली दुकान के लिए ग्राहक आ रहे हैं।
मैं तो बस दाम बढने की राह देख रहा था। अब हस्ताक्षर तो माँ का ही चाहिए होगा ना कागजों पर, इसीलिए एक प्याली चाय, मक्खन वाली, समझा करो।  मन्द-मन्द मुस्कुराते हुए शर्माजी ने धीरे से अपने मन की असल बात पत्नी और बेटी को बताई।
समय बीता !!!
शाम को सोफे पर बैठकर शर्माजी चाय की चुस्कियाँ लेने लगे। और दिनों से आज चाय में दूध का स्वाद कुछ ज्यादा ही बढ़ा हुआ था।
स्वाद कुछ अलग लगा,तो पूछ बैठे-"चाय किसने बनाई है आज..
"आपकी बिटिया ने बनाई है। पहली बार कुछ बनाया है जाकर रसोई में, वो भी अपनी इच्छा से"- पत्नी बताते हुए फूली न समा रही थी।
!! सचमुच अरे वाह !!
चलो बिटिया समझदार हो रही है। कहाँ है हमारी राजकुमारी, भई इतनी अच्छी चाय का इनाम तो बनता है" - शर्माजी प्रसन्नता की सीढ़ियाँ चढ़ रहे थे।
यहीं है , अपने कमरे में, वो  उसकी सहेली आई है ना
 - पत्नी ने बताया ।
कमरे में दोनों सहेलियाँ खिलखिला रही थीं ।
"अच्छा सच बता, ये चाय वाय, ये चक्कर क्या है"- सहेली ने कुरेदते हुए पूछा....
"अरे कुछ नहीं यार, वो कल रात होने वाली फ्रेंड्स पार्टी, मैं मिस नहीं करना चाहती। बस इसीलिए थोड़ा मक्खन लगाया जा रहा है, और क्या। वैसे मैं और चाय ?"
मगर चाय ही क्यों ?
सहेली ने फिर पूछा....
 तो शर्माजी की होनहार बिटिया बोली- "यार तू नहीं समझेगी। ये "चाय मखनी" है,कोई ऐसी वैसी चाय नहीं है"।
"मक्खन वाली चाय है, मक्खन वाली । मतलब जब माँ-बाप को उल्लू बनाना हो, तब बड़े काम आती है"।

"खुद पापा भी यही करते हैं दादी के साथ। काम निकलवाने को "चाय मखनी" पिलाते हैं, मक्खन वाली।












 गोपाल मोहन मिश्र
    (बिहार)
 
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