ग़ज़ल
शरारतों से भरी कज अदा भी खूब रही। शिकायतों में भी शामिल वफ़ा भी खूब रही। बदल के रख दिया अंदाज़ सब के जीने का, जहां में आई करोना वबा भी खूब रही। हरी भरी नहीं होती शजर बिना हरगिज़, ज़मीं के तन पे यूँ धानी कबा भी खूब रही। असर न जिसका वबा पर कहीं ज़राभीहुआ, बनाई बाबा की आखिर दवा…