ग़ज़ल
समझता हूँ कि  दाना  हो  गया है। ज़रा सा  जो  दिवाना  हो  गया है। शिकायत का  बहाना  हो  गया है। अब उनके घर में जाना हो गया है। तिजारत का नफा जाता रहा सब, फ़क़त खाना  कमाना हो  गया है। मुहब्बतकाकभीभरता था दमपर, वो किस्सा अब पुराना हो गया हैे। चला था  क़त्ल का लेकर   इरादा, वही  शाना   ब  शाना हो  गया…
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कयामत
उस रोज़  कयामत  दबें पांव मेरे घर  तक  आई  थी। इंसान  का मानता  हूँ..... कोई वजूद  नहीं। उस रब  ने साथ  मिलकर  मेरी हस्ती  मिटाई  थी। उस रोज़  कयामत  दबें पांव मेरे घर  तक  आई  थी। शगुन -अपशगुण  की, कोई बात  ना आई  थी। समझ  ही ना पाया, किसने नज़र  लगाई। किसने नज़र  चुराई  थी। उस रोज़  कयामत  दबें पांव म…
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सतत साधना
सतत साधना से बढ़े,मेरा सकल समाज। यही कामना,चाह है,भाई मेरी आज।। सतत साधना संग हो,तब गति होगी दून। ध्यान और नव ज्ञान बिन,सभी तरह से सून।। करें साधना लोग जब,पाएँगे उजियार। जीवन पाए ताज़गी,एक नया आकार।। जब तक ना हो साधना,बढ़ता नहीं समाज। आज सफल हो हम करें,सबके दिल पर राज।। संतों ने यह ही कहा,पढ़ना-लिख…
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