ग़ज़ल
समझता हूँ कि दाना हो गया है। ज़रा सा जो दिवाना हो गया है। शिकायत का बहाना हो गया है। अब उनके घर में जाना हो गया है। तिजारत का नफा जाता रहा सब, फ़क़त खाना कमाना हो गया है। मुहब्बतकाकभीभरता था दमपर, वो किस्सा अब पुराना हो गया हैे। चला था क़त्ल का लेकर इरादा, वही शाना ब शाना हो गया…