दोहों में गुरुवर-वंदना
प्रखर रूप मन भा रहा,दिव्य और अभिराम। हे ! गुरुवर तुम हो सदा,लिए विविध आयाम।। गुरुवर तुम हो चेतना,हो विवेक-अवतार। अंधकार का तुम सदा,करते हो संहार।। जीवन का तुम सार हो,दिनकर का हो रूप। बिखराते नव रोशनी,मानवता की धूप।। सत्य,न्याय,सद्कर्म हो,गुरुवर हो तुम ताप। काम,क्रोध,मद,लोभ हर,धो देते संताप।। गुरुवर…
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वीर महाराणा प्रताप जयंती पर विषेश--
बचपन में पढ़ीं थी तुम्हारी गाथा,  सुनकर गर्व हो आता है। राष्ट्र के वीर सपूत, "महाराणा प्रताप"  तुमको नमन हमारा है।  हल्दी घाटी का वो युद्ध, तुमने घास की रोटी खाई थी ।  फिर दुश्मन को पीछे पछाड़,  मातृभूमी का कर्ज चुकाया था । वह चेतक घोड़ा था अजूबा,  देखो-कैसे हवा से बाते करता था।  अपने भाले स…
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ग़ज़ल
ज़ेब    में    पाप    गर    कमाई  है। फिर   तो   होती    नहीं   समाई  है। असलियत   से   न  दूर  का   नाता, उसका    दावा     हवा    हवाई   है। लड़ना किससे था लड़ रहा किसके, बे  सबब   लड़    रहा    लड़ाई   है। शक  बहुत  ही   बड़ी  है   बीमारी, इस की   कोई    नहीं   दवाई   है। आँख  से आब  की  है  बारि…
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