दोहों में गुरुवर-वंदना
प्रखर रूप मन भा रहा,दिव्य और अभिराम। हे ! गुरुवर तुम हो सदा,लिए विविध आयाम।। गुरुवर तुम हो चेतना,हो विवेक-अवतार। अंधकार का तुम सदा,करते हो संहार।। जीवन का तुम सार हो,दिनकर का हो रूप। बिखराते नव रोशनी,मानवता की धूप।। सत्य,न्याय,सद्कर्म हो,गुरुवर हो तुम ताप। काम,क्रोध,मद,लोभ हर,धो देते संताप।। गुरुवर…