स्वर्णिम उजाले नेह के
मेरा विश्वास मुझे आश्वस्त करता है कि यदि रुदन नवजात की प्रथम क्रिया है तो गीत के प्रति औत्सुक्य और वह भी आह्लाद मिश्रित; शिशु की जाग्रत अवस्था की प्रथम पहचान है। सम्भवतः रोना और गाना दोनो ही ऐसी क्रियाएं हैं जो हर प्राणी में प्रकृतितः उपलब्ध हैं । स्वर भले ही गीतानुरूप न हों, माधुर्य भले ही न हो कि…
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यादों की धूप-छाँह
“बाल वाटिका” पत्रिका के संस्थापक-संपादक एवं बाल साहित्य भारती सम्मान, शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार जैसे दर्जनों सर्वोच्च सम्मानों से सुशोभित डॉ. श्री भैरुँलाल गर्ग की पुस्तक “यादों की धूप-छाँह” बोधि प्रकाशन जयपुर द्वारा इसी वर्ष प्रकाशित की गई है। यह पुस्तक इस अर्थ से विलक्षण है क्योंकि इस…
धड़कते अहसासों का कारवां....बड़ा बेचैन-सा हूॅं मैं....
"बड़ा बेचैन-सा हूॅं मैं" दीपक मेवाती जी के द्वारा लिखित एहसासों का ऐसा कारवां है जिसमें हिंदी अदब की सभी विधाओं को गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, हरियाणवी /मेवाती लोकगीत आदि में बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है हालांकि इस संग्रह में कवि ने गीत, हास्य व्यंग्य की कविताएं, ग़ज़लें, मन के भाव आद…
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आम जीवन से बुना है इन कहानियों का ताना-बाना
जीवन और कहानी को पृथक नहीं किया जा सकता। प्रायः बच्चों को कहानी सुनना पसंद है तो बड़ों को कहानी सुनाना। हम चाहें या न चाहें मगर कहानियाँ हमारी जिंदगी का अभिन्न अंग हैं। हालाँकि इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता कि समय से कदमताल मिलाने में जितना जीवन बदला है, उतनी कहानियाँ भी बदली हैं। दंत कथाओं, पौराणि…
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