गजल
सो रहे हों तो जगाकर तंतुओं में धार भी दो। हाशिये के आदमी को हाथ मे तलवार भी दो। क्या गज़ब की है रवायत तैरना भी खुद सिखाओ नाव भी देदो बनाकर साथ में पतवार भी दो। उंगलियां जो मुल्क की ज़ानिब उठें दो तोड़ उनको प्यार से कोई मिले तो जिंदगी को वार भी दो। ये सियासत का जुलम फिरकापरस्तों की अदावत काटकर सिर आ…