खुली खिड़की
हमेशा दूसरो की बेटियों मे कमी निकलना उसकी आदत सी बन गई थी। इसी का परिणाम था, वह इतने बड़े घर मे अकेली पड़ी रहती थी, दिन किसी तरह कट जाता था, पर रात का काला अंधेरा उसे खाने को दौड़ता था। वह इस निराश जिंदगी का अन्त कर देना चाहती थी। जिन्दगी का अन्त करना आसान काम नही था। उसने कई बार नींद की दस-दस गोलिया…
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