खुली खिड़की

हमेशा दूसरो की बेटियों मे कमी निकलना उसकी आदत सी बन गई थी। इसी का परिणाम था, वह इतने बड़े घर मे अकेली पड़ी रहती थी, दिन किसी तरह कट जाता था, पर रात का काला अंधेरा उसे खाने को दौड़ता था। वह इस निराश जिंदगी का अन्त कर देना चाहती थी। जिन्दगी का अन्त करना आसान काम नही था। उसने कई बार नींद की दस-दस गोलियां एक साथ निगल ली थी।पर कुछ नहीं हुआ था, बस नींद की खुमारी में वह घण्टों बेसुध पड़ी रहती थी।वह नाम की संतोष थी।उसके जीवन में संतोष नही था।

उसे ऐसा कोई दिन याद नही था।जिस दिन वह अपने  बुरे कर्मो पर पश्चाताप नही करती थी। वह पश्चाताप की अग्नि में जल रही थीं। वह हमेशा  अतीत की सुनसान वादियों में लौट जाती। उसका घर कितना सुन्दर था?फूलो जैसी दो बेटियाँ, बहुत प्यारी, खूबसूरत। जुड़वा बेटियो को जन्म देना उसके लिए किसी भयंकर पीड़ा से कम नहीं था। बड़े आप्रेशन से बेटियाँ हुई थी। डक्टरों ने साफ कह दिया था। भविष्य में वह सन्तान पैदा नही कर सकेगी। उसे इसका बहुत मलाल था।  होनी के आगे किसकी जोर चलता है?
बड़ी बेटी का नाम तनु और छोटी का नाम अनू रखा था। उसकी बेटियाँ भी उसकी तरह  हष्ट-पुष्ट थी, बचपन कब,कैसे,बीत गया? उसे पता ही नही चला। बेटियो ने जवानी की दहलीज पर कदम रख दिया था।खिलखिलाना उनकी आदत थी, संतोष के पति के जाने के बाद, आय का जरिया दुकान थीं।दुकान का काम एकाएक बढ़ता जा रहा था। वह बहुत व्यस्त रहती थी।
वह अपनी आदत से मजबूर थी, जब भी आस-पड़ोस में किसी की बेटी जवान होती, वह उस पर पूरी नजर रखती। वह उसके माता-पिता को नीचा दिखाने का एक भी मौका नही छोड़ती थी। किसी की बेटी अच्छे कपड़े पहन लें,उसकी हालत जले हुए कोयले जैसी हो जाती थी।  वह मुँहफट थी, वह मुँह पे ही कह डालती थी,अपनी बेटी को इतना ना ओढने पहनने को दिया करों, नही तो चिड़िया फूर हो जाएगी।
आस-पड़ोस के लोग उससे बहुत नफरत करते थे। मुँह से  कुछ कह नही पाते थे, कह भी कैसे पाते? वह अड़ी-भीड़ में सबकी मदद जो कर देती थी। लक्ष्मी जैसे उसके घर में ही वास करती थी। वह जितना खुला खर्च करती, उसकी आमदनी उतनी ही बढ़ती जाती। लोग भी उस पर लक्ष्मी की कृपा देख कर दांतों तले उंगलियां दबा लेते थे।
कुछ लोग यहाँ तक कह देते थे, अरे इसकी बेटियाँ ही लक्ष्मी का अवतार है, जबसे इस घर में आई है, धन की वर्षा हो रही हैं। वह भी इस बात इन्कार नहीं करती थी। वह  मानती थी, जब से उसके घर में तनु,अनू पैदा हुई है, धन की कोई कमी नही है।
तनु, अनू दसवी कक्षा पास कर चुकी थी। उनका सौन्दर्य दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा था। उनके बदन गुलाबों की तरह खिले रहते थे, देखने वाले उनके रुप को देखकर उन्हें पाने की कल्पना करने लग जाते थे। तनु और अनू भी इस बात से अनजान नही थी। वह भी लोगो को खीचने का कोई मौका नही छोड़ती थी।
संतोष, बेटियो के इस व्यवहार से अनजान थी,उसे अपनी बेटियो पर बहुत भरोसा था। जवानी दिवानी होती है, संतोष पैसा और पैसा कमाने पर लगी रहती थी। उसे बेटियो की बढ़ती उम्र की परवाह नही थी। वह अब भी लोगो की बेटियो पर ताना कसी करने से बाज नही आती थी।
वक्त बदलते देर नही लगती। एक रात उसे बेटियो के कमरे से किसी के बोलन की आवाज सुनाई दे रही थी । उसे समझते देर नही लगी।उसके घर में भी बदनामी की सेंध लग चुकी है।
वह सुबह होने का इन्तजार करने लगी। उसे कहाँ पता था। ये सुबह कभी होगी ही नही। उसने सोचा वह सुबह ही बेटियो से इस विष्य पर बात करेगी।अगर नहीं मानी, वह जल्दी ही दोनों के हाथ पीले कर देगी, इसी सोच- विचार में, उसकी आँख लग गई। सुबह उसकी ऑंख देर से खुली।
तब तक अनर्थ हो चुका था, दोनों बेटियाँ घर मे नहीं थी, उसके पावों तले से जमीन खिसक गई। उसने घर में,कमरो में, छत पर सब जगह बेटियो की तलाश की, पर चिड़ियाँ उड़ चुकी थी,खुले आसमान में।उसे समझ नही आ रहा था। उसके साथ ये सब क्यों हुआ? सारे आस-पड़ोस में बात फैल चुकी थी। वह नजर बचा रही थी,कहने वाले कहाँ रूकते है?
वे उसकी पीठ पीछे खुब खरी-खोटी कहते, बड़ी आई थी लोगों के घरो की बात उड़ाने वाली,अब पता लगेगा, जब खुद की बेटियो ने इसका मुँह काला कर दिया। वह लोगो की बातें सुन कर पक चुकी थी। पुलिस की कोशिश के बाद भी उसकी बेटियो का कुछ पता नही चला। बस पुलिस इतना ही कहती रहीं ,आपके घर की पिछ्ली खिड़की जंगल के रास्ते की तरफ खुलती है, वहीं से आपकी बेटियाँ गायब हो गई है।
आज इस घटना को पूरे बीस वर्ष हो चुके है। वह  सुबह-शाम उस खुली खिड़की के बाहर झांकने लग जाती, उसे दूर-दूर तक जंगल ही जंगल दिखाई देता |
आस-पड़ोस में जब बातें होती थी, लोग उसे समझाते थे, अब तेरी बेटियाँ लौट कर नही आएगी, क्यों हमेशा इस खिड़की को खोल कर उनके आने का इन्तज़ार करती रहती हो, इस खिड़की को हमेशा के लिए बन्द करवा दो, वरना किसी दिन तुम्हारे साथ कोई हादसा हो जाएगा। हादसा शब्द सुनकर वह फट पड़ती, हादसा बीस वर्ष पहले हो चुका है।
मैं इस खुली खिड़की को कभी बन्द नही करुँगी, हो सकता है,कभी मेरी बेटियों को अपनी माँ की याद खीच लाए। वह हमेशा की तरह खिड़की खोलकर उदास बुझी आँखों से बेटियो की राह ताकती रहती थी। पर उसे दूर-दूर तक घना जंगल सन्नाटा ही दिखाई देता था। वह रात को भी खिड़की खुली ही रखती थी।

       राकेश कुमार 
         हरियाणा














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