वीर अभिमन्यु पर आधारित कविता गर्भज्ञानी

पाण्डव के पराक्रम से जब न किसी की दाल गली।

चक्रव्यूह बने और पार्थ दूर हों, कौरव ने फिर चाल चली।।

युद्ध कठिन है, पिता नही हैं, धर्मराज को चिंतित देखा।
शंखनाद कर सिंह के जैसे अभिमन्यु ललकार के बोला।।

आज मैं अपने बाहुबल से धर्म की आन बचाऊंगा।
अंजान डगर है चक्रव्यूह की, फिर भी अंदर जाऊँगा।।

तुम क्या जानो तात हमारे दिल मे तूफान समाया है।
धर्म स्वयं मुझको अपने आगोश में  लेने आया है।।

पीछे हट जाऊं मैं रण से या फिर मौत से डर जाऊं।
इससे तो बेहतर होगा कि जीते जी ही मर जाऊं।।

बाणों की अब वर्षा होगी, कुरु सेना ध्वस्त करूँगा मैं।
सात के सातों महारथी को लड़कर त्रस्त करूँगा मैं।।

अमोघ अस्त्र अब छूटेंगे सारे विस्फोट प्रबल होंगे।
महादेव ही साहस मेरे महादेव सम्बल होंगे।।

हे तात अगर मैं लौट न पाऊं, तो तुम थोड़ा धीरज रखना।
साहस भरकर पिताश्री से मेरा ये सन्देशा कहना।।

मौत पे मेरी एक भी आँसू कायर बन न बहाएंगे।
रण में अपना हर प्रहार और कठोर कर जाएंगे।।

पुत्र मोह में पड़ कर के अपना संकल्प न भूलेंगे।
चट्टानों सा बिना डिगे वो धर्म का साथ न छोड़ेंगे।।

हे तात मुझे अब आज्ञा दो, आशीष विजय की न देना।।
बलिदान व्यर्थ न जाये मेरा बस इतना मन मे भर लेना।।

समय नही है शेष अधिक प्रारब्ध मेरा बुला रहा।
विलीन धर्म मे होने का सौभाग्य मेरा आ रहा।।

प्रथम प्रहार कर कुरु सेना पर अभिमन्यु और भी निखर गया
चक्रव्यूह का प्रथम द्वार तिनके के जैसा बिखर गया

खलबली मचा कुरुसेना में, कुरूपति का धीरज डिगा दिया।
एक एक कर चक्रव्यूह के छः द्वारो को मिटा दिया।।

सुभद्रा नन्दन वायुवेग से सातवें द्वार तक बढ़ आया।
शत्रु पक्ष महारथियों को जहां मिलकर साथ खड़ा पाया।।

दुःशासन दुर्योधन दोनों जयद्रथ के संग थे खड़े हुए।
अश्वत्थामा कृप कर्ण और आचार्य द्रोण थे डटे हुए।।

दहाड़ शेर की सुनकर के निरीह सा बिल में घुसा हुआ।
देख हुताशन की वर्षा शकुनी था पीछे छुपा हुआ।।

करके बाणों की वर्षा वीर ने सबको प्रणाम किया।
दुर्योधन पुत्र लक्ष्मण को तुरत यमपुर में स्थान दिया।।

देख के अपना अनुजपुत्र कर्ण तनिक अधीर हुआ।
धन्य हो गया राज्य जहां पर तेरे जैसा वीर हुआ।।

शुरू हो गया द्वंद सभी से हाथी घोड़े चीत्कार रहे।
एक एक महारथी सब, अभिमन्यु से हार गए।।

दुर्दशा देखकर कुरुसेना की रक्त दुर्योधन का खौल उठा।
अपमान किया आचार्य द्रोण का मित्र कर्ण से बोल उठा।।

एक एक से नही सम्भलता, सारे मिलकर वार करो।
जो भी करना हो कर डालो पर, शत्रु का आज संहार करो।।

नीचता अधर्म की व्यापक हो गयी, धर्म की बातें कौन कहे।
राजा के कर्ज में दबे हुए, आचार्य द्रोण भी मौन रहे।।

उधर सभी महारथियो ने प्रत्यंचा अपनी खींच लिया।
इधर वीर अभिमन्यु ने भी अपनी गति को तेज किया।।

पर इधर कहाँ वो एक अकेला और उधर सेना विशाल।
चारो ओर से घेर के सारे करने लगे वार पे वार।।

फिर भी अभिमन्यु का धीरज कोई नही डिगा पाया।
रंच मात्र भी वीर पुत्र को पीछे नही हटा पाया।।

देख के उसका रण कौशल दुर्योधन मन मे खीझ उठा।
निशस्त्र करो इस बालक को बड़े जोर से चीख उठा।।

इतने में कर्ण के प्रबल प्रहार ने धनुष को उससे दूर किया।
बाकी सारे महारथी ने रथ को चकनाचूर किया।।

नीचता अधर्म की देख देखकर काल स्वयं शरमाया था।
आचार्य द्रोण पर क्रोधित होकर अभिमन्यु चिल्लाया था।।

वार निशस्त्र पर किया जा रहा, यह कैसा अन्याय है?
हे गुरूवर आपके शास्त्रों का क्या यह भी कोई अध्याय है?

आचार्य द्रोण कुछ कह न सके, अपने सिर को झुका लिया।
पर अभिमन्यु ने देर न करके मार्ग दूसरा ढूंढ लिया।।

उठा के रथ का पहिया चक्र सुदर्शन सा लहराया था।
मानो कृष्ण का शिष्य स्वयं नारायण बन कर आया था।।

उसके उस विकराल रूप ने फिर से सबको डरा दिया।
पर जल्द ही सबने रथ का पहिया हाथ से उसके गिरा दिया।।

धर्म अधर्म का युद्ध परस्पर कुछ ऐसे ही जारी था।
कायर भेड़ियों का झुंड, अकेले घायल शेर पे भारी था।।

वे फिर भी उसको गिरा न पाए आगे से जिसने प्रहार किया।
फिर गदा उठाकर पीछे से जयद्रथ ने सिर पर वार किया।

मूर्छित होकर गिरा समर में, करने को अब चिर आराम।
लेकिन मौत करबद्ध खड़ी, दूर से करती रही प्रणाम।।

देख तड़पता अनुजपुत्र को, खड्ग कर्ण ने घोंप दिया।
प्यार से सिर को सहलाया और उसे मृत्यु को सौंप दिया।।

युद्ध नियम से परे पहुँच कर, विश्वासों पर आघात हुआ था।
उस विशिष्ट दिन एक नही जग में दो सूर्यास्त हुआ था।।

आज जरूरत है भारत मे कुछ ऐसे ही वीरो की।
घाव झेलते तन पर अपने मोल न करते तीरों की।।

साहस भर कर दिल मे कूदो, नियत धर्म की लेकर साथ।
दिवस एक ही पकड़ के रखो डोर राष्ट्र की अपने हाथ।।

जो अपने दम पर महासमर, एक दिन भी झेल तू जाएगा।
फिर दुष्टों को सबक सिखाने, बाप तुम्हारा आएगा।।

तेजभान सिंह
उत्तर प्रदेश

1         यदि     आप स्वैच्छिक दुनिया में अपना लेख प्रकाशित करवाना चाहते है तो कृपया आवश्यक रूप से निम्नवत सहयोग करे :

a.    सर्वप्रथम हमारे यूट्यूब चैनल Swaikshik Duniya को subscribe करके आप Screen Short  भेज दीजिये तथा

b.      फेसबुक पेज https://www.facebook.com/Swaichhik-Duniya-322030988201974/?eid=ARALAGdf4Ly0x7K9jNSnbE9V9pG3YinAAPKXicP1m_Xg0e0a9AhFlZqcD-K0UYrLI0vPJT7tBuLXF3wE को फॉलो करे ताकि आपका प्रकाशित आलेख दिखाई दे सके

c.       आपसे यह भी निवेदन है कि भविष्य में आप वार्षिक सदस्यता ग्रहण करके हमें आर्थिक सम्बल प्रदान करे।

d.      कृपया अपना पूर्ण विवरण नाम पता फ़ोन नंबर सहित भेजे

e.      यदि आप हमारे सदस्य है तो कृपया सदस्यता संख्या अवश्य लिखे ताकि हम आपका लेख प्राथमिकता से प्रकाशित कर सके क्योकि समाचार पत्र में हम सदस्यों की रचनाये ही प्रकाशित करते है

2         आप अपना कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि पूरे विवरण (पूरा पता, संपर्क सूत्र) और एक पास पोर्ट साइज फोटो के साथ हमारी मेल आईडी swaikshikduniya@gmail.com पर भेजे और ध्यान दे कि लेख 500 शब्दों  से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा

3         साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधिब्यूरो चीफरिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें 8299881379 पर संपर्क करें।

4         अपने वार्षिक सदस्यों को हम साधारण डाक से समाचार पत्र एक प्रति वर्ष भर भेजते रहेंगे,  परंतु डाक विभाग की लचर व्यवस्था की वजह से आप तक हार्डकॉपी हुचने की जिम्मेदारी हमारी नहीं होगी। अतः जिस अंक में आपकी रचना प्रकाशित हुई है उसको कोरियर या रजिस्ट्री से प्राप्त करने के लिये आप रू 100/- का भुगतान करें