सेठ सेठानी की कहानी

एक सेठ सेठानी रहे ,उनके सात बेटे और सात बहुएं थी एक बेटी थी , बेटी सबसे छोटी  थी उसका ब्याह नहीं हुआ था ।एक साधु  सेठ जी के घर अक्सर भीख मांगने आया करते थे । जब कोई बहू भिक्षा देने आए साधु महाराज को ,तब साधु  बाबा उसे अखण्ड सौभाग्य वती रहने का आशीर्वाद देते थे ।और जब बेटी भिक्षा देने आए तो महाराज धर्म से रहने  का आशीर्वाद देते थे । कई बार जब सेठानी ने ऐसा सुना तो उन्हे यह जानने की इच्छा हुई की बाबा जी मेरी बेटी को ऐसा अलग आशीर्वाद क्यों देते हैं ?  सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद क्यों नहीं देते ।  सेठानी ने निश्चय किया की इस बार साधु महाराज आए  ,तो उनसे अवश्य यह बात पूछूंगी । जब अगली बार साधु महाराज आए तो सेठानी ने पूछा की महाराज जी आप  मेरी बहुओं को अखंड सौभाग्यवती रहने का   और बेटी को धर्म से रहने का आशीर्वाद क्यों देते हैं ?  पहले तो महाराज ने बताने में आनाकानी की लेकिन सेठानी के बहुत अनुनय विनय करने पर इसका कारण बताया कि तुम्हारी बेटी के भाग्य में सुहाग नही है  इसलिए मैं धर्म से रहने का आशीर्वाद देता हूं। यह सुनकर सेठानी बहुत दुःखी होकर,अपनी बेटी को सुहाग पाने का उपाय बताने की प्रार्थना करने लगीं साधू महाराज से । महाराज ने बताया कि एक सोना नाम की  धोबिन है अगर वो तुम्हारी बेटी की शादी में सुहाग दे तो तुम्हारी बेटी सौभाग्यवती हो सकती है । सेठानी ने सोना धोबिन की खोज की ।सोना धोबिन की पांच बेटे और बहुएं थी ।जो घर के काम को लेकर आपस में अक्सर झगड़ती रहती थी।  सेठानी ने सोना धोबिन के घर का पता लगने के बाद बेटी के साथ रोज रात में धोबिन के घर जाकर घर का काम करना आरम्भ किया। इस तरह मां बेटी को रात में चुपके से धोबिन के घर का काम करते हुए लगभग  15 दिन हो गए । धोबिन को बहुत आश्चर्य हो रहा था की एक एक काम के लिए झगड़ने वाली मेरी बहुओं में कितनी सुमति हो गई है ,कितने प्रेम से सब काम कर लेती हैं की पता ही नहीं चलता ।धोबिन ने अपनी बहुओं को बुलाकर उनकी प्रशंसा करने लगीं , बहुओं को सास की बात समझ नहीं आ रही थी,सबने कहा कि हमने तो काम नहीं किया । अब तो धोबिन को बहुत आश्चर्य हुआ कि रात में चोरी से मेरे घर का सारा काम इतने परिश्रम से कौन करके जाता है ।ये जानने के लिए रात को सोते समय अपनी उंगली काट ली कि दर्द से नींद नहीं आएगी तब देखूंगी की कौन आता है काम करने के लिए । जागते हुए धोबिन ने देखा कि  दो औरतें आकर बहुत ही आहिस्ता से घर का काम करने लगीं । जब वो दोनों काम करके जानें लगीं तब धोबिन ने उन्हें रोककर पूंछा तुम दोनों कौन हो और इस तरह चोरी से मेरे घर का काम क्यों करती हो ?  तब सेठानी ने अपने मां बेटी के आने का कारण बताया और दोनों ने सोना धोबिन के पैर छुए ,हाथ जोड़कर सुहाग के लिए विनती की ,सोना धोबिन भी बहुत असमंजस में पड़ गई लेकिन उस कन्या के लिए न नही कह पाई ।आश्वासन दिया ब्याह में आने का ,प्रसन्न होकर सेठानी मां बेटी अपने घर आईं । कुछ समय बाद ,विवाह का दिन निश्चित हुआ विवाह में आने के लिए सोना धोबिन को निमंत्रण भेजा गया । बाजे गाजे के साथ लेने गए सोना को । सोना ने अपने परिवार को बताया कि मेरा जाना आवश्यक है,इसलिए मैं जा रही हूं ,तुम सब लोग अपने पिता जी का ध्यान रखना ।सबने आश्वासन दिया मां को , कि हम सब ख्याल रखेंगे । वहां शादी में पहुंचकर सोना ने विधिवत सुहाग दिया सेठ की कन्या को ,और चल दी अपने घर क्योंकि उसे अपने पति की चिंता सता रही थी । रास्ते में किसी ने सोना को खबर दी कि तुम्हारा पति मूर्छित हो गया है । सोना को घबराहट होने लगी ।कुछ समझ नही आया तो राह में पड़ा एक मिट्टी का मटका फोड़कर सामने बरगद के पेड़ की परिक्रमा लगाने लगी ,और अपने पति के जीवन दान के लिए ईश्वर से प्रार्थना करती जा रही थी ।धीरे धीरे उसके पति की चेतना लौट रही थी । 108 परिक्रमा पूरी होने पर सोना ने सामने आ रहे राहगीर को , उन मिट्टी के टुकड़ों को   दान में दे दिया  और शीघ्रता से अपने घर को चल दी । घर पहुंचकर देखा कि उसका पूरा परिवार पिता की देखभाल और सेवा में लगा हुआ है।सोना का पति चैतन्य होकर उठकर बैठ गया ,परिवार के सभी लोग प्रसन्न हो गए ।बस उन्हे ये बात नही समझ में आ रही थी कि अचानक पिता जी की एसी अवस्था क्यों हुई ।तब सोना ने सारा वृत्तान्त सुनाया । जिस राहगीर को सोना ने दान में मिट्टी के टुकड़े दिए थे उसका नाम प्यारे लाल था ,प्यारे लाल ने उन टुकड़ों को कुछ दूर जाकर फेंक दिया था ।घर जाकर अपनी पत्नी को बताने लगा की किस तरह  रास्ते में एक औरत मिट्टी के टुकड़ों से परिक्रमा लगाकर ,मुझे (प्यारे लाल ) दान में मिट्टी के टुकड़े दे दिए ।पत्नी ने पूछा दिखाइए तो प्यारे लाल ने हिकारत से अपना अंगोछा दिखाते हुए कहा की वह तो मैने फेंक दिया क्या करते हम मिट्टी लाकर  ।पत्नी ने देखा एक टुकड़ा अंगौछे में फंस गया था जो सोने का हो गया ,उसने पति से कहा कि वह कोई साधारण स्त्री नहीं थी वह तो कोई सती साध्वी थी ,  उसके दिए दान को उपेक्षा से फेंककर आपने अच्छा नहीं किया । प्यारे लाल ने कहा की तुम सत्य कह रही हो हम दोनों मिलकर उसका पता लगाएंगे और क्षमा मांग लेंगे । जब दोनों सोना धोबिन से मिले और पूरी बात सुनी ,तब तक सेठ और सेठानी भी उपहार लेकर सोना धोबिन के घर पहुंचे । सब मिलकर बहुत प्रसन्न हुए जब सोना ने परिक्रमा की उस दिन सोमवार था और तिथि अमावस्या थी तब से आज तक ये दोनो प्रथा प्रथाएं देश के अधिकांश हिस्से में विद्यमान है ।पहली सोमवती अमावस्या के दिन सुहागन औरतें पूरी श्रद्धा और आस्था से,परिक्रमा करती हैं ।प्रसन्नता के साथ सजधज कर अपनी परिस्थिति के अनुसार दान पुण्य करती हैं,और दूसरी कन्या के ब्याह में धोबिन का सुहाग भी अनुग्रह पूर्वक दिया जाता है ।धोबिन को पूरे आदर सत्कार के साथ पूरा साज सिंगार और उपहार दिया जाता है ।जैसे सेठ की कन्या को अखण्ड सौभाग्य मिला ,वैसे ही सबकी कन्या को अखण्ड सौभाग्य प्राप्त हो 









    शशि मिश्रा

 करनैलगंज गोंडा

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