"संत सदारामजी महाराज के सादुल धाम गुहड़ा की कीर्ति सात समंदर पार"


 

         सूफी संत शिरोमणि बाबा सदाराम जी जिसे संत श्री सादूल के नाम से भी जाना जाता हैं ।  ये राजस्थान के एक लोक संत हैं , जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान, गुजरात व छत्तीसगढ़ के साथ साथ पाकिस्तान में भी की जाती है। इनका समाधि-स्थल थार के रेगिस्तान रूपी समंदर में श्री सादूल धाम गुहङा (जैसलमेर) में स्थित है । प्रतिवर्ष चैत्र शुक्ल चतुर्थी को भव्य मेला लगता है, जहाँ पर देश भर से लाखों श्रद्धालु पहुँचते है।

 

श्री सदारामजी महाराज गुहङा के गर्ग वंशिय  श्री जीवणराम जी महाराज के घर चैत्र शुक्ल दूज वि.स 1863 व वेकुंट लोक गमन वि.स. 1936 चैत्र शुक्ल चतुर्थी को गुहङा में हुआ था । इनके पिता का नाम श्री जीवणराम जी गर्ग एवं माता का नाम ईतू देवी हैं ,ये हिन्दू धर्म से थे ।

सादुल के वंशज एवं युवा लेखक नरपत गर्ग हेमचन्द ने कैलाश गर्ग रातड़ी को जानकारी देकर बताया कि

ये जैसलमेर के तत्कालीन शासक श्री केशरीसिंह जी के गुरु थे, जिनके पास मान्यतानुसार चमत्कारी शक्तियां थीं। उन्होंने अपना सारा जीवन जन सेवा के लिए समर्पित किया। भारत में कई समाज उन्हें अपने इष्टदेव के रूप में पूजते हैं। इन्होंने श्री सेवाराम जी महाराज को अपना गुरु बनाया जो जैसलमेर के भाखराणी गांव के रहने वाले थे इनका विवाह जोगीदास गांव मे हुआ पत्नी 6 माह में देवलोक चली गई ।

 श्री जीवणरामजी महाराज के तीन पुत्र थे जिसमें श्री गोविन्द राम व श्री गोरखराम तथा श्री सदारामजी महाराज। श्री सदाराम का जन्म वि.स.1863 में चैत्र शुक्ल दूज को जैसलमेर जिले के गुहङा गांव में एक गर्ग ( गुरुड़ा ) ब्राह्मण परिवार में हुआ।

 

बाबा सदाराम जी हिंदुओ के साथ-साथ मुस्लिमो के भी आराध्य हैं और वे उन्हें  सादूल संत के नाम से पूजते हैं। सदाराम जी के पास चमत्कारी शक्तियां थी तथा उनकी ख्याति दूर दूर तक फैली। किंवदंती के अनुसार श्री सदारामजी महाराज ने जैसलमेर के तत्कालीन शासक श्री केशरीसिंह जी को चमत्कार दिखाया जिसमें जैसलमेर दरबार में बेठे हुए किताब लेने हेतु दरबारी को गुहङा गांव भेजा । जैसे ही दरबारी गुहङा आता है तो श्री सदारामजी महाराज अपने घर पर बेठे मिलते हैं और किताब अपने हाथ से दरबारी को दे कर विदा करते हैं । दरबारी चरणों में गिर जाता है । श्री सदारामजी महाराज ने जैसलमेर के लिए दरबारी को रवाना किया । जैसे ही दरबारी जैसलमेर दरबार में पहुंचता है तो वहां पहले से श्री सदारामजी महाराज बेठै थे । वो किताब श्री सदारामजी  को देते हुए नमस्कार करता है और श्री केशरीसिंह को सारी बात बताता है , पर केशरीसिंह विश्वास नहीं करते हैं तब श्री सदारामजी महाराज शेर का रुप बन जाते हैं , श्री केशरीसिंह के साथ सारा दरबार भयभीत हो जाता है तथा गलती के लिए क्षमा की प्रार्थना करते हैं । तब श्री सदारामजी महाराज ने श्री कृष्ण भगवान का रूप धारण कर दर्शन दिए इस पर केशरीसिंह जी ने श्री सदारामजी महाराज को अपना गुरु बनाया तथा गादी प्रदान की तथा 24 गांवों की जागीर प्रदान की तथा तांबापतरी लिखकर दी । श्री सदाराम सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास करते थे, चाहे वह उच्च या निम्न हो, अमीर या गरीब हो। उन्होंने दलितों को उनकी इच्छानुसार फल देकर उनकी मदद की। उन्हें अक्सर  तपस्या करते दर्शाया जाता है। उनके अनुयायी राजस्थान, गुजरात, छत्तीसगढ़ दिल्ली के साथ पाकिस्तान  तक फैले हुए हैं। राजस्थान में कई मेले आयोजित किए जाते हैं। उनके मंदिर भारत के कई राज्यों में स्थित हैं। 

गुहङा (जैसलमेर) स्थित बाबा सदाराम जी की समाधि

बाबा श्री सदाराम जी ने वि.स. 1936 में चैत्र शुक्ल चतुर्थी को राजस्थान के गुहङा गांव(जैसलमेर से 100 कि.मी.) में जीवित समाधि ले ली।

गुहड़ा गांव में अवस्थित योगिराज श्री सदाराम महाराज का प्राचीन आश्रम, जहाँ हर वर्ष महाराज श्री की पुण्यतिथि पर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में तीज व चौथ को बड़ा भारी मेला भरता है गुहड़ा (सादुल धाम)भक्तों के लिए मेले में आने वाले हजारों भक्तों के लिए व्यापकप्रबंध सुनिश्चित किये गये हैं। मेलार्थियों के ठहरने,खाने-पीने आदि के प्रबंधों की व्यवस्था की गई है

शैशव से ही ईश्वरीय चिंतन,ध्यान-योग और प्राणी मात्र की सेवा के संस्कारों से परिपूर्ण सदारामजी की गृहस्थी 6 माह ही चलपायी। एक दिन ईश्वरीय प्रेरणा से अचानक तीव्र वैराग्य उत्पन्न हो गया और घर बार त्याग कर ईश्वर की खोज में निकल पडे़।

मीलों पसरे सरहदी क्षेत्रों में कई श्रद्धास्थल हैं संतश्री के उन्होंने हजारों मील यात्रा की व विभिन्न स्थानों पर धूंणा स्थापित कर तपस्या की। सदारामजी महाराज के तपस्या स्थलों में गुहड़ा का धाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है जहाँ उनका मुख्य धूंणा है।इसके अलावा कोहरा गांव, देवीकोट के पास लाला कराड़ागांव,हाबुर गाँव में पहाड़ी के पास, मुल्तान में कोट मिठणमें फरीद शाह के पवित्र स्थल, जिला मीरपुर माथेला,जिला घोटकी पिताफी व जरवारा, रोहल साहेब के कनड़ी व झोक शरीफ में शाह अनाथ के पवित्र स्थलमें तपस्या की व धूंणा स्थापित किया

अलौकिक लीलाओं की कीर्ति दूर-दूर तक संत शिरोमणि सदाराम जी महाराज ने कई अलौकिक लीलाएँ की व चमत्कार दिखाये जो आज भी बहुश्रुत हैं।

 

 जैसलमेर रियासत के तत्कालीन महारावल श्रीकेसरसिंह ने चमत्कारों व उपदेशों से प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरु बनाया तथा आठ गाँवों की जागीर दी और ईसाल बंगला व पीपलवा गांव भेंट किया।

कई ग्रंथों की रचना की श्रीसदाराम महाराज ने संत सदारामजी महाराज ने अपनी लेखनी से उपदेशों,भजनों व वाणियों पर केन्दि्रत 

 

नौ ग्रंथों की रचना की जिनकी पाण्डुलिपियाँ आज भी सुरक्षित हैं। इनग्रंथों मे मूल दीप, ज्ञान दीप, ज्ञान सागर, निर्वाणसागर, समझ सागर, रामसागर गीता, सादूल गीता,इश्क समुद्र तथा शुद्ध सागर शामिल है। 

श्री सदाराम जी के भजन व वाणियाँ भी गूढ़ रहस्यों भरी होने के बावजूद सरल, सहज व सुबोधगम्य है जिनका भक्तगण श्रृद्धापूर्वक गान करते हैं।

 प्राचीन भाषा व लिपि में लिखे उनके ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद भी किया गया है।

 संत सदाराम जी महाराज की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई है।

 

 उनका निर्वाण विक्रम संवत1936 में चैत्र शुक्ल चतुर्थी को हुआ। 

यह संयोगही है कि उनका जन्म चैत्र शुक्ल द्वितीया तथा महाप्रयाण चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि को हुआ। इस वजह से हर वर्ष भारतीय विक्रम संवत्सर के चैत्रमाह में शुक्ल पक्ष की दूज से लेकर चौथ तक देश के कई हिस्सों में उनकी स्मृति में मेले भरते हैं।भारत-पाक में कई जगह उनकी याद में मेले 

मुख्य मेला गुहड़ा (जैसलमेर) में भरने के साथ ही छत्तीसगढ़ के न्यू रायपुर में संत सादाणी नगर स्थित सादाणी दरबार तीर्थ, अमरावती में सिंधु-नगरस्थित सादाणी दरबार साहेब, हरिद्वार में सप्तसरोवर मार्ग पर संगमपुरी माता लालदेवी के पास,भोपाल में सोहनगिरी स्थित लटकी नगर के पीछे स्थित सादाणी दरबार समिति में इन तीन दिनों में मेले भरते हैं। हिन्दुस्तान के अलावा पाकिस्तान में भी बाबा श्रीसदाराम की याद में उनके तपस्या व धूंणास्थलों पर मेले भरते हैं। 

इनमें रहीमयार खान जिले के पुण्सा, सांगड़ जिले के पेरूमल, सिंध के खिपरों आदि के मेले प्रमुख है।

अगाध आस्था है सदाराम जी महाराज के प्रति । अलौकिक एवं चमत्कारिक संत सदाराम जी महाराज की स्मृति में भरने वाले इन मेलों में हजारों की संख्या में भक्तजन आते हैं व अपनी अनन्य श्रृद्धा अभिव्यक्त करते हैं।

 भक्तों का विश्वास है कि बाबा सदाराम के दरबार से कोई भी भक्त निराश नहीं लौटता। हर भक्त की मनोकामना वे अवश्य पूरी करदेते हैं। इन मेलार्थियों के लिए श्रृद्धालु भक्तजन पूरी उदारता व सेवा भावना के साथ लंगर चलाकर खाने-पीने व ठहरने के प्रबंध कर अपने आपको धन्य मानते हैं।

मेलार्थियों के लिए सारे प्रबन्ध गुहड़ा गाँव में संत सदाराम जी महाराज के मुख्यधाम पर विशाल परिसर में फैला हुआ मंदिर व समाधि स्थल है। इसके आस-पास उनके वंशजों की समाधियाँ हैं। 

मंदिर प्रबंधन गतिविधियों के लिए उत्तरदायी "श्री सादुल सेवा समिति " है जो मन्दिर का रख रखाव के साथ मेला आयोजित करती है के समीप ही श्रृद्धालुओं के आवास हेतु कई धर्मशालाएँ हैं जिनमें सारी व्यवस्थाएं निःशुल्क उपलब्ध हैं। संत श्रीसदाराम जी महाराज की कृपा पाने को आतुर हजाराें भक्तजन गुहड़ा के मेले में पहुँचते हैं। 

लोगाें का विश्वास है कि संतश्री आज भी सूक्ष्म रूप में विद्यमान हैं तथाभक्तों की सहायता करते हैं। संत श्रीसदारामजी महाराज के प्रति भारत एवं पाकिस्तान दोनों देशों के पूरे सरहदी क्षेत्र में श्रृद्धा का ज्वार उमड़ता रहा है।

 

"संत श्री सदाराम जी महाराज का संक्षिप्त परिचय"

 

जन्म नाम- श्री सादूल

जन्म-  विक्रम संवत 1863 चैत्र शुक्ल द्वितीया

महाप्राण- विक्रम संवत 1936 चैत्र शुक्ल चतुर्थी

पिता- श्री जीवणराम

माता - श्रीमती ईतु बाई

भाई -  श्री गोविंदराम, श्री गौरखराम

वंश - गर्ग वंश हेमचंद्र नुख

जन्म स्थान - गांव गुहङा पोस्ट झिझनियाली तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर राजस्थान।

मत- सुफी 

आराध्य देव - श्रीराम व निराकार ब्रह्म

भक्ति - साकार व निराकार दोनो

गुरु - श्री सेवारामजी

शिष्य -  तत्कालीन जैसलमेर महारावल श्री केशरीसिंह जी

ग्रंथ - 9 जिसमें -समझ सागर ,सादूल गीता, इशक समुद्र निर्माण सागर ,सुध सागर ,मुलदीप  ,ज्ञान सागर रामसागर गीता ,आदि। है।

पर्चे - मालुबाई के पुत्र को जीवित करना, केशरी सिंह को भगवान श्री कृष्ण के रूप दर्शन कराना, रतो ठानी को पुत्र प्राप्ति का वरदान, गेनाराम को कुएं से निकलना , रामगिरी को तांत्रिक विद्या छुङाना, पिपलवा गांव से भुतो को भगाना आदि कई जीवित पर्चे दिए।

समाधि स्थल - गांव गुहङा पोस्ट झिझनियाली तहसील फतेहगढ़ जिला जैसलमेर राजस्थान।

मन्दिर संचालन समिति- श्रीसादूल सेवा समिति गुहङा।

मन्दिर- मुख्य मन्दिर गांव गुहङा , कोहरा ,चैलक,बाङमेर, जैसलमेर , मोहनगढ़,रामगढ, रायपुर छत्तीसगढ़, नागोलङी, आदि कई स्थानो पर । पाकिस्तान में - खिपरो , पेरूमल, पुणसा आदि।

ज्ञान प्राप्ति -   योग शक्ति के द्वारा

मन्दिर संचालन  समिति- श्री सादूल सेवा समिति गुहङा



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