धुँधले- बादल

सड़क पर जाते समय उसे बार-बार ऐसा लग रहा था।जैसे कोई अजनबी उसका पीछा कर रहा है।पर वह जब भी पीछे मुड़कर देखती, उसे कोई भी दिखाई नहीं देता। फिर उसे लगा कहीं उसे वहम तो नहीं हो गया है। वह सीधी चलती रही, गली में घुसने से पहले उसने एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा।

पर उसे दूर-दूर तक कोई नजर नहीं आया। उसे आज वैसे भी बाजार से लौटने में देर हो गई थी। शाम के सात बज रहे थे। उसने जैसे ही गेट खटखटाया, अंदर से समीर की आवाज सुनकर वह हैरान रह गई। आप आज जल्दी आ गए। क्यों, आ नहीं सकता? अरे नहीं, आप ऐसा क्यों कह रहे हो? अच्छा अंदर चलिए, मैं आपके लिए चाय बनाती हूँ। लाओ सामान तो पकड़ा दो, जया। जी जी कहकर वह घर में घुस गई। अभी तक बच्चे भी ट्यूशन से नहीं लौटे थे। उसने घड़ी पर सरसरी नज़र डाली।
जया रात को खाने में चटपटा कुछ मत बनाना। क्यों, क्या हुआ? कहकर वह समीर का चेहरा देखने लगी। एक हल्का सा भय उसके भीतर ठहर गया। छह बजे वाली गाड़ी से माँ आ रही है।
क्या वह लगभग चीख पड़ी?उसे अपनी सांस से बहुत डर लगता था। वह चाय बनाने रसोई में घुस गई।समीर ने उसे आवाज दी, जया जल्दी करो। मुझें स्टेशन भी पहुंचना है। अगर समय पर स्टेशन ना पहुंचा तो, तुम तो जानती ही हो।माँ
समय की कितनी पाबन्द है?
जी जी कहकर वह चाय का कप लिये,ड्राइंग रूम आ गई। पहले क्यों नहीं बताया कि आज माँ आ रही है? अरे, जया मुझें भी कहाँ पता था? अभी कुछ देर पहले ही माँ का फोन आया था। इसीलिए ऑफिस से जल्दी निकल पड़ा। चाय तो आराम से पी लो। जया तुम्हें तो पता है,मुझें चाय जल्दी पीने की आदत है। तुम चिंता ना करो। अच्छा चलता हूँ। बच्चों को ट्यूशन से ले आना।
गेट की खटखट की आवाज से वह पहचान गई की बच्चे हैं।बच्चें मम्मी-मम्मी कह कर उससे चिपट गए।जल्दी करो, दादी आने वाली है।दादी का नाम सुनते ही बच्चों के चेहरों का रंग फीका पड़ गया। मम्मी,दादी हमें बहुत डाँटती है, बात- बात पर चिल्लाती हैं। वह हमें कभी भी प्यार नहीं करती हैं। नहीं ऐसा नहीं कहते, दादी थोड़ी सख्त हैं,पर तुम्हें दिल से बहुत प्यार करती हैं। आप सच कह रही हो मम्मी।हाँ-हाँ चलो जल्दी से मुँह हाथ धो लो।
वह भी जल्दी से रसोई में घुस गई। उसने कुकर में दाल पकने के लिए रख दी। गैस की आँच धीमी करके,वह आटा घुथने लगी।धीरे-धीरे वह अतीत की तंग गलियों में खो गई।जब वह शादी होकर इस घर में आई थी। उसके बड़े सपने थे।वह पढ़ी- लिखी थी।
मम्मी-पापा की लाडली थी। घर का कामकाज तो उसने कभी किया ही नहीं था। सिर्फ पढ़ाई और घूमना फिरना इसी का शौक था उसे। अच्छा घर-बार मिला था। समीर अपने घर की इकलौती  संतान था। खूब पढ़ा-लिखा था। घर में सिर्फ दो ही सदस्य थे। समीर और उसकी माँ। शादी के कुछ दिन तो सही से गुजरे।
पर उसके बाद उसकी जिंदगी नरक बन गई थी।माँ जी को उसका कामकाज बिल्कुल पसन्द नहीं आता था। घर में हर समय कहा-सुनी होने लगी थी। खाना बनाने से लेकर कपड़े धोने तक। हर समय तानों की बरसात होती थीं। पति बिल्कुल दब्बू थे। माँ के सामने आते ही उनकी हिम्मत जवाब दे जाती थीं।
वह माँ को कुछ कह नहीं पाते थे।सुबह देर से उठने पर दोनों को माँ की खूब खरी-खोटी सुननी पड़ती थी। समीर तो तैयार होकर ऑफिस के लिए निकल जाते।पर उसका सारा दिन जेल में पड़े कैदी की तरह कटता था। उसे किसी तरह की आजादी नहीं थी। कुछ समय में ही वह दो बच्चों की माँ बन गई थी। पर मजाल है वह कोई निर्णय ले पाती हो। माँ जी बच्चों के प्रति भी बहुत सख्त थीं। वह हमेशा मुझें डांटती थी कि बच्चों को बचपन से अनुशासन सिखाओ, जया। घर को क्या सर्कस बना रखा है, तुमने?
सुबह से ही घर में शोर-शराबा शुरू हो जाता है।टीवी के नाम से तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ जाता था। वह टीवी पर चल रहे संगीत को अश्लीलता की श्रेणी में रखती थी। मुझें ताना देना नहीं भुलती थी। शादी से पहले तुमने घर पर गाने ही तो सुने हैं।तुम्हारी माँ ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया। मैं सब कुछ सुनती रहती थी।
माँ जी जीवन में अनुशासन को बहुत महत्व देती थीं। उनका स्वभाव बहुत कठोर था। पिता जी की मौत के बाद से वह बदल गई थी।वह बहुत पढ़ी-लिखी थी।पर उन्होंने नौकरी नहीं कि सिर्फ पेंशन के सहारे ही समीर की बहुत अच्छी परवरिश की थी।
समीर बहुत साधारण थे। पर उनके अंदर ज्ञान कूट-कूट कर भरा था।इसके लिए वह अपनी माँ को बहुत धन्यवाद देते थे।समाज में उनका बहुत मान-सम्मान था।सभी मुझें भी बहुत मान देते थे।लोग समीर की तारीफ करते नहीं थकते थे। हम पिछले कुछ वर्षों से इस शहर में रह रहे थे।
माँ पहली बार हमारे पास आ रही थी। समीर ने बहुत  कहा था। माँ हमारे पास रहो। पर वह अपना घर छोड़ने को तैयार नहीं थी। गेट पर हो रही आवाज से,वह वर्तमान में लौट आई। वह सिर पर पल्लू रखकर गेट की तरफ बढ़ गई।उसनें गेट खोलते ही माँ जी के चरण स्पर्श किए। जया, तुम बहुत दुबली हो गई हो। अपना ख्याल क्यों नहीं रखती?माँ जी के मुँह से यह शब्द सुनकर वह हैरान थी।वह सीधे माँ जी को अपने कमरे में ले गई।
माँ जी दीवारों पर लगे चित्रों को बड़े ध्यान से देख रही थी। जया यह चित्र किसने बनाए हैं?बहुत सुंदर हैं।माँ जी मैं ही खाली समय में थोड़ा बहुत  कहकर वह चुप हो गई। वह आगे कुछ ना कह सकी। शब्द जैसे उसके गले में फंस कर रह गए थे।
जया बहुत सुंदर हैं,सारे चित्र,बहुत प्यारे हैं।अरे, मेरे पोता पोती कहाँ हैं?उन्हें बुलाओ जरा। माँ जी, वह अभी भी यकीन नहीं कर पा रही थी कि यह वही माँ जी है। बच्चों ने दूर से ही उन्हें डरते-डरते नमस्ते किए। जया ने बच्चों को इशारा किया, चरण स्पर्श करो बच्चों,जी मम्मी। दादी माँ ने उन्हें अपने गले से लगा लिया। अरे छोड़ो, चरण स्पर्श मेरे गले लग जाओ। माँ जी खाना तैयार है। ठीक है, सभी के लिए खाना लगाओ। माँ जी पहले आप खा लो। हम बाद में, नहीं सभी साथ में खाएंगे, थाली तैयार करो।
समीर को भी माँ में आए, इस परिवर्तन पर हैरानी हो रहीं थी। सभी ने एक साथ खाना खाया। जया, खाना बहुत अच्छा बना है।जया सोते समय माँ जी के पैर दबा कर रही थीं। जया क्या तुमने मुझें माफ कर दिया है? उसने जया के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,माँ जी आप ऐसा क्यों कह रही हो?
बताओ ना, जया। माँ जी आप बड़ी है ,आप हमेशा हमारा भला चाहती हैं। समीर भी माँ के पास बैठ गया। समीर,मैंने जीवन भर तुम पर भी बहुत सख्ती की है। मुझें माफ कर देना बेटा। नहीं, माँ तुम्हारी सख्ती तथा अनुशासन के कारण ही आज समाज में मेरा मान-सम्मान है। आपके संस्कारों के कारण ही मेरे पास पद-प्रतिष्ठा है।
बेटे तुम्हारे पापा के मरने के बाद,सभी  मुझें ताने देती थी कि मैं तुम्हें कैसे पालूगी?मै तुम्हें कैसे कामयाब करूँगी? सिर पर पिता का साया नहीं है, मैंने उसी दिन ठान लिया था। आगे वह कुछ ना कह सकी थी।उनकी आंखें भर आई थीं।आसमान में बिजली कड़क रहीं थीं। बच्चे डर के मारे दादी के पास आ गए थे। क्या हुआ, बच्चों? दादी बारिश हो रही है। दादी की आंखें भर आईं थी, उनकी आंखों से आंसू बह रहे थे। समीर और जया भी माँ जी से चिपट गए। बारिश बहुत हो रही थीं।धीरे-धीरे आसमान भी साफ हो रहा था। जया मन ही मन कह रही थी।आज मेरे मन के धुँधले बादल भी छट गए है।
 
     राकेश कुमार तगाला
          ( हरियाणा )




 














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