ग़ज़ल
छिनेगा नहीं जो भी किस्मत लिखा है। न किस्मत से ज़्यादा किसीको मिला है। सही क्या ग़लत क्या बताए भला क्या, सवालों से जब आदमी खुद घिरा है। नहीं रोक सकता कोई राह उसकी, जिसे हर क़दम मिल रहा हौसला है। लहू फिर से उससे टपकने लगेगा, कुरेदो नहीं जख़्म अब तक हरा है। कहूँ किस ज़बांस…