"ज़िंदगी"
ज़िंदगी को बहुत प्यार मैनें किया , ज़िंदगी मुझको फिर भी रुलाती रही। ख़्वाब मैने बहुत थे संजोए मगर, खुशियां मुझको ही आखिर भुलाती रही। मैनें चाहा सुकून उम्र भर का मगर, ज़िंदगी मुझको फिर भी सताती रही। मेने हंसकर सहे हर सितम प्यार में , वो सितम पे सितम मुझ पर ढहाती रही। मैनें सपनों के महल बनाए थे मगर,…