हमे पागल ही रहने दो,हम पागल ही अच्छे है

जब भगत सिंह को फांसी पर चढ़ाया गया उस समय भगत सिंह महज 23 साल के थे ,लेकिन उनके क्रांतिकारी विचार बहुत व्यापक और आला  दर्जे के थे, दोस्त न केवल उनके विचारों ने लाखों भारतीय युवाओं को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित किए , देखे तो आज भी उनके विचार हम युवाओं को मार्गदर्शन व प्रेरित करते हैं। साथियों भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में शहीद-ए-आजम भगत सिंह, राजगुरु एवं सुखदेव का नाम आदरपूर्वक लिया जाता है, जो अंतिम सांस तक आजादी के लिए अंग्रेजों से टक्कर लेते रहे,  23 मार्च, 1931 के दिन भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव को लाहौर सैंट्रल जेल में फांसी के तख्ते पर झुलाया गया, तो पूरे देश में अंग्रेजों के प्रति रोष की लहर दौड़ गई। फांसी के तख्ते पर चढ़कर पहले तो तीनों ने फांसी के फंदे को चूमा और फिर अपने ही हाथों से उस फंदे को सहर्ष गले में डाल लिया। यह देखकर जेल के वार्डन ने कहा था की इन युवकों के दिमाग बिगड़े हुए हैं, ये पागल हैं,  तभी सुखदेव ने वार्डन को  यह गीत सुनाए थे  , ‘‘इन बिगड़े दिमागों में घनी खुशबू के लच्छे हैं, हमें पागल ही रहने दो, हम पागल ही अच्छे हैं।’’ इसी के साथ तीनों क्रांतिकारी फांसी के फंदे पर झूल गए,  ये तीनों अद्भुत क्रांतिकारी विचारधारा के अनुयायी थे, तभी तो फांसी लगने से कुछ क्षण पहले तक भगत सिंह एक मार्क्सवादी पुस्तक पढ़ रहे थे, सुखदेव कुछ गीत गुनगुना रहे थे एवं राजगुरु वेद मंत्रों का गान कर रहे थे। जीवन की मस्ती इन्हें डी.ए.वी. कालेज लाहौर में गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, हरिद्वार के स्नातक जयचंद विद्यालंकार के विचारों से प्राप्त हुई थी।  ये तीनों ‘महान पराक्रमी  भारत सभा’ के सक्रिय सदस्य तथा ‘हिंदुस्तान समाजवादी रिपब्लिकन आर्मी’ के अनोखे वीर थे।तीनों की मित्रता इसलिए भी सुदृढ़ और मजबूत थी क्योंकि उनकी विचारधारा एक थी, राजगुरु ने वाराणसी में विद्याध्ययन करने के साथ-साथ संस्कृत भाषा का अच्छा ज्ञान प्राप्त किए थे । वहीं रहते हुए धर्मग्रंथों तथा वेदों का अध्ययन किए थे ,तथा साथ-साथ लघुसिद्धांत ‘कौमुदी’ जैसे क्लिष्ट ग्रंथ का अध्ययन किया। ‘कौमुदी’ इन्हें पूर्ण रूप से कंठस्थ थी और ये छत्रपति शिवाजी की छापामार युद्ध शैली के बहुत प्रशंसक थे,इसी प्रकार सुखदेव को खतरों से खेलने की आदत हो गई थी। उनकी स्मरणशक्ति अद्भुत थी। आपकों बता दे कि संत सिपाही मंच ने दिल्ली के एमपी क्लब में मुझे भी 2019 का भगत सिंह अवॉर्ड सम्मान से सम्मानित किया गया था,लेकिन आज हम यहां बहुत ही दुखी होकर आपसे सवाल कर रहा हूं की आजादी के इतने वर्षो के बाद भी आज तक  क्रांतिकारी भगत सिंह को शहीद का दर्जा क्यों नहीं दिया गया है ? साथियों वतन के लिए त्याग और बलिदान भगत सिंह के  लिए सर्वोपरि रहा, वे कहते थे कि एक सच्चा बलिदानी वही है जो जरुरत पड़ने पर सब कुछ त्याग दे, भगत सिंह स्वयं अपनी निजी जिंदगी से प्रेम करते थे, उनकी भी महत्वाकांक्षाएं थी, सपने थे, लेकिन वतन पर उन्होंने अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया,लेकिन आज तक इनके शाहिद का दर्जा भी नहीं दिया गया,आखिर क्यों? दोस्तो इंकलाब का नारा बुलंद करने वाले भगत सिंह अपने आखिरी समय में भले ही अंग्रेजी हुकूमत की बेड़ियों में जकड़े थे, लेकिन उनके विचार आजाद थे वे कहते थे कि बेहतर जिंदगी सिर्फ अपने तरीकों से जी जा सकती हैं, यह जिंदगी आपकी है और आपको तय करना है कि आपको जीवन में क्या करना है?  भगत सिंह कहा करते थे, मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है और मेरी गर्मी से ही् राख का हर एक कण गतिमान हैं। भगत सिंह जीवन के लक्ष्य को महत्व देते थे,  उनका मानना था कि हमें अपने जीवन का लक्ष्य पता होना चाहिए। अगर हमें अपने लक्ष्य का पता होगा और हम अपने लक्ष्योन्मुख  से कार्य करेंगे तो हमें सफल होने से कोई ताकत नहीं रोक सकती है ,साथ ही दोस्त परिवर्तन या बदलाव को लेकर उनके विचार सकारात्मक थे, वे मानते ते कि हमें बदलाव से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है। वे रूढ़िवादी विचारों के लिए कहते थे कि हमें किसी चीज का आदि नहीं होना चाहिए, हमे भी साथियों जरूरत आने पर  इन महान पराक्रमी क्रांतिकारी योद्धाओं से प्रेरित होकर देश के लिए अपना  सर्वस्व न्यौछावर कर देनी चाहिए ।














 विक्रम क्रांतिकारी
         दिल्ली  

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