वर्तमान का गीत
रोदन करती आज दिशाएं,मौसम पर पहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे हैं वो,घाव बहुत गहरे हैं ।। बढ़ता जाता दर्द नित्य ही, संतापों का मेला कहने को है भीड़,हक़ीक़त, में हर एक अकेला रौनक तो अब शेष रही ना,बादल भी ठहरे हैं । अपनों ने जो सौंपे वो,घाव बहुत गहरे हैं ।। मायूसी है,बढ़ी हताशा, शुष्क हुआ हर मुखड़ा जिसका …