हमीद के दोहे
जनता का हक़ मार कर , सजवाते दरबार। सत्ता में आते नहीं, कभी दूसरी बार। जिनके ज़हनों में बसा, नफरत का शैतान। उनको कह सकते नहीं, हरगिज़ हम इन्सान। मानवता की चीख सुन, शासक रहता मौन। आग लगाकर खुश बहुत,धरती का फिरऔन। किसी व्यक्ति से चाहते,रखते जब कुछ आस। पूरा होता जब कहीं…