गुरुजन ही पँख लगाते हैं
तमतोम मिटाते हैं जग का , गुरुजन धरती के दिनकर हैं। हैं अंक सजे निर्माण प्रलय, शिष्यों हित प्रभु सम हितकर हैं । शुचि दिव्य ज्ञान के दाता वह ,सोने को पारस मे बदले। वह सृजनकार वह चित्रकार , वह मात पिता सम सुधिकर हैं । कच्ची मिट्टी को गढ़कर के , वह सुन्दर रूप सजाते हैं । देते खुराक मे संस्कार , …