(पुस्तक समीक्षा) मूर्खमेव जयते युगे युगे(व्यंग्य संग्रह)

 

ऐसे समय में जब पुस्तक प्रकाशन का सारा भार लेखक के कंधो पर डाला जाने लगा है , दिल्ली पुस्तक सदन ने व्यंग्य , कहानी , उपन्यास , जीवन दर्शन आदि विधाओ की अनेक पाण्डुलिपियां आमंत्रित कर , चयन के आधार पर स्वयं प्रकाशित की हैं . दिल्ली पुस्तक सदन का इस  अभिनव साहित्य सेवा हेतु अभिनंदन . इस चयन में जिन लेखको की पाण्डुलिपिया चुनी गई हैं , विनोद कुमार विक्की युवा व्यंग्यकार इनमें से ही एक हैं , उन्हें विशेष बधाई . अपनी पहली ही कृति भेलपुरी से विनोद जी नें व्यंग्य की दुनियां में अपनी सशक्त  उपस्थिति दर्ज की थी . आज लगभग सभी पत्र पत्रिकाओ में उन्हें पढ़ने के अवसर मिलते हैं . उनकी अपने समय को और घटनाओ को बारीकी से देखकर , समझकर , पाठक को गुदगुदाने वाले कटाक्ष से परिपूर्ण लेखनी ,अभिव्यक्ति हेतु  उनका विषय चयन , प्रवाहमान , पाठक को स्पर्श करती सरल भाषा विनोद जी की विशिष्टता है . मूर्खमेव जयते युगे युगे प्रस्तुत किताब का प्रतिनिधि व्यंग्य है . सत्यमेव जयते अमिधा में कहा गया शाश्वत सत्य है , किन्तु जब व्यंग्यकार लक्षणा में अपनी बात कहता है तो वह मूर्खमेव जयते युगे युगे लिखने पर मजबूर हो जाता है . इस लेख में वे देश के वोटर से लेकर पड़ोसी पाकिस्तान तक पर कलम से प्रहार करते हैं और बड़ी ही बुद्धिमानी से मूर्खता का महत्व बताते हुये छोटे से आलेख में बड़ी बात की ओर इंगित कर पाने में सफल रहे हैं . इसी तरह के कुल ४३ अपेक्षाकृत दीर्घजीवी विषयो का संग्ह है इस किताब में . अन्य लेखो के शीर्षक  ही विषय बताने हेतु उढ़ृत करना पर्याप्त है , जैसे कटघरे में मर्यादा पुरुषोत्तम , आश्वासन और शपथ ग्रहण , चुनावी हास्यफल , सोशल मीडिया शिक्षा केंद्र , मैं कुर्सी हूं , सेटिंग , पुस्तक मेला में पुस्तक विमोचन , हाय हाय हिन्दी , अरे थोड़ा ठहरो बापू , जिन्ना चचा का इंटरव्यू , फेसबुक पर रोजनामचा जैसे मजेदार रोजमर्रा के सर्वस्पर्शी विषयो पर सहज कलम चलाने वाले का नाम है विनोद कुमार विक्की . आशा है कि किताब पाठको को भरपूर मनोरंजन देगी , यद्यपि जो मूल्य ३९५ रु रखा गया है , उसे देखते हुये लगता कि प्रकाशक का लक्ष्य किताब को पुस्तकालय पहुंचाने तक है | 


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