भय बिनु होइ न प्रीति
 विनय न मानत जलधि जड़, गए तीनि दिन बीति।

बोले राम सकोप तब, भय बिनु होइ न प्रीति।।

यह दोहा महाकवि तुलसीदास जी ने अपने महाकाव्य रामचरितमानस के सुंदर कांड के उस प्रसंग में लिखा जब भगवान राम अपनी बानर सेना के साथ लंका पहुँचने के लिए  समुद्र के किनारे खड़े हैं।  सागर से राह मांगने तीन दिवसों के व्यतीत होने पर भी जब कोई हल नहीं निकला, तब सागर को सुखाने के लिए प्रभु राम ने क्रोध में अपने अमोध वाण का सन्धान किया। यह देखकर सागर त्राहि-माम त्राहि-माम करते हुए राम के समक्ष दया की याचना करने लगा। 

सुंदरकांड में ही दोहा क्रमांक अठावन के पश्चात छठवी  चौपाई आती है 

ढोल गंवार शूद्र पशु नारी, सकल ताड़ना के अधिकारी।

 यहाँ इस चौपाई की व्याख्या करना  आवश्यक नही है  लेकिन विषय के सन्दर्भ में इसे  प्रस्तुत करना औचित्य पूर्ण अवश्य  है।

विषयान्तर्गत औऱ देखें तो  तुलसीदास ने अपनी गीतावली लंका यात्रारम्भ में लिखा है

"जब रघुबीर पयानो कीन्हों, छुभित सिंघु, डगमगत, महीधर, सजि सारँग कर लीन्हों"

  हम देखते हैं कि श्री राम की सेना जब उत्साह के साथ  सागर सेतु पर बढ़ती है तो सागर, पर्वत, कांपने, डगमगाने लगते हैं।

उक्त भूमिका के उपरांत हम वर्तमान परिस्थितियों में इस विषय पर विचार करें तो देखते हैं आज पूरे  विश्व  की सम्पूर्ण शक्ति पर  कोरोना वायरस निरंकुश होकर अट्हास कर रहा है। 

हमारा भारत देश भी इसी अट्टहास से भयभीत है । हमारी सरकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन व अपने स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह  के आधार पर  सम्पूर्ण देश में लॉक डाउन करने का निर्णय लिया।सरकार के इस फैंसले का देश के समझदार लोगों ने पूर्ण पालन किया और घर मे रहकर सरकार के निर्देशों का पालन किया, जिसके परिणाम आंकड़ों में देखें तो भारत अन्य देशों की तुलना में  बेहतर सिद्ध हो रहा है।

लेकिन कुछ  मूर्ख, अज्ञानी जनों के कारण इस बीमारी में वृद्धि हुई , कुछ वर्ग विशेष ने जानबूझ कर सरकार के आदेशों की अवहेलना की,  कोरोना पॉजिटीव होने के लक्षण को छुपाया, सरकार के एडवाइजरी जारी करने पर भी लगातार उलंघन किया। पुलिस डॉक्टर्स सफाई कर्मियों पर हमले किये। बिना कार्य के घर से निकलकर सड़क्यों पर विचरण किया।

तब सरकार को कठोरता से ऐसे मूर्ख लोगों के लिए कार्रवाई करनी पड़ी। पुलिस को लाठी भी चलानी पड़ी, एफआईआर भी करनी पड़ी।  इस आधार पर कहा जा सकता है कि

       "भय बिनु होइ न प्रीति" अतः यह पँक्ति आज प्रासङ्गिक है।

 


               डॉ.शशिवल्लभ शर्मा



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