(पुस्तक समीक्षा ) :संवेदनशील कृति : काव्य दीप



 

और मेरा घर

बना हो काँच का तो

आपस में पथराव नहीं करना चाहिए 

अन्यथा -

तू भी बेघर

मैं भी बेघर।"

कितना कुछ कह जाता है, कवि का चिन्तन औचित्यपूर्ण हैं।संग्रह की एक कविता है "राह चलते", इस कविता की एक पंक्ति देंखे -

"तुम नौकरी नहीं पा सकोगे 

क्योंकि वहां सब भ्रष्ट हैं

रिश्वत खोर हैं

भाई-भतीजावाद है ------

राह चलते 

एक मील का पत्थर 

मुझसे यों बोला 

मेहनत कर

खुद का धंधा कर

बेडा पार हो जाएगा ।"

इस पंक्ति के माध्यम से कवि भ्रष्टतंत्र का जो पर्दाफाश किया है काबिलेतारीफ है, युवा मन की व्यथा है, बेहतरीन कविता है ।संग्रह की एक कविता है "शब्दों का व्यंजन" , इस कविता की यह पंक्ति देंखे -

"मैं और मेरी माँ 

दोनों मिलकर 

नये-नये व्यंजन बनाते हैं----

यह जो मैं अपने हृदय की 

आवाज को

पृष्ठों पर उतार रहा हूं---

यह भी तो एक व्यंजन /पकवान है ।"

इस कविता के माध्यम से कवि "वर्मा" समस्त कवियों की कहानी कहने का काम किया है ।निश्चित रूप से कोई भी सृजन सृजक का व्यंजन ही तो होता है ।कवि "वर्मा" की दृष्टि बहुत ही संवेदनशील है तभी तो उन्होंने "वो बुढ़िया" शीर्षक कविता के माध्यम से दर्द को उकेरने का काम किया है, कविता की यह पंक्ति देंखे -

"गरीब बुढ़िया /बीमार बुढ़िया 

रो रही थी /गिडगिडा रही थी

बस अंदर जाना चाहती थी 

डाॅक्टर से मिलना चाहती थी

लेकिन 

बुढ़िया के पास फूटी कौड़ी तक नहीं थी

इसलिए तो गेटमैन 

बुढ़िया को सुना रहा था 

भद्दी - भद्दी गालियां-----"

इस को पढ़कर जो दृश्य उभरते हैं विचारणीय है ।मन को उद्वेलित करती है कविता।संग्रह की एक कविता है "मेरा मन करता है" ,यह कविता एक बाल कविता है, कविता की अंतिम पंक्ति देंखे -

"मेरा मन करता है 

एक बार फिर मैं 

नन्हा -सा बन जाऊँ

कागज की नाव पानी में तैराऊं

बनकर छोटा-"छोटू"

मधुर-मधुर गीत गाऊं

माँ को अपनी तोतली जुवान से रिझाऊं

मेरा मन करता है 

फिर बचपन को बुलाता है ।"

  इस कविता से कवि "वर्मा" के बाल- मनोवैज्ञानिक होने का भी पता चलता है, कवि को बाल- मनोविज्ञान पर भी मजबूत पकड है।"मानवता के नाम मेरा है पैगाम " शीर्षक कविता की यह पंक्ति देंखे -

"मानवता के नाम मेरा है पैगाम

अच्छे - अच्छे हों शुभ काम।

चंद सिक्कों में न बिके ईमान

कर्म-धर्म ही हो जीवन का अरमान 

प्रेम स्वरूप ईश्वर का मानव तू जान।"

  यह कविता अच्छा संदेश देता है ।संग्रह की "सबको बुढा होना है" शीर्षक कविता की अंतिम पंक्ति देंखे -

"जगह-जगह पर

बुजुर्गो का अपमान करते हैं।

आखिर क्यों---

अकल पर पत्थर पड जाते हैं

लोग अपनी माँ-बाप को 

घर से बेघर कर देते हैं

ट्रेन -बस में बुजुर्गो को

परेशान करते हैं

अक्सर लोग भूल जाते हैं

सबको बूढ़ा होना है ।"

  यह बहुत ही संदेशप्रद कविता है।कवि "वर्मा" ने अपना संदेश बहुत ही संवेदनात्मक रूप से कविता के माध्यम से व्यक्त किया है ।

     संग्रह की सभी कविताएं सिर्फ गंभीर ही नहीं कुछ कविताएं मन को गुदगुदाती भी है ,जैसे "प्यार पाने" शीर्षक कविता ।कवि "वर्मा" के शब्दों को देंखे इन पंक्तियों में-

"यूं बार - बार देखो न तुम 

कहीं आँखें चार न हो जाये।"

 

"पल - पल गीत गाओ न तुम 

कहीं हृदय हमारा खो न जाये।"

 

"मन  ये  चंचल   हो  गया   है 

वास्तव में हमें कुछ हो गया है ।"

       कविता में रूमानियत है, प्यार है,मनुहार है ।प्रेम से लबरेज सुन्दर प्रेम कविता है यह।

      संग्रह की सभी कविताओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया गया है जिससे पाठकों को समझने में आसानी होती है और कविता सीधे मानस-पटल पर अंकित हो जाती है ।निश्चित रूप से कवि मुकेश कुमार ऋषि वर्मा कृत यह काव्य-संग्रह "काव्य दीप" संवेदनशील कृति है ।

       


 

कवि - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

मूल्य -₹100/- 

प्रकाशन वर्ष - 2018

प्रकाशक- रवीना प्रकाशन दिल्ली 

समीक्षक - अतुल मल्लिक "अनजान"(संपादक "सृजनोन्मुख" मासिक ई-पत्रिका )




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