हास्य एवं व्यंग्य का बेजोड़ मिश्रण है रंदी सत्यनारायण की हाय ये दिल!
              रन्दी सत्यनारायण राव


देश के ख्यातिनाम वरिष्ठ साहित्यकार श्री रंदी सत्यनारायण राव अपनी तीक्ष्ण, पैनी और बेलाग लपेट लेखनी के लिए जाने जाते हैं। सोशल मीडिया पर उनकी बेलाग लपेट वाली तल्ख टिप्पणी से कई साहित्यकार उनसे कन्नी  काटते भी नजर आते हैं।

बाल साहित्य से व्यंग्य लेखन तक उनकी लेखन कुशलता काफी प्रभावी है।

प्रस्तुत व्यंग्य कृति हाय ये दिल! के सारे व्यंग्य आलेख सामाजिक विसंगतियों व जीवन की विभिन्न समस्याओं से जुड़ी हैं। हाय ये दिल महज एक पुस्तक नहीं अपितु राजनीतिक,शैक्षणिक, साहित्यिक जगत सहित  सामयिक- सांस्कृतिक विद्रूपताओं का आईना भी हैं।कुछ रचनाएँ यथार्थ के इर्द-गिर्द प्रतीत होती है।संग्रह की रचनाएँ जिसमें हास्य पुट है तो व्यंग्य का तीखा प्रहार भी।

                      "मुफ्तखोर रचनाएँ आमंत्रित करता है "शीर्षक में व्यंग्यकार ने ऐसे संपादकों को जमकर लताड़ा है जो बिना पारिश्रमिक के रचना मंगवाते हैं और पत्रिका की सदस्यता लेने का दबाव बनाकर रचना प्रकाशन का मार्केट फैला रखा है। "संपादक जी के बहाने" भी कुछ इसी तर्ज पर व्यंग्यात्मक बन पड़ी है। शायद ही कोई नवोदित साहित्यकार अछूता हो जो इस रचना से सारोकार नहीं रखते हो।

नाम को नमस्कार शीर्षक के तहत लोलुप और पक्षपाती हो चुकी मीडिया को नंगा करने का सुंदर प्रयास किया है लेखक ने।इसमें हद तक सच्चाई भी है कि बिक चुके दैनिक पत्र के पत्रकार किसी साहित्यकार के साहित्य सम्मान की खबरों को तब तक प्रकाशित नहीं करते जबतक कि सम्मानित साहित्यकार उनके परिचित ना हो अथवा वे विज्ञापन प्राप्ति का जरिया ना हो!


                      पति पत्नी और अखबार, बीवी का मायके जाना, लेखक की बीवी,भैया जी रंग रसिया और खिलंदड़ जी में भरपूर हास्य पुट मिलता है जो पाठकों को रोचक लगेगी।हाय ये दिल में लेखक ने दिल और उनसे जुड़ी गतिविधियों को व्यंग्यात्मक रूप से पेश करने का प्रयास किया है।

हाय मै हिन्दी भाषी क्यों न हुआ में लेखक ने अहिन्दी भाषा क्षेत्र के हिन्दी प्रेमी साहित्यकारों के दर्द को उकेरा है।

 "कवि और कविता,मेहमान नवाजी का मजा,परनिंदा परम सुखम्"  में जबरदस्त कटाक्ष किया है।भारतीय होने का सुख शीर्षक में वर्तमान राष्ट्रीय परिदृश्य को व्यंग्यात्मक शब्दों के माध्यम से उकेरने का सफलतम प्रयास किया है रंदी सत्य नारायण राव ने।

"फैशन की मारी दुनिया बेचारी"  के द्वारा संस्कृति से छीछ काटते युवाओं की मानसिकता को तीखे और तंजपूर्ण शब्दों के माध्यम से जमकर आलोचना की है लेखक ने।


पप्पू फेल और गप्पू प्रधान के तर्ज पर लिखी गई वर्तमान राजनीतिक प्रसंग पर आधारित" गिरगिटिया राजनीति" में हालांकि व्यंग्यकार ने प्रत्यक्ष रूप से एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष पर निशाना साधा है जहाँ व्यंग्य थोड़ा कमजोर दिखता है।सुरक्षा पखवाडा लघु व्यंग्य भी रोचक है।

नहले पर दहला,बाअदब बा मुलाहिजा,मनसुख जी का दुःख,ये दिल मांगे मोर,सच बोले कौआ काटे आदि रचनाएं भी पठनीय बन पड़ी है।


                  व्यंग्य संग्रह में कुल पच्चीस व्यंग्य रचनाओं का समावेश है कुछेक को नजरअंदाज किया जाय तो अधिकांश रचनाएँ तंज एवं तीक्ष्ण शब्दों से भरपूर है।बहरहाल हास्य व्यंग्य में रूचि लेने वाले पाठकों के लिए रंदी जी द्वारा रचित ये व्यंग्य संग्रह उपयोगी साबित होगी।




 

     समीक्षक विनोद कुमार विक्की



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