(पुस्तक समीक्षा):अगर चाहिए शुद्ध हवा तो इस धरती पर पेड़ लगा









गुनगुनाना बच्चों को भाता है. सरल, सहज और गेय पंक्तियां वे जल्दी याद कर लेते हैं. यह उन की मनोवृत्ति होती है. यही कारण है कि वे लोरियां व बालगीत सहजता से याद कर लेते हैं. ऐसी गेय काव्य पंक्तियां उन्हें बहुत लुभाती है.यही गेयता कविता में समाहित हो जाए तो वह कविता बोधगम्य हो जाती है. ऐसी कविताएं बच्चे जल्दी याद कर गुनगुनाने लगते हैं. यह मेरा निजी अनुभव है. बच्चों को पढ़ाते हुए यह मैंने यह महसूस किया है. 

      बच्चे अनोखी और अजबगजब ढंग की कविताएं याद करने में माहिर होते हैं. बस उन्हें कविताएँ पसंद आनी चाहिए . उन्हें गाने, गुनगुनाने और एक दूसरे तथ्यों से सामंजस्य बैठाने में माहिर कविताएं चाहिए. उसे वे सहज ही गाने और गुनगुनाने लगते हैं.

इस कारण से बच्चों के लिए लिखना अपेक्षाकृत कठिन होता है. उन के लिए लिखने वाला रचनाकार जितना सहज और सरल होगा वह उतना ही सरल व सहज लिख पाएगा.बस ऐसी काव्य या काव्य पंक्तियों में प्रवाह और लय होनी चाहिए, बिना लय वाली रचनाएं बच्चों को आनंदित नहीं करती है .

काव्य कृति में लय और प्रवाहमयता जितनी ज्यादा होगी वह उतनी ही आनंददाई होगी. आनंद में सरल, सहज और कथातत्व से भरपूर कविता शीघ्रता से बच्चों को लुभाती है.बाल साहित्य के सुपरिचित रचनाकार राजकुमार जैन राजन जी का प्रस्तुत काव्य संग्रह 'पेड़ लगाओ' इसी दृष्टि से एक उपादेय कृति है. इस की अधिकांश कविताएं बच्चों को आनंद की अनुभूति बड़ी सरलता और सहजता से कराती है.

इस के रचयिता राजकुमार जैन राजन स्वयं सरल, सहज और बालसुलभ जिज्ञासाओं से भरपूर स्वभाव के स्वामी है. उन की इस कृति में उन के परंपरावादी, प्रगतिशील और आधुनिक प्रवृत्तियों के सहज दर्शन होते हैं.

इस संग्रह की कविताएं बाल सुलभ जिज्ञासा जगाने में बहुत ही सक्षम हैं. इस की एक बानगी देखिए—

"रोबेट एक दिला दो राम/सहज, सरल हो सारे काम/ साथ रहेगा सदा हमारे/ रोबू होगा उस का नाम.

भारी भरकम बस्ता भी/ स्कूल को वही ले जाएगा/ होमवर्क भी झट से कर के/ साथ खेलने आएगा." 

भावों को अभिव्यक्त करने में संग्रह की सभी कविताएं सक्षम है. कुछ कविताओं का भावपक्ष बहुत जोरदार है. उन कविताओं  में रचनाकार ने अपनी भावनाओं को पूरी तन्मयता से उंडैल दिया है—

"श्रम करती पेड़ों पर चढ़ती / करती नहीं आराम गिलहरी/हरदम मेहनत करती रहती/ करती काम तमाम गिलहरी."

गिलहरी पर प्रवाहमय भाषा में लिखी गई भावाभिव्यक्ति बच्चों के साथसाथ बड़ों को लुभाने का जज्बा रखती  है.बड़ों से रूबरू कराती इस पंक्तियों को देखिए—

"नकली दांत लगाते हैं / भुट्टे भी खा जाते हैं/ गन्ना खाते आधा जी / मेरे प्यारे दादा जी."

इन पंक्तियों की सहज गेयता पूरी कविता को बेहद सरलता प्रदान करती है. दादाजी की तरह नानीजी पर लिखी गई कविता की निम्न पंक्तियों पर नजर डालिए—

"कभी सुनाती गीत कहानी / कभी खेतों में ले जाती हैं/ मीठेमीठे आम तोड़ कर/ जी भर कर हमें खिलाती हैं."

     ये हमारे पूरखों की गतिविधियों को बेहतर ढंग से बच्चों को समझाने में सक्षम हैं. पापा पर लिखी गई निम्न पंक्तियों को देखिए——

"इसे पसंद है घर का खाना / कभी न चरता भूसा दाना/ पापा के कंधे पर बैठा / चुन्नू गाता मधुर तराना."

     ऐसा नहीं है कि राजन की कविताएं संबंधों पर लिखी गई हैं. वे उस हर क्षेत्र पर अपने भावों को अभिव्यक्ति करती है जो हमारे आसपास सिमटे पड़े हैं. कवि ने अपनी कलम जीव जंतु, पेड़ पौधे, पशु पक्षी, नदी नालें, पर्व त्यौहार, फल फूल, भावों अनुभावों पर चला कर उसे सुंदर, सहज और सरल भावाभिव्यक्ति दी है. 'शेर की शादी', 'सुनाओ कहानी', 'नानी का घर', 'प्यार का पर्व दिवाली', 'जलते दीपक', 'हंसते फूल', 'पेड़ लगाओ' आदि अनेक कविताएं इस संग्रह में संजोई गई हैं. 

 'गुड्डे-गुड़िया की शादी',' नदिया सी लहराती रेल', 'जंगल में चुनाव' हो 'या पेड़ की छांव' — हर कविता में कवि ने मनोरंजन के साथ साथ बच्चों के मनोभावों के अनुरूप भावों का बेहतरीन चित्रण किया है.

'बिल्ली का टीवी', 'मीठी वाणी का जादू', 'सूरज मामा', 'बोली बहना', 'मेंढक का बुखार' के बहाने कवि राजकुमार जैन राजन बच्चों को उन की भावनाओं के अनुरूप शब्दों को भावों को रूप देने में सक्षम हुआ है. ये कविताएं बच्चों को आनंद के साथसाथ सहजता से उन्हें सीख भी दे जाती है.

'इस सर्दी में' कविता की इन पंक्तियों के देखिए—

"रोज सुबह स्कूल जाने में / आती बहुत रूलाई/ नरमनरम बिस्तर से अच्छी / लगती नहीं जुदाई".

इंटरनेट पर लिखी इस काव्य पंक्तियों की भावाभिव्यक्ति का अवलोकन कीजिए—

"कम्प्यूटर का हुआ कमाल/ इंटरनेट घर—घर छाया/ तेज बदलते युग में सारा/ विश्व हथेली पर आया."

'पेड़ लगाओ"  कृति धरती बचाओ का संदेश देने में सक्षम हैं. इस की अधिकांश कविताएं कवि की इस चिंता को चित्रित करती है. 'पानी सहेजें' कविता की इस बानगी को देखिए—

"पर्यावरण बिगाड़ा हमने / जंगल सारे कांटे/ छीना दाना—पानी पंछी का/ दुख कितने ही बांटे."

संग्रहित कविताओं की आमुख कृति "पेड़ लगाओ" की ये पंक्तियां अपनी बात समझाने में पूरी तरह समक्ष हैं. कवि धरतीमाता के इस ऋण को अपनी कृति में भावों को पिरोकर उतारने का सफल प्रयास कर रहा है. अब हमारी बारी है कि उस की इस चिंता पर हम कार्यरूपी पहिए की गति लगा कर धरती को संजाने संवारने का प्रयत्न करें. 

इन भावों से सज्जित इस बाल काव्य संग्रह में कुल 85 कविताएं प्रकाशित हैं. आवरण बहुत सुंदर,आकर्षक व मनभावन है. काव्यकृति के आंतरिक पृष्टों पर सुंदर रेखाचित्र के साथसाथ त्रुटिहीन, अच्छे सफेद कागज पर की गई छपाई बहुत आकर्षक है. सरल और सहज भाषा में लिखी गई इस   110 पृष्ठों की पुस्तक का मूल्य ₹250 रचनाओं और पुस्तक की गुणवत्ता के हिसाब से वाजिब है. अपने प्रति और अपने परिवेश के प्रति बच्चों को सजग करती इस कृति को खरीद कर बच्चों को अवश्य देना चाहिए. यह बच्चों में पढ़ने की प्रवृति जगाने का हमारे प्रयास को बल प्रदान करेगा. 

कवि राजकुमार जैन राजन असीम संभावनाओं के साथ अपनी बात कहने में सक्षम है. आप के आने वाली काव्य कृति और उम्दा होगी. ऐसी आशा की जा सकती है. हमारी ओर से आप को हार्दिक बधाई.■

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ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'



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