(पुस्तक समीक्षा): दस विभूतियों के संघर्ष की पगडंडी से महानता के राजपथ की यात्रा है संजय अविनाश की कृति पगडंडी टू हाइवे
    युवा साहित्यकार सह लघुकथाकार संजय कुमार अविनाश यूँ तो पेशा से एक दवा व्यवसायी है किन्तु प्रगतिशील साहित्य सृजन द्वारा सामाजिक,साहित्यिक आदि क्षेत्रों की बिमारियों का भी शानदार ट्रीटमेंट करते है।उनकी हालिया प्रकाशित पुस्तक पगडंडी टू हाइवे इसका जीता जागता उदाहरण है।




पगडंडी टू हाइवे एक विद्यालय उसमें अध्ययनरत छात्र एवं शिक्षकों के इर्द-गिर्द घूमती बिहार के एक ऐसे संसाधन रहित  कस्बा मेदनी चौकी अमरपुर की जीवंत गाथा है जहाँ जन्म लेने वाले लेखक संजय अविनाश ने विपन्नता की पगडंडी वाले उपेक्षित कस्बे से संपन्नता व महानता के राजपथ पर गमण करने वाले दस महान पथिकों की जीवन यात्रा को शब्दों के माध्यम से महिमा मंडित करने का सुन्दर प्रयास किया है।

लेखक द्वारा अपने गाँव के उच्च विद्यालय की यादों को गरिमा पूर्ण शब्दों के माध्यम से एक पुस्तक का रूप देना वाकई प्रशंसनीय हैं।

पगडंडी टू हाइवे  में दस  ऐसे कर्मवीर शख्सियत की जीवंंत चर्चा हुई है  जिन्होंने मुश्किल और अभाव में रहकर शिक्षा ग्रहण किया और पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए अपने सफलता की एक पहचान और मिसाल कायम की है। 

                        पुस्तक की भूमिका में साठ के दशक में संसाधन रहित अमरपुर विद्यालय की समृद्ध शिक्षा व्यवस्था को कमलेश्वरी मंडल जी ने शब्दों के माध्यम से सुंदर चित्रण किया है।    





                  सेटिंग गुरू रंजीत डाॅन के तर्ज पर केशव की सत्य कहानी मन को छू जाती है जिन्होंने परोपकार के उद्देश्य से अनैतिक कार्य को अंजाम देकर समाज में दर्जनों शिक्षक,अभियंता और डाॅक्टर तो दिए पर खुद बेरोजगार रहे और अंततः रूचि अनुरूप अध्यापन कार्य से जुड़ गए।गुमनामी से दोस्ती कर ली में केशव सिंह के जीवन सार को बखूबी उकेरा है संजय अविनाश ने।

साधना पथ के एकांत पथिक में स्व.सुशील झा को संस्मरण एवं शब्दों के माध्यम से जीवन यात्रा को सामाजिक पटल पर लाने का भरसक प्रयास किया है लेखक ने।विपन्नता में जन्म लेने वाले पेशा से शिक्षक एवं आचरण से सन्यासी सुशील बाबू का सादा जीवन पाठकों के लिए अनुकरणीय साबित हो सकता है।परिवारिक जिम्मेदारियों के बीच अध्यापन के साथ साथ सनातन धर्म का प्रचार एवं धार्मिक कार्यो में भागीदारी झा जी के सादगी और सदाशयी व्यक्तित्व का परिचय है क्षेत्र के लिए।

                     संपन्न परिवार वाले मुखिया जी के पुत्र को पढाई में पीछे छोड़ने वाला निर्धन हरिजन परिवार में जन्मे स्वाभिमानी कटीमन का अभाव एवं संघर्ष की पगडंडी से गुजर कर रांची खनन में उप निदेशक पद तक पहुँचने की संघर्ष गाथा पगडंडी टू हाइवे के राही कमलेश्वरी दास का जीवन चरित निःसंदेह पाठकों को पुस्तक के अंत तक बांधने का काम करेगी।

                           कमलेश्वरी दास उर्फ कटीमन,केशव प्रसाद सिंह एवं स्व.सुशील झा की तरह इस पुस्तक में लक्ष्मी नारायण सिन्हा, देवकीनंदन महतो, डा. कमलकांत, बालेश्वर मंडल, सिंघेश्वर प्रसाद यादव, मो. आफताब आलम एवं स्मृति शेष रामचरित्र महतो के संघर्षशील व्यक्तित्व एवं सादगी वालेे जीवन की बेबाक चर्चा की गई है।महान विभूतियों के संघर्षशील जीवन यात्रा से परिचय कराती यह पुस्तक मिसाल है अमरपुर और साहित्य के लिए।

ग्रामीण जीवन शैैैली पर बनी बाॅयोग्राॅॅॅफी में रूचि रखने वाले पाठकों को बेेेहद पसंद आएगी।

 


     समीक्षक- विनोद कुमार विक्की



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