(पुस्तक समीक्षा): जीना इसी का नाम है
श्री राजकुमार जैन राजन बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार है। सुस्थापित - सुपरिचित बालसाहित्यकार तो हैं ही, कवि एवं निंबध लेखक भी है।

अभी प्रकाशित हुआ है उनका निंबध संग्रह  ‘जीना इसी का नाम है’। जैसा कि नाम से ही पता चलता है, पुस्तक उच्च जीवन जीने का मार्ग प्रशस्त करती है।

जीवन निर्माण के लिये रास्ता सुझाने वाली पुस्तकें विदेशों में खूब छपती है। स्वेट मार्डन जैसे लेखकों की पुस्तकें तो बहुत पहले से हिन्दी में उपलब्ध होती रही है। उनके देखा देखी हिंदी में मौलिक रचनाएं भी होने लगी। पर उन्हें पढने पर स्पष्ट हो जाता है कि ये विदेशी लेखकों की पुस्तकों की छाया में बैठकर लिखी गई है।

*आलोच्य कृति के आलेख पढ़ने पर यह साफ दिखाई देता है कि लेखक राजकुमार जैन राजन ने ये सब किसी और की छाया में बैठकर नहीं, अपने समाज, अपने देश की धूप में बैठकर लिखे हैं। अपने पसीने को स्याही और अपने चिंतन को कलम बनाकर लिखे हैं*। जैसा कि स्वयं लेखक ने स्वीकार किया है, 'श्रमण स्वर',  'संगिनी', 'साहित्य गुंजन' आदि कई पत्रिकाओं के संपादन का निष्पादन करते समय उन्होंने जो संपादकीय, 'अपनी बात' या मुख्य लेख लिखे, वे ही इस संग्रह ‘जीना इसी का नाम’ में है।

जाहिर है आलेख एक या दो दिन या कुछ दिन में नहीं लिख गये। अनुभव का चक्र घूमता रहा और शब्द आलेख बनते गये, समय की सान पर सब अपनी धार को तेज करते रहे। यदि ये सब पत्र-पत्रिकाओं में छप गये तो यहां पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने की क्या आवश्यकता थी? यही कि वहां तो हर आलेख परीक्षा देता रहा और समय और पाठक प्राप्तांक देते रहे । सफल शब्द आपके हमारे समक्ष प्रस्तुत करने योग्य बनते रहे।

जीवन निर्माण के लिये कोई हमारी ऊंगली पकड़कर प्रगति के पथ पर अग्रसर करता है तो हमें मिला यह सबसे बड़ा सहयोग होता है।

संग्रह में 29 आलेख हैं। इन्हें केवल 29 आलेख कहना पर्याप्त नहीं है। ये उन्नतीस पुस्तकें हैं, जो एक जिल्द में है। पाठक को कौनसा शब्द रास्ता दिखा दे, कौनसी पंक्तियां उसके लिये प्रेरणा का स्रोत बन जाए नहीं कहा जा सकता।

निःसन्देह  इन आलेखों को पढकर आप डाक्टर, इंजिनियर नहीं बन सकते, पर इन्हें हृदयंगम करके वह लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं, जो आपने अपने मन से चुना है।

‘पहले स्वयं का निर्माण करें', 'व्यक्ति अपने जीवन का स्वयं वास्तुशिल्पी हैं', ‘उत्साह है तो जिंदगी है', 'अपने दीपक स्वयं बने’.... आदि जीवन निर्माण की भूमिका है।

 निःसन्देह पुस्तकें जीवन के अंधेरे को दूर करने वाली मशालें होती हैं। यह स्पष्ट होता है आलेख ‘किताबें दिल और दिमाग को रोशनी देती है’,  एवम 'पुस्तक जीवन को सुखमय बनाती है' से। हां, हमें पुस्तक संस्कृति से दूर नहीं होना चाहिए। भारतीय संस्कृति की महानता भी प्रतिष्ठित की गई है आलेख ‘भारतीय संस्कृति विश्व की महान संस्कृति हैं’ में। संस्कृति के लिये मातृभाषा को सम्मान देना आवश्यक है। आलेख 'संस्कृति की वाहक है मातृभाषा‘  यही कहता है।

सभी 28 लेख पठनीय है। पहले 29 आलेख लिख चुका हूं। अब 28 लिखने का कारण है कि एक संपादकीय चूक सामने आई है। पहला आलेख- ‘पहले स्वयं का निर्माण करें’ (पृष्ठ 9) और ‘सबसे पहले स्वयं का जीवन निर्माण करें’ (पृष्ठ 89) एक ही है।

वैसे पुस्तक की छपाई सुंदर एवं त्रृटि रहित हैैै। पाठकों को जीवनोपयोगी पुस्तक उपलब्ध करवाने के लिये राजकुमार जैन राजन बधाई के पात्र है।मंगलकामनाएं



              गोविन्द शर्मा



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