जीना इसी का नाम है

प्रो. शरद नारायण खरे(मंडला)
 वैचारिकता से ही उत्कृष्ट समाज की संरचना होती है, तथा इसी से समाज को चेतना प्राप्त होती है। जीवन मूल्यों का प्रवाह जब दु्रतगति से होता है, तभी जिंदगी को नवीन आयाम प्राप्त होते हैं। बात सही ही है कि जीवन का निर्माण करने के लिए हमें एक उत्कृष्ट व मौलिक नजरिये की आवष्यकता होती है, और यह नजरिया प्रदान करने का काम साहित्य अति सफलतापूर्वक करता है।
 देष के सुपरिचित कलमकार श्री राजकुमार जैन ’राजन’ के चिंतनपरक व उत्कृष्ट आलेखों का संग्रह ’’जीवन इसी का नाम है’’, प्रकाषित होकर निःसंदेह जीवन को एक नवीन आयाम प्रदान कर रहा है। कुषल साहित्यकार होने के साथ ही राजन जी एक प्रवीण संपादक भी हैं। वे मौलिकता, असाधरणता, प्रगतिषीलता, अनुषासन, सांस्कृतिक चेतना व मानवीय मूल्यों से अनुप्राणित लेखक-कवि हैं। उनके पास एक असाधारण सोच व दिव्यदृष्टि है इसीलिए उनके आलेखों मंे नैतिक मूल्यों, सामाजिक संसकारों, आंतरिक शुचिता, व्यक्तित्व निर्माण, सात्विकता, सकारात्मकता,राष्ट्रीयता, करूणा, परोपकार, चरित्र निर्माण, सत्यता, पुरूषार्थ,स्व-निर्माण अध्ययनषीलता, कर्मठता, सम्यक-चेतना, नारी-सम्मान,  आत्मसंतोष, जिजीविषा, संघर्षषीलता आदि की समाहितता दृष्टिगोचर होती है।


 यह वास्तविकता है, कि ’ हम सुधरेंगे - तो जग सुधरेगा’ और ’हम बदलेंगे-तो जग बदलेगा’ इसीलिए राजन जी अपने आलेखों में स्वनिर्माण पर बल देते हैं। वास्तव में, सजग व समर्थ साहित्यकार यही प्रयत्न करता है कि उसकी लेखनी चिंतनपरक बनकर सामाजिक चेतना की रचना करे, तथा समाज की दषा-दिषा को सकारात्मकता के साथ निर्धारित करे। निःसंदेह इस संग्रह के आलेख यही अभिनंदनीय कार्य सम्पन्न करते है।
 कौन सरस्वती पुत्र नहीं चाहता कि वह एक उज्जवल आगत की रचना में सहायक बने, और विसंगतियों, विद्रूपताओं, नकारात्मकलाओं व विडंबनाओं के विरूद्ध अपनी लेखनी के माध्यम से अभियान छेडे़ ? समीक्ष्य कृति में शोधपरक ऐसे आलेख शामिल हैं जो आषावाद, जीवन्तता, मूल्यनिर्माण व जन-जागरूकता की दृष्टि से निष्चित रूप से अति सराहनीय हैं। इन आलेखों में विद्यमान वैचारिकता वास्तव में पाठक को बहुत कुछ सोचने समझने को विवष करती है। जब कलमकार गहन चिंतन में डूबकर सामाजिक सरोकारों का निर्वाह करता है, तब निष्चित ही वह अपने चिंतन के आधार पर समाज की दषा-दिषा निर्धारित करने की चेष्टा करता हैं, और तब वह और उसका कार्य सराहना की विषयवस्तु  बन जाते हैं। राजकुमार जैन ’राजन’ जी के ये निबंध इसी श्रेणी के निबंध हैं। इनमें हमें संवेदना/परिपक्वता/अनुभवषीलता, गहन वैचारिकता/ चिंतनषीलता व सकारात्मकता नजर आती है। यह कृति व कृतिकार दोनों ही व्यापक अर्थों में सराहनीय हैं।




        कृतिकार:- राजकुमार जैन’’राजन’’



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