समीक्षा : ( सेतु समग्र - कविता संग्रह )



विष्णु खरे(मनासा)

हिंदी कविता के बेशुमार प्रतिष्ठित कवियों में से एक बड़ा नाम - श्री विष्णु खरे जी । हिंदी साहित्य जगत में कविताओं को नया मोड़ प्रदान करने वाले, नई परंपरा को जन्म देने वाले साथ ही अपनी कविताओं से पाठकों के अंतर्मन को बड़ी ही सरलता और सहजता से छूने वाले उमंगमय कवि, बहुमुखी प्रतिभा के धनी श्री खरे जी कवि के साथ बेहतरीन फिल्म समीक्षक, शानदार अनुवादक और प्रखर गुणवत्तापूर्ण पत्रकार थे ।

         " विष्णु खरे जी अपने एक साक्षात्कार में कहते है कि – लेखक को पत्रकारिता  में सेंध मारनी चाहिए ,जहां पर उसे सुना जाता है ,पत्रकार बने ,कुछ ऐसा लिखे ,कहे कि लोग जागे । चाहे लोग नाराज हो या उससे खुश हो । खरे जी कहते है कि , लेखक को पत्रकार होना चाहिए और पत्रकार को लेखक होना चाहिए ।

            श्री खरे जी। का काव्य संग्रह " सेतु समग्र " बहुत ही मुखर एवम् काव्य धाराओं से लबरेज है । आपकी कविताओं में जमीनी भावो से जुड़े प्रत्येक अनुभव को प्रत्येक श्रोता बेहद ही आंतरिक भावो से परिपूर्ण होकर शब्द घूंट को अमृत की भांति ग्रहण करता है । सरल,सहज एवम् सजग गद्य रूपी कविताओं के नए रूप की नई परंपरा के कारण साहित्य में आपने सर्वश्रेष्ठता का परिचय दिया । 

               आपकी कविताओं में जीवन का प्रत्येक क्षण कैसे जिया जाए ,बखूबी चर्चित है ।

आम आदमी के जीवन से लेकर ऊंचे पायदान तक पहुंचने वाली हर  डगर का वर्णन कविताओं का रोम – रोम पाठकों को ज्ञात करा देता है । 

            कविताओं को गद्य रूप में पिरोना और उसमे कैसा साहित्य होना चाहिए, श्री खरे जी का लेखन बखूबी इसे प्रदर्शित करता है। 

जीवन के अनुकूल होने वाली परिस्थितियों को समझना हो तो श्री खरे जी के " सेतु समग्र " को पढ़ने के साथ - साथ समझना और जीवन में उसे देखना उतना ही कठिन लगता है। कविताओं के बदलते दौर को एक ऐसा सुहावना और भावभरा नूतन युग प्रदान करने वाले कवियों में से कुछ ही होते है ऐसे विरले !!

               काव्य संग्रह "सेतु समग्र" में कवि ने शब्द की गरिमा के साथ - साथ शब्द को किस जगह कैसा जामा पहनाना चाहिए ,बखूबी दर्शाया है । श्री खरे जी की कविताओं में कटाक्ष के साथ पूर्ण खरापन है ,जो सत्य को अपने मार्ग से अडिग नहीं होने देता है । जीवन की बारीकियों को एक धागे में पिरोकर एक सेतु का रूप प्रदान करने वाले मुखर,प्रखर एवम् तेजस्वी कवि - श्री विष्णु खरे जी !! प्रणाम , धन्यवाद ... जय हिन्द !!

         ( यह समीक्षा पाठक मंच मनासा में काव्य गोष्ठी के अवसर पर भी पढ़ी गई है , जिसमें अनेक साहित्यकारों ने शिरकत की थी ,जिसका संचालन " श्री विजय बैरागी जी " ने किया था ) !! 



    सुनील पोरवाल  " शेलू " , मनासा



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