"यादों की धरोहर" नामक पुस्तक की समीक्षा
स्वतंत्र लेखक और दैनिक ट्रिब्यून के पत्रकार और ब्यूरो चीफ रहे श्री कमलेश भारतीय किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। दर्जनों राज्य स्तरीय और राष्ट्रीय सम्मानों से सुशोभित श्री कमलेश जी की अद्वितीय पुस्तक “यादों की धरोहर” का यह दूसरा संस्करण है। 135 पन्नों की किताब में 31 साक्षात्कार हैं। मात्र पांच महीनों में दूसरा संस्करण आने का तात्पर्य यह है कि इस कृति ने आम जनमानस में अपना एक विशिष्ट स्थान बना लिया है। भारतीय जी ने हिंदी साहित्य के लगभग हर वरिष्ठ साहित्यकार, रंगकर्मी और पत्रकार का साक्षात्कार लिया था और अब उन्होंने उस धरोहर को एक पुस्तक के रूप में संकलित कर दिया ताकि नवांकुरों का मार्ग प्रशस्त हो अपने माननीय साहित्यकारों के जीवन कर्म और आने वाली पीढ़ी से उनकी उम्मीदों के बारे में जानकर।


कमलेश जी ने सरल, सहज, साधारण शब्दों में साक्षात्कार लेकर दुरूह कार्य को सफलता से पूर्ण किया है। चिंतन और मनन द्वारा लेखक ने वरिष्ठ साहित्यकारों के मन की बात को हमारे सामने रखा है। यह प्रयोग अपने आप में अनूठा है।

भूमिका शुरू होती है “कहां कहां से गुजरा” से, इसमें उन्होंने अपने  बताया है कि किस तरह उन्होंने ने लोगों के साक्षात्कार लेने शुरू किए और यह एक सफर की तरह चल निकला। खास बात यह है कि उन्होंने साक्षात्कारों को जस का तस नहीं प्रकाशित कर दिया बल्कि केवल जरूरी बातों का समावेश किया है।

पुस्तक की शुरूआत श्री “विष्णु प्रभाकर” जी के साक्षात्कार से हुई है। इसमें उन्होंने साफ शब्दों में बताया है कि आज के लेखक पुराने रचनाकारों का सम्मान कम करते हैं और आलोचना अधिक।

अगला साक्षात्कार “तमस” के चर्चित उपन्यासकार “भीष्म साहनी” जी का है। उनके अनुसार हर घर में पत्रिकाएं और पुस्तकें अवश्य होनी चाहिएं ताकि बच्चों में उनके प्रति प्रेम जागे।

मोहन राकेश जी की धर्मपत्नी श्रीमती अनिता राकेश जी का बहुत ही मार्मिक साक्षात्कार प्रस्तुत किया गया है। राकेश जी को याद करके वह कई बार भावुक हुईं और उनकी याद में “नाट्य उत्सव” की तैयारी के बारे में लेखक को बताती हैं।

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित “निर्मल वर्मा” जी का जीवन वृतांत पढ़ने योग्य है।

“खेमों में साहित्य नहीं पनपता” जैसी स्पष्ट बात कहने वाले और कलम की पैनी धार वाले सुप्रसिद्ध लेखक “इंद्रनाथ मदान” जी का साक्षात्कार पठनीय है।

आगे, श्री हरिशंकर परसाई जी अपने व्यंग्य लेखक बनने के बारे में बता रहे हैं।

इन सबके इलावा, देवी शंकर प्रभाकर, राकेश वत्स, डॉ यश गुलाटी, वीरेंद्र मेहंदीरत्ता, प्रयाग शुक्ल, गुरशरण सिंह, हजारी प्रसाद द्विवेदी, जगदीश चंद्र वैद और महीप जी के जीवन के कई अनछुए पहलुओं पर प्रकाश डालते साक्षात्कार इस पुस्तक में मौजूद हैं।

यह किताब अपने आप में पूर्णता लिए हुए है। मुद्रण से लेकर कलात्मक साज सज्जा अति उत्कृष्ट है। पर, मूल्यांकन का अधिकार पाठकों का है, इसलिए यह पुस्तक पढ़कर, सहेजने योग्य है। इस तरह की किताब अगर ज्यादा से ज्यादा पाठकों तक अपनी पहुंच बनाती है तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चर्चित किताबों की श्रेणी में आ सकती है। जिनके भी हाथों में कमलेश भारतीय जी की यह धरोहर जाएगी, उनको अवश्य प्रभावित करेगी।

 

                      अनुजीत इकबाल



  • किसीभी प्रकार की खबर/रचनाये हमे व्हाट्सप नं0 9335332333 या swaikshikduniya@gmail.com पर सॉफ्टमोड पर भेजें

  • स्वैच्छिक दुनिया समाचार पत्र की प्रति डाक से प्राप्त करने के लिए वार्षिक सदस्यता (शुल्क रु500/- ) लेकर हमारा सहयोग करें

  • साथ ही अपने जिले से आजीविका के रूप मे स्वैच्छिक दुनिया समाचार प्रतिनिधिब्यूरो चीफरिपोर्टर के तौर पर कार्य करने हेतु भी हमें8318895717 पर संपर्क करें।

  • कृपया यह ध्यान दे की कोई भी लेख/ समाचार/ काव्य आदि 500 शब्दों से ज्यादा नहीं होना चाहिए अन्यथा मान्य नहीं होगा