लॉक डाउन बनाएं अपने बच्चों के लिए ख़ास

इस लॉकडाउन से सभी उम्र - वर्ग का व्यक्ति प्रभावित है। ऐसे मे पैरेंट्स भी अपने बच्चों के लिए चिन्तित हैं कि कैसे अपने बच्चों को अच्छा वातावरण दें, उनको खुश रखे और उन पर किसी तरह का नाकारात्मक प्रभाव भी न पडने दें। इस लाँकडाउन को अपने व अपने बच्चों के लिए यूजफुल बनाए । हर माता पिता के लिए उनके बच्चे उनकी दुनिया होते हैं। तो कैसे अपनी इस दुनिया को खुशनुमा व मजबूत बनाए। इसके लिए चलिए जानते हैं कुछ ऐसे टिप्स जिससे कि आप और आपका बच्चा एक दूसरे कि कम्पनी पसंद करें, कुछ अच्छा सीखे और इस लॉकडाउन मे मिले समय का सदुपयोग हो-


1) इस लॉकडाउन मे उनके लिए खुशनुमा व यादगार मेमोरीज बनाए -


वर्तमान परिस्थिति भले ही अनेको प्रकार की कठिनाइयों से भारी हुई है। लेकिन अगर इन कठिनाइयों को कुछ देर के लिए नजरअंदाज करके देखें तो कुछ सकारात्मक पक्ष भी देखने को मिलेंगे। जैसे नदियों का जल स्वच्छ हो गया है, हवा साँस लेने के लायक हो गई है और घर के सभी सदस्यों को एक दूसरे के साथ बिताने के लिए पर्याप्त समय मिला है। ऐसी सकारात्मक बातें उनको बताएं। साथ ही उनके साथ क्रिएटिव वर्क करें, योग व ध्यान करने जैसी आदते डलवाएं। अगर बच्चों ने इन्हें आदत बना लिया तो उनका तन-मन दोनों स्वस्थ रहेगा।


2) बच्चों के इन्टरेस्ट को ही उनका लर्निंग टूल बनाएं -


अभी जब स्कूल बन्द हैं तो उनको पढाने व सिखाने की पूरी जिम्मेदारी पैरेंट्स पर आ गई है। अगर बच्चे छोटे हैं तो ये जिम्मेदारी और भी बढ जाती है । ऐसे में उन्हें पढाने के लिए रूचिकर तरीके अपनाएं जो उनको पसंद आए जैसे खेल खेल में गिनती सिखाएं, ड्राइंग से बॉडी पार्टनेम आदि ।


3) आप अपने लाइफ कि स्टोरी, रोचक घटनाएं बच्चों को बताएं -


इससे बच्चे आपसे कनेक्ट होगें , आप अपने बचपन की घटना या लाइफ के अनुभव जिनसे आपने कुछ सीखा या जिनमें आपको खुशी मिली, बच्चों से जरूर शेयर करें।


4) बच्चों से आप कुछ ऐसा सिखाने के लिए कहें जिनमें वो एक्सपर्ट हों या बच्चों को वो काम करना पसंद हो-


आजकल के बच्चे एडवांस और टेक्नोलॉजी प्रेमी होते हैं व उनमे और भी बहुत सी स्किल्स होती हैं जैसे फ़ोन के बहुत से यूज़फुल एप चलाना, डांस आदि। अगर आप ये सब सीख लेतें हैं त़ो आगे ये आपके काम भी आएंगे और बच्चों का कान्फिडेंस भी बढेगा। तो आज ही अपने बच्चों से सीखे व लॉकडाउन का फायदा उठाएं।


5) बच्चों को कुछ नया सिखाएं व जिम्मेदारी दे -


लॉकडाउन के दौरान रोज एक सा रूटीन फाँलो करने से बच्चे बोर हो जाएंगे इसलिए उन्हें कुछ नया सिखाएं जैसे किचन के काम मे हेल्प लें, कोई नई रेसिपी बनाने में या उनकी फेवरेट डिश बनाने मे उनकी मदद लें , घर कि साफ सफाई करने की जिम्मेदारी सौपें  , फोन चलाने के बजाय बुक  पढने की आदत के लिए बच्चों को प्रेरित करें।


6) अपने बच्चों को अपने लाइफ के ड्रीम्स,गोल के बारे मे बताएं- 


जैसे माता पिता बच्चों के ड्रीम व गोल्स के बारे मे बात करते हैं उसी तरह पैरेंट्स को अपने जीवन के उद्देश्य , सपने व सघर्ष के बारे मे भी अपने बच्चों से बात करना चाहिए। इससे दोनों के बीच कम्युनिकेशन गैप दूर होगा साथ ही बच्चे आपसे बहुत कुछ सीखेगें भी। बस इतना ध्यान दें कि बात करते समय आप उनपर अपने सपने न थोपने लगें या उनको जिम्मेदारी न दें कि उन्हें आपके सपने पूरे करने हैं।


7) अपने बच्चे को भी सुनना आवश्यक है-


 सभी माता पिता अपने बच्चो के सबसे बडे़  हितैषी होते हैं। वह हमेशा उनको अच्छी सलाह देते हैं और अच्छी बातें बताते है। लेकिन बच्चों को, उनकी भावनाओं को और उनके नजरिए को भी सुनना व समझना बहुत आवश्यक है वह भी बिना किसी सलाह दिए और बिना जज किए । इससे बच्चे को अपनी अहमियत महसूस होगी और बिना हिचक वह अपनी बातों को आपसे बता पाएगा।


8) उनसे हाँँ-ना वाले प्रश्न के इतर भी प्रश्न करें -


जब आप अपने बच्चों के साथ बात करें  या समय बिताएं तो कोशिश करें कि उनसे उनके पसंद- नापसंद , या हॉबी के बारे मे डिस्कसन करें न कि बातचीत करे जो हाँँ या न तक ही सीमित रहे।


9) आलोचना के बजाय प्रेरित करें -


अक्सर पैरेंट्स बच्चों के असफल होने पर  या उनके गलती करने पर उनकी आलोचना करते हैं इससे बच्चों के मन पर बुरा असर पड़ता है, और हीनभावना आ जाती है। इसलिए आलोचना करने के बजाय उनके प्रयास की तारीफ करें और उनकी गलतियों से उनको अवगत कराएं व आगे बढने की प्रेरणा दे ।


उपरोक्त सुझावों के अतिरिक्त, बतौर मनोवैज्ञानिक व कॉउंसेलर, मेरा सुझाव है कि अपना व अपने बच्चों के शारीरिक स्वास्थ्य के साथ साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य का भी पूरा ध्यान रखे।


अपने बच्चों को विश्वास दिलाएं कि कुछ आवश्यक एहतियात के साथ वो इन परिस्थितियों से लड़ने व इन्हें नियंत्रित करने में सक्षम हैं व इससे निपटने के लिए योग, डीप ब्रीथिंग, मस्क्युलर स्ट्रेचिंग व आध्यात्म जैसे महत्वपूर्ण चीज़ो का सहारा ले सकते हैं।



आस्था तिवारी


(साइकोलोजिस्ट व मनोवैज्ञानिक)


 


 


 



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