मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता हैं "रोजी-रोटी"
पृथ्वी में मानव जीवन पाना बड़ा ही अदुभुत होता हैं। मानव के जन्म लेने से लेकर उसकी मृत्यु तक के सफर में एक अतिमहत्वपूर्ण क्रिया भोजन हैं। हमने बचपन की विज्ञान की किताबों में भोजन की परिभाषा से अच्छी तरह वाकिफ होंगे।

 जिसमे स्पष्ठ रूप से वर्णित हैं कि.. मानव की मूलभूत आवश्यकता भोजन हैं।भोजन ही उसके शरीर में ऊर्जा प्रदान करता हैं। और यही ऊर्जा उसको काम करने की क्षमता प्रदान करती हैं।जिससे मानव श्रृंखला चलती रहती हैं। समाज में भी ये क्रिया अतिशीघ्रता से चलती रहती हैं। भोजन ही हमारे जीवन की प्राथमिकता हैं।मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता रोटी,कपड़ा और मकान हैं।जिसकी प्रतिपूर्ति धन अर्जित करके ही कि जा सकती हैं।पैसा ही सब कुछ हैं। समस्त प्राणी जीवन जीने के प्रारूप तो अलग अलग हैं परन्तु उसके जीवित रहने की मूलतः तथ्य भोजन,वस्त्र और आवास हैं।

जो कि हमारे प्रजातांत्रिक देश में शासन और प्रशासन द्वारा प्रत्येक व्यक्ति तक इस सुविधा को पहुँचाने के लिए प्रबंध भी किये जाते हैं। इस प्रबंध को करने का जिम्मा स्वतः व्यक्ति को ही उठाना पड़ता हैं। वर्तमान में पूरे विश्व में आयी वैश्विक महामारी सभी प्राणियों की मूलभूत आवश्यकता को प्रभावित किया हैं। जिससे जीवन जीने के शैली को बदलना भी पड़ा हैं। मूलभूत आवश्यकता को पूरे करने में मददगार "काम"(रोजी) में बुरा असर पड़ा हैं। जिससे व्यक्तिगत जीवन में मुसीबते चौखट पर आ खड़ी हैं।

इस लॉकडॉउन ने लोगो के आर्थिक स्थिति को झकझोर कर रख दिया हैं। मानव की रीढ़ की हड्डी कहे जाने वाले (धन) को खत्म-सा कर दिया हैं। कहा जाता हैं.. "MONEY IS HONEY" & "MONEY IS EVERYTHING"  ये अंग्रेजी भाषा में कही जाने वाली युक्तियां बहुत ही प्रचलित हैं।

 क्षेत्रीय हिंदी भाषा में "बाप न बड़ा रुपया सबसे बड़ा रुपया" यही कहावत अपने कानपुर की प्रचलित हैं। जिससे हर सख्स भली भांति परिचित हैं। वर्तमान की स्थिति इन सभी मानकों के विपरीत हैं। धन कमाने के सभी स्रोत बंद पड़े हुए हैं। बड़े-बड़े कारखानों में ताले लग चुके हैं।व्यापारिक स्तर भी निम्न पर जा पहुंचा हैं। मज़दूर से लेकर मालिक तक आर्थिक स्थिति से कमजोर हो चुका हैं। आम से लेकर खास तक अपने कार्य को नही कर पा रहा हैं। यह विषय वर्तमान में बड़ी ही जटिल समस्या बन चुका हैं।

 


विकास पांडेय

बर्रा,कानपुर

सदस्यता क्रमांक 11729