बादल

ए बादल ना छुपा मेरे आकाश को देख लेने दे मुझे एक झलक, कब से तरस रही थी मैं इसकी एक झलक के लिए , तु ना आना हम दोनों के दरमियान, ना बढ़ा यूं दूरियां।

जा ले जा तु अपनी बरखा को अपने साथ, मुझे मिलने दे मेरे आकाश से, बिन आकाश के धरती का ना कोई वजूद है, धरती और आकाश का मिलन अनोखा है, है प्यार की पवीत्रता इसमें इन्सानों सा ना कोई धोखा है।
तपती  है धरती जब सूरज की गर्मी से, तो ठंडी छाया देता आकाश, माना तु भी देता बारिश की ठंडी-ठंडी फुहार, मगर आकाश तो मेरी छत्रछाया है, उसके बिना तो धरती ने ना जीवन पाया है।
जो ना होता आकाश तो, जल कर हो जाती भस्म मैं, कैसे आकाश के बिन जिंदा रह पाती मैं,बिन आकाश के तुम भी तो बरसा कर बारिश जल-थल कर देते, मुझे भला फिर कहां रहने देते, ए बादल अब समझ जा तु मेरी और आकाश की यारी, ये है जग से न्यारी।















                प्रेम बजाज

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