समय की व्यस्तता के कारण मैं काफी समय से कोई लेख नहीं लिख पाई । लेकिन एफ बी के कारण अपने को अपडेट करती रही। एक रात में एफबी पर एक्टिव थी, तभी मैंने कनक मिश्री जी की पोस्ट पढ़ी।( यति नरसिंहानंद सरस्वती जी के बारे में) आंखों में नींद तो काफी थी पर पोस्ट ने अंदर तक झकझोर के रख दिया ।मैं दो-तीन दिन तक बेचैन रहीं। घर गृहस्थी की जिम्मेदारियों के साथ जवान होती बेटेऔर बेटियों के कारण।
जब तक हम बच्चे या युवा होते हैं। तब तक इन बातों का मतलब नहीं समझ आता ,पर जब हमारे बच्चे बड़े होते हैं। और हम एक अभिभावक की भूमिका में होते हैं। एक वही अंजाना सा डर जो हमारे समय में हमारे अभिभावकों में हमारे लिए होता था ,सताने लगता है । पर हमारे समय में परिस्थितियां काफी हद तक अनुकूल थी। हम बच्चों का स्वभाव भी सौम्या में होता था। पर आजकल की परिस्थितिया बहुत ही प्रतिकूल हैं । और बच्चों या अविकसित युवा जबरदस्त विद्रोही स्वभाव की हो गए हैं। उनके साथ सामंजस्य बिठाना बहुत ही मुश्किल हो गया है। पर उनकी नासमझी के कारण उनको इस नर्क में तो नहीं डालल सकते ना । पर उन्हें सही समय पर सही दिशा निर्देश के माध्यम से अगाह तो कर ही सकते हैं।
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