परीक्षा बनाम शैक्षिक प्रोन्नति

कोरोना महामारी की वजह से लगातार दूसरे वर्ष हमारे देश के अधिकांश राज्यों ने बिना परीक्षा लिए ही छात्रों को अगली कक्षा में प्रोन्नत किया है।

सभी राज्य सरकारों ने एक ही बात कही है *हम बच्चों के जीवन के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते है। जीवन को बचाना हमारा पहला काम है*। इसमें कोई अतिशयोक्ति भी नही है। अभी सबसे जरूरी बच्चों का जीवन ही है। इस मामले में कोई जोखिम नही लेना चाहता है और लेना भी नही चाहिए। किसी भी सरकार ने लिया भी नही यह बहुत अच्छी बात है।

पर दबे स्वर में आम जनमानस में यह चर्चा है कि बिना परीक्षा के बच्चों को पास करना आत्मघाती कदम है। इससे बच्चों के शिक्षण का स्तर गिरेगा।

मैं सबको बताना चाहता हूं कि 2010 से ही अधिकांश राज्यों में निशुल्क व अनिवार्य शिक्षा अधिनियम -2009 लागू कर रखा है।इस कानून के अनुसार कक्षा 1 से 8 तक परीक्षा लेने के बाद भी किसी बच्चे को फेल करने का प्रावधान नही है। इसका मतलब यह हुआ कि परीक्षा में बैठने वाले सभी बच्चों को कक्षा क्रमोन्नत किया जाएगा। और यह सब सन 2010 से लगातार किया भी जा रहा है।

ऐसे में अभिभावकों को परीक्षा की इतनी चिंता क्यों सता रही है। *वैसे भी अब तक जितने भी शिक्षा के लिए आयोग बने है। सभी ने वर्तमान शिक्षा प्रणाली को समाप्त करने की बात कही है*। परीक्षा से बच्चों की छंटनी ही तो होती है। और कोई इसका मतलब दिखता नही है। बल्कि नूकसान ज्यादा है। जैसे छोटी सी उम्र में ही बच्चों में उच्चता,निम्नता से आत्मग्लानि पैदा होती है। हीनता का भाव मन में आता है

वर्तमान परीक्षा प्रणाली  में 32 अंक लाने वाला अनुत्तीर्ण व 33 अंक लाने वाला उत्तर्णी माना जाता है। 1 अंक कम आने की सजा यह परीक्षा प्रणाली छात्र को पूरे साल तक उसी कक्षा में वापस बिठाकर देती है। यह कोई न्याय संगत, तर्क पूर्ण बात नही लगती है। जो बच्चा 59 से 1 अंक ज्यादा लाता है वह अपने आप को प्रथम श्रेणी का समझने लगता है। द्वितीय श्रेणी का चाहे उससे अंक 1 ही कम है। पर वह उससे नीचा माना जाता है।

इस तरह की जो श्रेणीवार उच्चता और निम्नता का भाव है। यह बच्चों में हीनता पैदा करता है। इससे बच्चे अवसाद से ग्रसित हो जाते है।यहां तक कि बहुत सारे बच्चे तो आत्महत्या जैसा जघन्य अपराध भी कर बैठते है।

दूसरी बात जब हमारे देश में हर तरह की सरकारी सेवा के लिए प्रतियोगी परीक्षाएं होती है, तो फिर बच्चों को फेल करके, उसी कक्षा में रोके रखने का ज्यादा तुक नजर नही आता है।इसका कोई ज्यादा लाभ भी नही दिखता है।

तीसरी बात RTE कानून में आयु अनुसार बच्चों को कक्षा में प्रवेश देने का भी नियम बनाया गया है। इस नियम का मतलब होता है कि बच्चे की जितनी उम्र है, उसके अनुसार ही उसे कक्षा में प्रवेश दिया जाएगा। जैसे कोई बच्चा 6वर्ष का है तो पहली कक्षा में और 10 वर्ष का है तो पांचवी कक्षा में प्रवेश देना होगा। 

अब देखिए इस नियम के अनुसार जो कही पर भी नहीं पढ़ रहा है,उसकी तो  अपनी उम्र के साथ अपनी कक्षा भी बढ़ रही है। और एक तरफ वह बच्चे है जो विद्यालय में पढ़ने जा रहे है।उन बच्चों को हम परीक्षा लेकर फेल करवाना चाह रहे है। तो यह हम कैसा न्याय कर रहे है बच्चों के साथ समझ से परे।

चौथी बात उत्तीर्ण अनुत्तीर्ण से शिक्षा को जोड़ना ही गलत है। पढ़ाई का मतलब बच्चों का सीखना और सिखाना है। साल भर बच्चों ने जो भी सीखा है।वह कम ज्यादा हो सकता है। नई कक्षा में जाने के बाद जिनका सीखना कम हुआ है। उनको थोड़ी अधिक मेहनत करने की जरूरत है। ऐसा नहीं है कि वह 1 अंक कम लाने की वजह से उनको कुछ भी नही आता।वे बेकार हो ग्ए।

पांचवी बात उच्च शिक्षा में भी तो कमपार्ट व्यवस्था है।उसी तरह प्राथमिक शिक्षा में भी अगली कक्षा में जाने के बाद पिछली कक्षा के शेष रही पाठ्यवस्तु को सीखा जा सकता है।

मैं इस आलेख के माध्यम से सभी अभिभावकों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि परीक्षा न करवाकर क्रमोन्नत किया गया निर्णय वर्तमान परिस्थितियों में बिल्कुल सही समय पर लिया गया  बेहतरीन निर्णय माना जाना चाहिए।

यह आलेख के माध्यम से जनमानस में सरकारी आदेश के खिलाफ फैली धारणा को कम करने का भी मेरा उद्देश्य है।


हां यह जरूर मानते है कि बच्चों के लिए विद्यालय नहीं खुलने से पढ़ाई का बहुत नुकसान हुआ है।उनका लर्निंग लॉस हुआ है। अपितु बच्चों को घर पर ऑनलाइन शिक्षा के द्वारा अध्ययन भी करवाया गया है ‌ मोबाइल , टेलीविजन के माध्यम से भी छोटे बच्चों को लगातार अध्य्यन करवाया गया है। पर फिर भी इसमें कतई अतिशयोक्ति नही है कि  कक्षा कक्ष में शिक्षक के साथ बच्चे जो अध्ययन करते उसका कोई विकल्प नही हो सकता है।

उनका लर्निंग लॉस हुआ है। इसमें कोई दोराय नही है। इसकी भरपाई के लिए भी सभी राज्य सरकारें व शिक्षक समुदाय चिंतित है। कोरोना महामारी के बाद अच्छा समय जरूर आएगा और उसमें हम सब मिलकर इस की भरपाई जरुर करेंगे। 

हमारे जो पाठ्यक्रम है उसको समेकित करके, योजनाबद्ध तरीके से बच्चों के साथ कार्य किया जाएगा। इसके लिए योजना बनाई जा रही है।  


इस कोरोना महामारी के समय में भी सभी सरकारे व शिक्षक मिलकर। जितना संभव था उतना अच्छा काम बच्चों के साथ किया गया है। जैसे शिक्षकों द्वारा घर-घर जाकर होमवर्क देना- लेना, व्हाट्सअप समुह मे आॉडियो विडियो द्वारा शिक्षण, आकाशवाणी द्वारा शिक्षण, शिक्षा दर्शन,बालबाडी,शिक्षा वाणी,हवामहल आदि शैक्षिक नवाचारों के माध्यम से निरंतर रूप से बच्चों के साथ जुड़े रहे थे 

इस महामारी के समय में बच्चों को जोड़े रखना,उनको शैक्षिक माहौल प्रदान करना ही सबसे महत्वपूर्ण और बहुत जरूरी बात थी। इसके लिए राज्य सरकारें व शिक्षकों ने जितना संभव था।वह सब किया है। इसका यह फायदा रहेगा।जब भी बच्चों के लिए विधालय खुलेंगे तो बच्चों को जोड़ा जा सकेगा।












   हंसराज हंस
    राजस्थान

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