महाविद्यालयों में शैक्षणिक सत्र

अशोक कुमार

चेयरमैन-सोशल रिसर्च फाउंडेशनकानपुर

कुलपति, निर्वाण विश्वविद्यालय, जयपुर ।

 पूर्व कुलपति श्री कल्लाजी वैदिक विश्वविद्यालय, निम्बाहेड़ा (राजस्थान )

 तथा

पूर्व कुलपति, कानपुर विश्वविद्यालय व गोरखपुर विश्वविद्यालय (उत्तरप्रदेश )

सामान्यतः महाविद्यालयों में शैक्षणिक सत्र 1 जुलाई से प्रारंभ होता है तथा 30 अप्रैल तक चलता है ! उसके पश्चात ग्रीष्मकालीन अवकाश हो  जाता है ! पुनः दो महीने के ग्रीष्मकालीन अवकाश के बाद 1 जुलाई से नया सत्र प्रारंभ होता है ! यह माना जाता है कि 1 जुलाई से शिक्षण कार्य प्रारंभ हो जाएगा और  परीक्षा प्रारंभ होने के दस दिन पहले तक चलता रहेगा ! सामान्यतः महाविद्यालयों मे परीक्षा  फ़रवरी के अंतिम सप्ताह तक होती हैं ! अतः यह मान लिया जाता है  की  फ़रवरी तक शिक्षण कार्य यथावत चलता रहेगा ! परन्तु वास्तविकता में शैक्षणिक सत्र इस रूप में कभी भी कार्यान्वित हो नहीं पाता !

महाविद्यालय में जून के अंतिम सप्ताह से प्रवेश प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है जो कि सामान्यतः अगस्त के अंतिम सप्ताह तक चलती रहती है ! इस दौरान महाविद्यालय के शिक्षकों का यह दायित्व होता है कि वे प्रवेश प्रक्रिया को सुचारु रूप से संपन्न करवाए हैं इसलिए प्राचार्य के द्वारा लगभग सभी शिक्षकों की ड्यूटी प्रवेश प्रक्रिया में प्रवेश प्रक्रिया से संबंधित विभिन्न कार्यों में लगा दी जाती है ! इस कारण वे शिक्षक नियमित कक्षाएं नहीं ले पाते हैं ! महाविद्यालय में यह माहौल होता है कि अभी प्रवेश प्रक्रिया चरम पर है अतः  शिक्षण कार्य प्रवेश प्रक्रिया समाप्त होने के बाद ही संभव हो पाएगा। और वैसे भी जब तक प्रवेश प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है विद्यार्थी नियमित कक्षाएँ  मे नहीं आ   सकता । जब अगस्त के अंतिम सप्ताह तक महाविद्यालय में प्रवेश प्रक्रिया लगभग समाप्ति की ओर होने वाली होती है तब  ही  राजस्थान के महाविद्यालय में छात्र संघ चुनावों की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और अगस्त के अंतिम सप्ताह या सितम्बर के प्रथम पखवाड़े में चुनाव होते हैं । महाविद्यालय में प्रवेश होने के पश्चात भी छात्र निर्मित कक्षाओं से वंचित रह जाते  हैं क्योंकि  शिक्षक चुनाव से संबंधित कार्य में व्यस्त रहते हैं । चुनाव संपन्न होने के बाद महाविद्यालय में शिक्षण कार्य प्रारंभ किया जाता है ! ( बहुत से ऐसे राज्य भी हैं जहां  छात्र संघ के चुनाव नहीं होते हैं उन महाविद्यालयों मे छात्र  यह समय  आंदोलन एवं हड़ताल मे निकाल देकर शिक्षण को प्रभावित करते हैं  !)  जैसे ही शिक्षण कार्य गति पकड़ता है और विद्यार्थी नियमित महाविद्यालय आने की सूचना शुरू करते हैं महाविधालय में दशहरा एवं दीपावली का अवकाश घोषित कर दिया जाता है यह लगभग १०-15 दिन का अवकाश होता है ! इस कारण   जो विद्यार्थी नियमित महाविद्यालय आने लगा था वापस अपने घर चला जाता है ! जब छात्र अवकाश के बाद महाविद्यालय आता है तब महाविद्यालय में परीक्षा फ़ॉर्म भरने का कार्यक्रम प्रारंभ हो जाता है और महाविद्यालय के शिक्षकों की ड्यूटी भी परीक्षा  फ़ॉर्म चेक करने और उससे संबंधित कार्य में लगा दी जाती है ! अतः शिक्षक नियमित कक्षाएं नहीं ले पाते हैं !  विद्यार्थी भी  परीक्षा फ़ॉर्म भरने की प्रक्रिया में व्यस्त हो जाते हैं ! यह प्रक्रिया दिसंबर माह  तक चलती है ! विद्यार्थी जब परीक्षा फ़ॉर्म भरने की प्रक्रिया से मुक्त होकर कक्षाओं का रुख़ करते हैं और शिक्षक भी है परीक्षा फ़ॉर्म भरवाने की प्रक्रिया से मुक्त होकर नियमित कक्षाएं लेने के लिए जाते हैं तब तक  शीतकालीन अवकाश का समय हो जाता है ! शीतकालीन अवकाश दिसंबर के अंतिम सप्ताह में होता है। उसके बाद  नव वर्ष में जब विद्यार्थी महाविद्यालय आता है  तब प्रायोगिक परीक्षा का रिकॉर्ड बनाने का कार्य विद्यार्थियों के सिर  आ जाता है फिर विद्यार्थी प्रायोगिक रिकॉर्ड के जुगाड़ में लग जाते हैं ! जैसे ही कहीं से एक प्रायोगिक  रिकॉर्ड प्राप्त होता है सभी विद्यार्थी उसको कॉपी करने का कार्य में लग जाते हैं ! इस दौरान कक्षा  मे उपस्थित होना उनके लिए संभव नहीं होता ! शिक्षक विद्यार्थियों के क्लास में नहीं आने के कारण कक्षाएं नहीं ले पाते हैं।  जनवरी के अंतिम सप्ताह में या फ़रवरी के प्रथम सप्ताह में प्रायोगिक परीक्षाएं संपन्न करवाई जाती है ! शिक्षक भी इन परीक्षाओं को संपन्न करवाने में व्यस्त रहते हैं ! प्रायोगिक परीक्षाएं  सम्पन्न होने के पश्चात सभी विद्यार्थी मुख्य परीक्षाओं की तैयारी में लग जाते हैं ! शिक्षकों की ड्यूटी भी विश्वविद्यालय की परीक्षाएं संपन्न करवाने में लगा दी जाती है ! परीक्षण सम्पन्न करवाते करवाते ही  अप्रैल आ जाता है और  ग्रीष्मकालीन अवकाश प्रारंभ हो जाता है। इस प्रकार सत्र समाप्त हो जाता है ! सत्र के दौरान लगभग पंद्रह बीस दिन से ज़्यादा कक्षाएं संपन्न नहीं हो पाती है विद्यार्थी भी  हैं यह मान लेता  हैं कि महाविद्यालय का अगला सत्र भी इसी प्रकार चलता  है ! 

महाविद्यालय के वरिष्ठ छात्र अपने साथियों एवं जूनियर्स को सलाह देते है कि महाविद्यालय का शैक्षणिक सत्र इसी प्रकार सम्पन्न होता है अतः अपना समय व्यर्थ न करें एवं समय का सही सदुपयोग करने के लिए कुछ और करें ! Therefore we have a parallel " Coaching Industry " in this country .